लॉकडाउन में बच्चों के लिए गुरु नानक के विचारों पर लिखा साहित्य
लॉकडाउन लगते ही लोग अपने घरों में कैद हो गए। सड़कें सुनसान थी जबकि स्कूल कालेजों पर ताला लगा था वहीं साहित्य जगत से जुड़े लोग नए अनुभव का अहसास कर रहे थे। रूटीन से पूरी तरह से तनावरहित हो गए और सारा फोकस साहित्य पर लगा दिया।
जागरण संवाददाता, अंबाला : लॉकडाउन लगते ही लोग अपने घरों में कैद हो गए। सड़कें सुनसान थी, जबकि स्कूल कालेजों पर ताला लगा था, वहीं साहित्य जगत से जुड़े लोग नए अनुभव का अहसास कर रहे थे। रूटीन से पूरी तरह से तनावरहित हो गए और सारा फोकस साहित्य पर लगा दिया। ऐसे ही एक साहित्यकार हैं अंबाला कैंट के गांधी मेमोरियल नेशनल (जीएमएन) कॉलेज के प्रो. सुदर्शन गासो, जिन्होंने लॉकडाउन अवधि में न सिर्फ बाल साहित्य पर काम किया बल्कि धार्मिक साहित्य पर भी काम किया। ये दोनों किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं।
डॉ. सुदर्शन गासो ने बताया कि साहित्य सृजन के लिए जरूरी है कि एकांत चाहिए। लॉकडाउन एक ऐसा समय था जिसमें एकांत और समय दोनों ही मिल गया। रूटीन से हटकर यह समय ऐसा रहा जिसमें एकाग्र होकर साहित्य के लिए काम किया। बच्चों के लिए साहित्य लिखने का मन हुआ तो खुद को बचपन में ले गया। बालपन की कल्पनाएं क्या होती हैं, सपनों की उड़ान क्या होती है, बच्चे के मन की स्थिति क्या होती है और यह किस तरह पल-पल बदलता है। खुद जहां इसका अनुभव किया, वहीं बच्चों को देखकर बाल साहित्य लिखा। किन्ना सोहणा अंबर लगदै पुस्तक के जरिये कोशिश की बच्चों को उनके बचपन में जीने देना चाहिए। इस पुस्तक के जरिये बताया गया है कि बच्चों को किस तरह से सकारात्मक राह पर ले जाना चाहिए। उन पर अपनी इच्छाओं का बोझ नहीं डालना चाहिए।
इसी तरह गुरु नानक देव दी बाणी दे विचार पर भी पुस्तक लिखी। इसमें गुरु जी के बारे में अध्ययन किया। कुछ पुस्तकों के जरिये तो काफी कुछ ऑनलाइन भी रिसर्च की गई। गुरु नानक देव जी की बाणी (विचार) उस दौर में समाज के लिए कितने लाभकारी थी और उनका आज के परिप्रेक्ष्य में कितनी जरूरत है, इसे समाज के सामने लाने की कोशिश की है। गुरु जी की बाणी जहां सामाजिक सरोकारों को सामने रखती है वहीं समाज के प्रति हर व्यक्ति का उस दौर में क्या नजरिया था और आज क्या है, के बारे में बताया। यदि उनकी बाणी पर आज भी अमल कर लेते हैं तो समाज में पनपी विषमताओं को दूर किया जा सकता है।