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आत्ममंथन कर सकारात्मक पहल के साथ स्थापित करें आदर्श माहौल

जागरण संवाददाता, झज्जर : आखिर बच्चों से उनका बचपन छीनकर आज हम उनके लिए कैसा भविष्य तलाश्

By JagranEdited By: Published: Wed, 24 Jan 2018 11:18 PM (IST)Updated: Wed, 24 Jan 2018 11:18 PM (IST)
आत्ममंथन कर सकारात्मक पहल के साथ स्थापित करें आदर्श माहौल
आत्ममंथन कर सकारात्मक पहल के साथ स्थापित करें आदर्श माहौल

जागरण संवाददाता, झज्जर : आखिर बच्चों से उनका बचपन छीनकर आज हम उनके लिए कैसा भविष्य तलाश कर रहे हैं। स्थिति कुछ इस तरह से है कि स्कूल अपने ब्रांड की ¨चता करें और अभिभावक कमाने में व्यस्त रहें तथा बच्चों पर इतना अधिक दबाव हो कि वे बेहतर अंकों के साथ पास हों। कुल मिलाकर इस परिस्थिति के कारण साल-दर-साल खतरनाक परिणाम सामने आने लगे हैं। परीक्षाओं से पहले और बाद में छात्रों द्वारा उठाए जाने वाले कदम एक बड़ा गहन ¨चतन का विषय है। आज जब हम खबरों पर नजर डालते हैं, तो यहीं लगता है कि चिड़ियों-से चहचहाते बच्चों को शायद बुरी नजर लग गयी है। बचपन का यह बिगड़ता रूप उच्च शिक्षा तक भयावह स्थिति पैदा कर रहा है। समय की मांग है कि बच्चों को मरने-मारने से बचाने के लिए स्कूलों और सरकारों के साथ समाज को आत्ममंथन कर सकारात्मक पहल करनी चाहिए। जिसके लिए जरूरी है कि समाज की हर कड़ी अपने स्तर पर जिम्मेवारी का निर्वाह करते हुए आदर्श माहौल

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स्थापित करें।

इसी संदर्भ में बुधवार को दैनिक जागरण कार्यालय में एक पैनल डिस्कशन का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता सहोदय कॉम्पलैक्स के अध्यक्ष एवं डीएच लारेंस शैक्षणिक संस्थान के संचालक रमेश रोहिल्ला द्वारा की गई। जिसमें तमाम पहलुओं को लेकर विस्तार पूर्वक चरचा हुई। मूल रूप से यह भी आया कि अभिभावकों को भी स्कूल एवं विद्याíथयों के साथ-साथ जिम्मेवार बनना होगा। अगर समय रहते ऐसा कदम नहीं उठाया गया तो भविष्य में परिणाम और अधिक घातक हो सकते हैं।

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परीक्षा के दौरान अभिभावक बनें मददगार

फिजिक्स विषय विशेषज्ञ विश्वेंद्र ¨सह के मुताबिक साल का ये वो समय होता है जब माता पिता और बच्चे परीक्षा के दबाव का ताप महसूस करने लगते हैं। जबकि होना यह चाहिए कि अभिभावक बच्चे की परीक्षा के दौरान उसके मददगार बनें। याद रखिए, बच्चा इम्तिहान में अपने प्रदर्शन को लेकर पहले से ही ¨चता और तनाव में रहता है। इस मोड़ पर अभिभावक के रूप में आप ये कर सकते हैं:

- पढ़ाई का एक टाइम टेबल बनाने में अपने बच्चे की मदद करें जिससे उससे अपने विषयों को रिवाइज करने का पर्याप्त समय मिल जाए

- अध्ययन सामग्री को रिवाइ•ा करने में बच्चे की मदद करें।

- उन्हें स्वस्थ और मुस्तैद रकने के लिए उन्हें पर्याप्त और पोषक आहार खिलाएं

- उसके नींद के पैटर्न की निगरानी रखें और ये सुनिश्चित करें कि उसे पर्याप्त आराम मिल सके

बच्चों को करे प्रोत्साहित

कैमिस्ट्री विषय विशेषज्ञ एके मिश्रा के मुताबिक परीक्षा दिनों की बात हो या अन्य दिनों की। बच्चों को हमेशा ही अपने परिवार से स्पोर्ट की आवश्यकता होती है। अगर बच्चे की मां बेशक ही उसे पढ़ा नहीं पाए। लेकिन भावनात्मक रूप से जुड़ाव जरूर बना रहें। ऐसे में अभिभावक यह करें-

- बच्चे को भरोसा दिलाते रहें और उसे भावनात्मक स्पोर्ट देते रहें जिसकी उसे अपनी ¨चताओं और आशंकाओं से निकलने के लिए बहुत •ारूरत होती है।

- अभिवावक बच्चों पर हर समय ये दबाव डालने लगते हैं कि इस बार 90 फीसद से कम नहीं आना चाहिए, ऐसा नहीं होना चाहिए।

- कई बार बहुत कुछ आता होता है लेकिन वो परीक्षा में अच्छा नहीं कर पाते हैं, इसलिए जुड़ाव बनाए रखें।

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सभी पक्षों को पहले ये समझने की जरूरत है कि हर बच्चा अपने आप में अलग है और हर बच्चे की अपनी साम‌र्थ्य और प्रतिभा है। अभिभावकों को भी समझना चाहिए कि शानदार अंक लाए बिना भी लोग अपना जीवन जी लेते हैं और अच्छा जीवन भी बिता पाते हैं। पढ़ाई लिखाई सिर्फ जीवन का एक हिस्सा भर है, पूरी ¨जदगी वो नहीं है। बच्चे के साम‌र्थ्य को स्वीकार करना और उस दायरे में संभावनाओं की तलाश करना ही बच्चे की मदद का एक सही तरीका है। अभिभावक के रूप में अकादमिक सफलता या विफलता के बारे में अपने विचारों को लेकर स्पष्ट हों। अभिभावक के रूप में सबसे अच्छा यही है कि आप इस बात पर ज्यादा ध्यान दें कि आपका बच्चा समाज में एक समझदार और सहृदय व्यक्ति बने।

-कुलमीत धनखड़, चेयरमैन, कुलदीप ¨सह मेमोरियल स्कूल।

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बच्चों को नियंत्रित करने की कोशिश ना करें और उन्हें खुद से पढ़ने का अवसर दें। महत्वपूर्ण ये है कि उन्हें अपनी पढ़ाई के प्रति •ाम्मिेदारी का अहसास होने दें। लिहा•ा अत्यधिक निगरानी और निर्देशन उनके लिए बहुत अधिक कारगर नहीं साबित होता है। उन्हें यह अहसास कराइए कि अगर उन्हें कोई विषय या बात समझ नहीं आती तो वे आपके पास आ सकते हैं और उन्हें इम्तिहान को लेकर ¨चतित होने या घबराने की •ारूरत नहीं है। ये सही है अगर बच्चा पढ़ाई से ब्रेक लेकर फोन पर अपना कोई मैसेज देखता है या कुछ देर के लिए इंटरनेट कर लेता है। लेकिन इंटरनेट और फोन पर कितना समय बिताना है इसे लेकर कुछ आत्म नियंत्रण तो होना ही चाहिए। इसके बदले आप उन्हें कुछ समय के लिए टहल आने या संगीत सुनने की सलाह भी दे सकते हैं। इससे आपका बच्चा तरोताजा महसूस कर सकता है। अभिभावक के रूप में सबसे अच्छी बात यही है कि उन्हें अपनी कार्रवाइयों के प्रति जवाबदेह महसूस कराएं। ताकि उससे आपसे जुड़ाव महसूस हो।

-महिपाल , चेयरमैन, संस्कारम स्कूल।

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बच्चों पर भावनात्मक या मानसिक दबाव ना बनाए। हां, उन्हें पढाई के लिए प्रोत्साहित जरूर करें। अपने अनुभव के आधार पर इजी ट्रिक्स बताए, जिससे उनकी मदद हो सके। बच्चों की क्षमता के अनुरूप ही अपेक्षाएं रखें। अपनी अधूरी इच्छाओं को थोपने की कोशिश ना करें, जिससे बच्चे झेल ना पाए। बच्चों को घर में पढ़ाई का अच्छा और शांत माहौल दे। जहां मेहमानों की आवाजाही ना हो। ध्यान भंग करने वाली सभी चीजों से दूर रखें। परीक्षा के वक्त बच्चों से बात करे, उनकी समस्या का हल निकालें। इससे बच्चों को मोरल सपोर्ट मिलेगा। बच्चों का मार्गदर्शन करना समय-समय पर जरूरी है। इसके अलावा अभिभावकों का भी संयमित रहना जरूरी है। इस मानसिकता का उपयोग कभी ना करें कि आपके बार-बार कहने से वह पढ़ लेगा। बच्चे पढ़ाई को बोझ नहीं, खेल की तरह लें, ऐसा माहौल दे। बच्चों की असफलता या कम नम्बर आने पर निराश होकर अपनी उदासी व्यक्त ना करें। ना ही उनको ताना मारे और ना ही मजाक बनाए। उन्हें यह समझाए की असफलता का मलतब जीवन समाप्त होना नहीं होता।

- रमेश रोहिल्ला, प्रधान, सहोदय कॉम्पलैक्स।

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परीक्षा के साथ माता-पिता भी मानसिक परीक्षा के दौर से निकलते है। इसलिए दोनों को विशेष ध्यान देना चाहिए। परीक्षा के दौरान छात्रों को जितना हो सके उतना ही पढ़ना चाहिए। छात्रों को इन दिनों फोन, कंप्यूटर, गैजट्स के साथ ज्यादा समय नहीं बिताना चाहिए। हालांकि अभिभावकों के सामने सबसे बड़ी समस्या आती है कि बच्चों को गैजेट्स से दूर कैसे करें। अधिकांश अभिभावक इस मामले में बच्चों से ज्यादा परेशान रहते हैं। हालांकि इस मामले में अभिभावकों को सरल रुख अपनाना चाहिए। उन्हें उनके उपयोग की जानकारी एकत्रित करने के लिए एक सीमा में इनके उपयोग की छूट देनी चाहिए। बच्चों को भी खुद प्रयास करना चाहिए कि परीक्षा टाइम में वे सोशल मीडिया आदि से दूर रहें। चूंकि इससे एकाग्रता प्रभावित होती है।

- नवींद्र कुमार , निदेशक, द हाइट शैक्षणिक संस्थान।

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अभिभावक यह मानसिकता छोड़ दें कि बच्चे के सामने परीक्षा का हौवा खड़ा करने पर वह पढ़ाई ज्यादा करेगा। हर समय उसके पीछे न पड़ें। खास तौर पर इन दिनों में बच्चे के साथ संवाद बना कर रखें। पढ़ाई के बीच थोड़ा थोड़ा ब्रेक लेने को कहें। बच्चे की तुलना पड़ोसी या रिश्तेदार के बच्चों से न करें। यदि लगता है कि आप के बच्चे को काउंसि¨लग की जरुरत है तो देर न करें।

-ऋषि प्रकार, प्राचार्य, ब्राइट मिशन स्कूल, छुछकवास।

यह बनते हैं तनाव के कारण

- इतनी मेहनत के बाद भी नंबर कम आ गये तो।

- मेरा प्रतियोगी मुझसे आगे निकल गया तो पेरेंट्स क्या कहेंगे।

- समय ही कितना कम बचा है परीक्षा में।

- स्कूल की पढ़ाई समझ में ही नहीं आई, इसलिए आत्मविश्वास भी कम हो रहा है।

- परीक्षा के दौरान पढ़ा हुआ सब भूल गया तो।

- पता नहीं कैसा पेपर आएगा।

- याद करते ही सब भूल जाता हूँ, अब क्या करू।

- पेरेंट्स की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया तो।

- मेहनत तो पूरी की है, याद भी है, लेकिन पता नहीं परीक्षा में बेस्ट क्यों नहीं कर पाता।

- कक्षा में सर्वोच्च स्थान नहीं प्राप्त कर पाया तो लोग क्या कहेंगे।


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