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जब तक सत्संग को समझा नहीं तब तक लाभ नहीं : कंवर महाराज

जब तक सत्संग को समझा नहीं तब तक सत्संग का लाभ नहीं। सत्संग इस जीवन मे

By JagranEdited By: Published: Mon, 04 Feb 2019 07:45 AM (IST)Updated: Mon, 04 Feb 2019 07:45 AM (IST)
जब तक सत्संग को समझा नहीं तब तक लाभ नहीं : कंवर महाराज
जब तक सत्संग को समझा नहीं तब तक लाभ नहीं : कंवर महाराज

जागरण संवाददाता,भिवानी : जब तक सत्संग को समझा नहीं तब तक सत्संग का लाभ नहीं। सत्संग इस जीवन में भी शांति, प्रेम प्रतीत देता है और परलोक में भी आपको सुख दिलाता है। 84 लाख योनियों में इंसान ही एकमात्र जीव है जो सत्संग से लाभ उठा सकता है। बाकी योनियों के प्राणी सत्संग के महत्व को नहीं जान सकते। सत्संग में सतगुरु की, सतनाम की महिमा गाई जाती है। सत्संग न तो देखने आओ न सुनने आओ। सत्संग में आओ तो सत्संग करने के लिए ही आओ। अगर सत्संग करोगे तो आपका यह लोक भी सुधरेगा और परलोक भी। यह सत्संग वाणी राधा स्वामी दिनोद के परमसंत कंवर साहेब महाराज दिनोद गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में उमड़ी साध संगत के समक्ष फरमा रहे थे।

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हुजूर कंवर साहेब ने कहा कि किस बात का अहंकार करते हो। बड़े-बड़े फकीर, राजा, महाराजा आए और चले गए। ये जग किसी का नहीं हुआ। कुछ साथ नहीं गया, सिवाए एक वस्तु के। वो वस्तु है परमात्मा का नाम सुमिरन। नाम सुमिरन के साथ ¨चतन भी करो। उस ¨चतन से ¨चता मिट जाएगी और जब ¨चता मिटेगी तो आप स्वयं को जीवित मार लोगे, लेकिन यह अवस्था तभी नसीब होगी जब आप किसी पूर्ण गुरु की शरणाई में सत्संग करोगे।

गुरु की शोहबत पाने के लिए किसी समय का, किसी घड़ी का इंत•ार मत करो। किसी दुख तकलीफ की परवाह न करो। अगर गुरु की संगत के लिए आपको दुख भोगने पड़े और पापी की संगत में सुख के समस्त साधन मिलें तो भी संतों का संग करो। ये संसार कर्म प्रधान है। आप जो कर्म करोगे उसको कोई दूसरा नहीं बांट सकता। उन कर्मों को केवल आपको ही बांटना पड़ेगा। गुरु महाराज जी ने फरमाया कि तरुवर सरवर सन्तजन और मेघ ये चारों तो परमार्थ करने के लिए ही देह धारण करते हैं। इसी प्रकार वैध ज्योतिषी राजा और न्यायधीश का भी सबके साथ समान व्यवहार होना चाहिए। संतों की मौज हर जाति का, हर धर्म का और हर वर्ग का जीव उठा सकता है। उन्होंने कहा कि सत्संगी को भी किसी प्रकार का भेदभाव नही रखना चाहिए लेकिन आज कलिकाल में सब बहे जा रहे है। आज ना तो सन्तान अपने धर्म का पालन कर रही और न ही माता पिता। आज सन्तान उत्पत्ति का अर्थ बदल गया। सन्तान की नींव रखते वक्त जब हमारे विचार ही शुद्ध नही होंगे तो अच्छी सन्तान कहां से पैदा होगी। मन का मन साक्षी होता है। जब तक हम अपनी बुराइयों को मन से नहीं निकालेंगे तब तक अच्छे विचार हमारे अंदर कैसे भरेंगे।

हुजूर महाराज ने फरमाया कि आज भक्ति केवल बातों तो रह गई है। उन्होंने संगत को चेताते हुए कहा कि धन चला जाएगा तो फिर आ जाएगा, रूप चला जाएगा वो भी आ जाएगा, लेकिन जो ये अनमोल वक्त बीत रहा है ये दुबारा नहीं आएगा। इस वक्त की, इस चोले की कद्र करो। गुरु महाराज ने कहा कि जैसे बरसो से किसी गुफा में पसरे अंधकार को एक छोटा सा दिया जलते ही समाप्त कर देता है उसी प्रकार इंसान के अंधेरे रूपी जीवन को भी गुरु की शरणाई एक क्षण में प्रकाशित कर सकती हो।उन्होंने आह्वान करते हुए कहा कि असली मक्का,असली मदीना,असल मन्दिर,असल गंगा आपके अपने अंदर ही है।

जरूरत से ज्यादा संग्रह आपको दुखी ही करेगा। केवल उतने की आस करो कि आप भी भूखे ना रहो और आपके दर पर आने वाला भी भूखा ना जाए।संग्रह ज्यादा नही होगा तो लोभ भी नही उपजेगा। अपने जीवन का नियम बनाओ कि जो आपके पास है उसको उसके साथ बाटोंगे जिसके पास वो वस्तु नही है। अच्छा करने की आदत डालो। उन्होंने साध संगत से सामाजिक बुराइयों को नेस्तनाबूद करने का आह्वान करते हुए कहा की भ्रूण हत्या जैसे पापों को मिटाओ। पौधरोपण करो और पर्यावरण व जल का संरक्षण करो।


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