रोती बिलखती बुजुर्ग मां बोली, पुत उठ जा, मैं तेरे लई रोटी पका दई ऐ सास ने कहा-ओ मेरे पुत्रा, मैं प्रीती नूं की जवाब दे वा गीं
हरीश कोचर, अंबाला श्रीनगर के गुरेज सेक्टर में आतंकियों के साथ हुई मुठभेड़ में
हरीश कोचर, अंबाला
श्रीनगर के गुरेज सेक्टर में आतंकियों के साथ हुई मुठभेड़ में जान गंवाने वाले तेपला निवासी विक्रमजीत की शहादत पर हर किसी को नाज है, लेकिन परिजनों का बेटे को याद कर रो-रोकर बुरा हाल हो रहा है। बृहस्पतिवार को जब शहीद का अंतिम संस्कार करने के लिए शव श्मशान घाट में पहुंचा तो उसके पास में ही उसकी बुजुर्ग मां और सास बैठी हुई थी। मां तो बस यही कह रही थी कि चल पुत उठ जा, मैं तेरे लई रोटी पका दई ऐ, तू रोटी खा ले। तूं ता मैंनू तीन दिनां तो फोन वी नई कीता न कोई गल वात कीती। वहीं सास कह रही थी कि मैं प्रीती नूं कि जवाब देवा गीं। ओ तैनू तो सारे सोनी-सोनी करण, हुण अप्पा किनू सोनी कहके बुलावांगे। मां-सास के अलावा विक्रमजीत का भाई, पत्नी व पिता भी बस पुरानी यादों को याद कर आंखों से आंसू बहा रहे थे।
भाई ने कहा तूं उठ, मैं यहां लेटता हूं
विक्रमजीत के छोटे भाई मोनू ¨सह को सुबह से होश नहीं है। उसकी आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले थे। श्मशान में उसने अपने भाई का तिरंगे में लिपटा चेहरा देखा तो उसकी चीखें निकल गई। शव देखते ही उसने सबसे पहले बस यही कहा कि सोनी उठ जा यार, मैं तेरी था लेट जा गा। तेरे नाल ही ता घर दी रौनक सी। तू चलिया गया ता मैं क्ला की करागां। तूं छुट्टी लै के आ जांदा, मैं तेरी था ड्यूटी से चला ज्यांदा। पर तूं ता मैंनू कुछ भी दसिया ही नहीं। उसने अपने चचेरे भाईयों से कहा या ऐनूं कहो कि उठ के मेरे नाल गल बात करें, नहीं ता मैं वी इदे नाल गल नहीं करांगा।
आखिर टूट गया पिता के सब्र का बांध
बेटा शहीद होने के बाद से ही पिता बल¨जद्र ¨सह ने काफी हिम्मत दिखाई और अपने आंसू थामे रखे। लेकिन जब बेटे की अंतिम विदाई का समां आया तो पिता के सब्र का बांध टूट गया। वह श्मशान में तिरंगे से लिपटे बेटे के शव वाले ताबूत को ही लिपटकर रोने लग गए। सोनी-सोनी करके बेटे को याद कर रहे थे। उन्होंने बस यही बोला कि देख तेरा छोटा भाई मोनू तुझे बुला रहा है और तू उठ नहीं रहा है। पुत इक वार मेरे नाल ता गल कर ले, हुण मैं किनू सोनी कहा।
पत्नी ने दिया पेट में पल रहे बच्चे का वास्ता
शहीद विक्रमजीत की शादी सात महीने पहले 15 जनवरी को ही यमुनानगर जिले की पाबनी गांव निवासी हरप्रती कौर के साथ हुई थी। विक्रमजीत की पत्नी हरप्रीत करीब पांच माह की गर्भवती है। वह शादी के बाद 24 मार्च को छुट्टी से वापस ड्यूटी पर गया था और उसने अक्टूबर में डिलीवरी होने पर छुट्टी लेकर आने का वादा किया था, लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। पत्नी की डिलीवरी होने से पहले विक्रमजीत घर तो आया लेकिन तिरंगे में लिपटा उसका शव पहुंचा। बृहस्पतिवार को जब विक्रम का शव घर पहुंचा तो उसकी पत्नी कुर्सी पर बैठी हुई थी। लेकिन भीड़ के कारण वह अपने पति को ढंग से देख तक नहीं पाई। ऐसे में शव देखने के लिए घर के अंदर धक्का-मुक्की हुई तो सेना कर्मी शव के ताबूत को बाहर ले आए। यहां हरप्रीत कौर को ताबूत खोलकर उसके पति के आखिरी दर्शन करवाए गए। वह उसके चेहरे पर हाथ लगाकर अपने पेट में पल रहे बच्चे का वास्ता दे रही थी कि वह एक बार तो उससे बात कर ले। जब अंतिम संस्कार के लिए शव को ले जाने लगे तो उसकी पत्नी बेसुध हो गई।