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बरसात नहीं होने से धान की रोपाई पर असर, किसान का खर्च बढ़ा

धान की रोपाई आधिकारिक तौर पर 15 जून से शुरू हो जाती है लेकिन इस बार रोपाई जोर नहीं पकड़ पा रही है। बरसात का औसतन से कम रहने का असर सीधे धान की रोपाई पर देखा जा रहा है। जिन इलाकों में नहरी पानी की व्यवस्था उनमें ही रोपाई ठीक ठाक नजर आती है लेकिन जहां खालिस ट्यूबवेल पर निर्भरता है वहां किसानों के लिए मुश्किल कहीं ज्यादा है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 01 Jul 2019 06:40 AM (IST)Updated: Mon, 01 Jul 2019 06:40 AM (IST)
बरसात नहीं होने से धान की रोपाई पर असर, किसान का खर्च बढ़ा
बरसात नहीं होने से धान की रोपाई पर असर, किसान का खर्च बढ़ा

जागरण संवाददाता, अंबाला शहर : धान की रोपाई आधिकारिक तौर पर 15 जून से शुरू हो जाती है लेकिन इस बार रोपाई जोर नहीं पकड़ पा रही है। बरसात का औसतन से कम रहने का असर सीधे धान की रोपाई पर देखा जा रहा है। जिन इलाकों में नहरी पानी की व्यवस्था उनमें ही रोपाई ठीक ठाक नजर आती है लेकिन जहां खालिस ट्यूबवेल पर निर्भरता है वहां किसानों के लिए मुश्किल कहीं ज्यादा है। ऐसे में जून माह के अंत तक जहां किसान लगभग 70 फीसद तक रोपाई रहती थी वह अब आधी यानी 35 फीसद ही नजर आती है। घग्गर व टांगरी जैसी बरसाती नदियों में पानी नहीं होने से यहां से भी किसान को निराश होना पड़ रहा है। जब पहाड़ी क्षेत्रों में बरसात होती थी तो फिर किसान नदियों के पानी से अपने खेत सींचता था लेकिन अब की बार नदियां भी सूखी हैं। जिससे किसान को बिजली और डीजल इंजन पर निर्भर रहना पड़ता है।

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जानकारी मुताबिक जिले के किसान लगभग 82 हजार हेक्टेयर में धान की फसल लेता है। हालांकि, कृषि विभाग ने इस बार परंपरागत ढंग से धान की खेती कर रहे किसानों को मक्का की फसल बिजाई का विकल्प दिया है। इस बार करीब 11 हजार हैक्टेयर में मक्का की बिजाई का लक्ष्य रखा गया है।

नहरी पानी की उपलब्धता बेहद सीमित

वहीं, जिले में नहरी पानी से सिचाई क्षेत्र भी बेहद सीमित है जो कि करीब 15 हजार हैक्टेयर में ही नहरी पानी की सिचाई होती है। नग्गल लिफ्ट इरीगेशन स्कीम से ही नहरी पानी किसानों को उपलब्ध होता है। बराड़ा, साहा, शहजादपुर व मुलाना जैसे इलाकों में नहरी पानी उपलब्ध नहीं है। जिससे ज्यादातर किसान ट्यूबवेल व बरसात पर ही निर्भर हैं।

ज्यादातर किसानों ने खाली छोड़े हैं खेत

बरसात के इंतजार में ज्यादातर किसानों ने अभी भी अपने खेत खाली छोड़े हुए हैं। किसानों को बरसात का इंतजार है। गांव में छोटे किसानों के लिए ज्यादा मुश्किल है। जिन के पास पांच एकड़ तक भूमि है उनके लिए तो बरसात का इंतजार कहीं ज्यादा रहता है। छोटे किसानों के पास डीजल खर्च कर रोपाई करने की क्षमता नहीं है। यही हालत ठेके पर खेत लेकर फसल लेने वाले किसानों की भी है।

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गांव में 35 फीसद ही हुई रोपाई

ठरवा गांव के किसान गुरजंट सिंह ने बताया कि गांव में करीब 35 फीसद किसानों ने अभी तक रोपाई की है। डीजल व बिजली से ट्यूबवेल चलाना घाटे का सौदा है। ऐसे में ज्यादातर किसानों के खेत खाली पड़े हुए हैं। जून माह में इस बार बिल्कुल भी बरसात नहीं हुई। ऐसे हालात पहले नहीं देखे।

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नदियों से भी नहीं मिल रहा पानी

किसान शिवदयाल सिंह ने बताया कि इस बार बरसाती नदियों में भी पानी नहीं है जो कि सूखी पड़ी हैं। जिन किसानों ने ट्यूबवेल से धान की रोपाई की है उनकी भी मुश्किल बढ़ेगी। धान के खेत में पानी निरंतर रहना चाहिए अगर ऐसा नहीं होता तो फिर खरपतवार पैदा हो जाता है।


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