पुलिस रिपोर्ट तक सिमटी मानवाधिकार आयोग की कार्रवाई
जागरण संवाददाता, अंबाला शहर : भले ही न्याय के लिए पीड़ित पक्ष मानवाधिकार आयोग तक दौड़ लगाकर थक जाते हैं, लेकिन न्याय कोर्ट में ही मिलता है।
जागरण संवाददाता, अंबाला शहर : भले ही न्याय के लिए पीड़ित पक्ष मानवाधिकार आयोग तक दौड़ लगाते हैं लेकिन न्याय नहीं मिलने के कारण लोगों को कोर्ट का ही दरवाजा खटखटाना पड़ता है। मानवाधिकार आयोग से कोई अधिकारी धरातल की स्थिति या पड़ताल करने नहीं पहुंचता और डीएसपी की रिपोर्ट पर ही फाइल बंद हो जाती है। जबकि पीड़ित इंसाफ की उम्मीद में ही मानवाधिकार आयोग में अपनी शिकायत रखता है।
एक मामला -
शहजादपुर क्षेत्र के एक गांव में एक मां और बहन ने मानवाधिकार आयोग में शिकायत रखी थी। इसमें आरोप लगाया कि उसके बेटे का पत्नी ने मर्डर कराया है और आरोपिता के बयानों पर ही पुलिस ने कार्रवाई कर दी। पीड़िता का कहना था कि उनके बेटे की पत्नी के किसी संबंधी के साथ नाजायज संबंध थे। बेटे को पता चलने पर एक पंचायत हुई। उसी पंचायत के कुछ दिन बाद बेटा लापता हो गया और करीब एक सप्ताह बाद उसके बेटे का शव खेतों में मिला था। पुलिस ने बेटे की पत्नी के बयानों पर ही केस रफा-दफा कर दिया। जबकि मां-बहन ने पुत्र वधू पर हत्या कराने के आरोप जड़े थे। मामले में मानवाधिकार आयोग का कोई अधिकारी नहीं पहुंचा और पुलिस रिपोर्ट पर फाइल स्थगित कर दी गई।
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दूसरा मामला -
यमुनानगर के एक गांव का युवक जिले के एक नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती था। वहां पर इलाज के बजाय मारपीट होने लगी। हालत खराब होने पर एमएम अस्पताल में दाखिल कराया गया। उसके बाद नशा मुक्ति केंद्र वाले परिवार के सदस्य बताकर युवक को अस्पताल से ले आए। परिजन जब अस्पताल पहुंचे तो उन्हें नशा मुक्ति केंद्र वालों ने देने से मना कर दिया। इसी दौरान युवक ने दम तोड़ दिया। पीड़ित परिवार ने मामले में कार्रवाई के लिए मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज कराई। बताया गया कि नशा मुक्ति केंद्र में अमानवीय व्यवहार हुआ है। उसके बाद भी मौका करने कोई अधिकारी नहीं पहुंचता। वहां भी पुलिस की रिपोर्ट के बाद फाइल को बंद कर दिया गया।
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फोटो - 9
मेरे पास चार ऐसे मामले थे, जिनमें पीड़ित पक्ष मानवाधिकार आयोग के पास गुहार लगा चुके हैं। लेकिन मामले की तह तक जांच करने के लिए मानवाधिकार से कोई अधिकारी नहीं पहुंचा। मानवाधिकार ने डीएसपी की रिपोर्ट पर ही मामलों को रद कर दिया। जबकि पुलिस से असंतुष्ट होकर ही पीड़ित मानवाधिकार आयोग से इंसाफ की उम्मीद रखता है।अब उन्हें मामले में दोबारा जांच के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा है।
ओपी शर्मा, एडवोकेट