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समरसता और संस्कार रूपी दवा देने घर से निकल जा रहे वैद्य मामनचंद

जज्बा और जोश हो तो ऐसा। सफेद धोती कुर्ता काले रंग की नेहरू कट और सिर पर सफेद टोपी पहने 91 वर्षीय बुजुर्ग की दिनचर्या को जैसे ठंड और बरसात भी नहीं रोक पाते।

By JagranEdited By: Published: Sun, 23 Jan 2022 08:07 PM (IST)Updated: Sun, 23 Jan 2022 08:07 PM (IST)
समरसता और संस्कार रूपी दवा देने घर से निकल जा रहे वैद्य मामनचंद
समरसता और संस्कार रूपी दवा देने घर से निकल जा रहे वैद्य मामनचंद

सुरेश मेहरा, भिवानी

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जज्बा और जोश हो तो ऐसा। सफेद धोती, कुर्ता, काले रंग की नेहरू कट और सिर पर सफेद टोपी पहने 91 वर्षीय बुजुर्ग की दिनचर्या को जैसे ठंड और बरसात भी नहीं रोक पाते। जी हां हम बात कर रहे हैं वैद्य मामनंचद। नेताजी सुभाषचंद्र बोस, देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी, विनोबा भावे जैसे नेताओं को भिवानी की पवित्र भूमि पर देख और सुन चुके ये बुजुर्ग सुबह होते ही अपना झोला उठा घर से निकल पड़ते हैं। जरूरतमंदों को देशी जड़ी बूटी ही नहीं ये सदभाव, समरसता और आपसी सौहार्द भी बांटते हैं। विशेष कर महिलाओं, बच्चों को संस्कारी बनाना जैसे इनकी दिनचर्या में शुमार हो चुका है। उनको इस बात का मलाल भी है कि हमारे नेताओं ने जिस तरह के भारत का सपना देखा था वैसा भारत आज तक नहीं बन पाया है। वैद्य मामनचंद का घर शहर में गेड़ पावर हाउस के सामने गली में ही है। आलस्य तो जैसे इनके पास नहीं फटकता। नित्य सुबह पांच बजे उठ जाना। नहा धो कर भोजन आदि कर ये घर से निकलते हैं तो बस इनका एक ही उद्देश्य होता है सेवा कार्य। जड़ी बूटी भी ये खुद तैयार करते हैं। इन सबसे बढ़ कर ये घर-घर जो सदभाव, समरसता और संस्कारों की शिक्षा बांटते हैं वह वास्तव में सराहनीय है। उनकी देशी बूटी वाले बाबा के रूप में है। वह कहते हैं हमारे जमाने के जवानों ने आजादी के संघर्ष में जेल भी काटी पर हमने जेल न सही देश की सेवा में हमेशा काम किया ओर आज भी जारी है। नेताजी सुभाषचंद्र बोस, महात्मा गांधी का समरसता का संदेश पहुंचा रहे घर-घर :

वैद्य मामनचंद रविवार को दैनिक जागरण कार्यालय पहुंचे और आजादी के संघर्ष के दौर में नेताजी सुभाषचंद्र बोस, पंडित जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी, विनोबा भावे जैसे नेताओं से मिले अनुभव सांझा किए। उन्होंने बताया कि वह कोई 13-14 साल के रहे होंगे उस समय नेताजी सुभाष चंद्र बोस भिवानी कटला में आए थे। उनके आने की सूचना से जैसे पूरा शहर उमड़ पड़ा था। उन्होंने कहा था आजादी के लिए संघर्ष के साथ हम सब में आपसी सदभाव, समरसता बहुत जरूरी है। उन्होंने युवाओं में जोश भरा था उसे भुलाया नहीं जा सकता। कुछ दिन बाद यहां पर पंडित जवाहरलाल भी भिवानी आए थे। वे यहां पर जवाहर चौक में आए थे। उन्होंने भी अपने भाषण में संदेश दिया था कि आजादी के लिए मिलजुल कर संघर्ष जरूरी है भिवानी जैसे क्षेत्र के लोगों का इस आंदोलन में योगदान उनको यहां तक खींच लाया है। स्वतंत्रता सेनानी पंडित नेकीराम शर्मा की अगवाई में यहां के युवा आजादी के आंदोलन में हमेशा अग्रणी रहे। यही वजह रही कि महात्मा गांधी भी भिवानी में दो बार आए। विनोबा भावे ने जो भूदान आंदोलन चलाया था उसमें भी आपसी सद्भाव और समरसता का जो संदेश था उसने मुझे ही नहीं आम लोगों को प्रभावित किया और बड़े जमीदार भूदान के लिए आगे आए थे। उनकी शिक्षाओं, आदर्शों का असर उनपर इस कदर रहा कि वह आज भी उनके सिद्धांतों पर चल कर समाज में समरसता, सद्भाव का संदेश दे रहे हैं। यह उनके जीवन का मिशन बन चुका है।


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