¨वदलस परिवार की बढ़ीं दिक्कतें, सुप्रीम कोर्ट में सरकार की स्पेशल लीव मंजूर
ब्रिटिश सरकार की ओर से लीज पर दिए गए 127 नंबर बैंगलो की चार एकड़ जमीन पर कब्जे और अवैध नवनिर्माण के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सरकार की स्पेशल लीव मंजूर हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने 14 फरवरी को सरकार की स्पेशल लीव को मंजूरी देते हुए केस हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया। इससे ¨वदलस परिवार की दिक्कतें अब बढ़ती नजर आ रही हैं।
उमेश भार्गव, अंबाला शहर
ब्रिटिश सरकार की ओर से लीज पर दिए गए 127 नंबर बैंगलो की चार एकड़ जमीन पर कब्जे और अवैध नवनिर्माण के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सरकार की स्पेशल लीव मंजूर हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने 14 फरवरी को सरकार की स्पेशल लीव को मंजूरी देते हुए केस हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया। इससे ¨वदलस परिवार की दिक्कतें अब बढ़ती नजर आ रही हैं। इससे पहले हाईकोर्ट ने 565 दिनों की देरी के कारण केस की सुनवाई से इन्कार कर दिया था। इस मामले में लापरवाही बरतने पर सुप्रीम कोर्ट ने अंबाला की डीसी और नगर निगम आयुक्त और सदर ईओ पर डेढ़ लाख रुपये का जुर्माना ठोंका था। इसे जनवरी में सुप्रीम कोर्ट में जमा कराया गया। 11 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में ¨वदलस परिवार के पक्ष को सुना गया।
क्या है मामला
अंबाला-जगाधरी नेशनल हाईवे पर जनरल पोस्ट ऑफिस के सामने बैंगलो नंबर 127 है। 1904 में ब्रिटिश सरकार ने काले खां को इस बैंगलो की करीब चार एकड़ जमीन लारेंस होटल चलाने के लिए लीज पर दी थी। आरोप हैं कि काले खां ने फर्जी तरीके से 22 जनवरी, 1934 को इस जमीन की रजिस्ट्री ¨वदलस परिवार ने नाम करा दी। ¨वदलस परिवार ने भी जमीन पर मालिकाना हक जताते हुए इस पर जूनियर, सीनियर सेकेंडरी और सेसिल कान्वेंट प्ले-वे तीन अलग-अलग स्कूल खोल दिए। इसके अलावा सेसिल होटल और कई दुकानें और मकान भी बना दिए।
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ऐसे पहुंचा सुप्रीम कोर्ट में विवाद
56 साल यानी 2002 तक इस मामले में नगर निगम के अधिकारी मौन रहे। 9 सितंबर, 2002 में नगर निगम ने इस बैंगलो को खाली करने के आर्डर दिए। 4 अक्टूबर, 2002 को ¨वदलस परिवार से कुलभूषण सिविल कोर्ट चले गए और 26 मार्च, 2008 को कोर्ट ने इस मामले में स्टे जारी कर दिया। हालांकि कोर्ट ने लिखा कि कानूनी तरीके से इसे खाली कराया जा सकता है। मामले में सरकार 2008 में सेशन कोर्ट चली गई लेकिन 29 मई 2010 को वहां भी सिविल कोर्ट के आर्डर को बरकरार रखा गया। 565 दिनों की देरी के साथ इस मामले में सरकार हाईकोर्ट में पहुंची तो हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
सेशन कोर्ट से स्टे आर्डर और हाईकोर्ट से याचिका खारिज करने के बाद ¨वदलस परिवार को लगा कि विवाद खत्म हो गया। इसीलिए ¨वदलस परिवार ने इस जमीन पर बनाई गई दुकानों और मकानों का बतौर मालिक किराया मांगना शुरू कर दिया। तंग होकर किरायेदार राजकुमार और रमेश ने अप्रैल 2017 में लोकायुक्त के पास अपील कर दी। इसमें अंबाला डीसी, सीबीएसई पंचकूला निदेशक, निगम आयुक्त व निदेशक शहरी स्थानीय निकाय को पार्टी बनाया। आरोप लगाए कि यह सभी ¨वदलस परिवार की मदद कर रहे हैं। लोकायुक्त ने पूरे मामले की 45 दिनों के भीतर जांच के निर्देश निदेशक अर्बन लोकल बॉडी को दिए। इसे निदेशक ने अनदेखा कर दिया। इसपर लोकायुक्त ने तत्कालीन निदेशक नितिन यादव को व्यक्तिगत तौर पर तलब किया। फटकार से बचने के लिए निदेशक ने सितंबर 2019 में जमीन की पैमाइस करवाई। वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी करते हुए मौके पर नक्शा बनाया। 25 सितंबर 2017 को लोकायुक्त को रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में लिखा कि समस्त निर्माण नए सिरे से करते हुए ¨वदलस परिवार ने नक्शा ही बदल दिया। लोकायुक्त ने फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका डालने व लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों व कार्रवाई के निर्देश सरकार को दिए थे। इस तरह चार साल बाद सुप्रीम कोर्ट में सरकार गई इसीलिए स्पेशल लीव तो लगाई। लेकिन लापरवाही में आज तक किसी पर कोई कार्रवाई नहीं की।
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फोटो: 08
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की स्पेशल लीव मंजूर कर ली है। 565 दिन की देरी के कारण हाईकोर्ट ने इस केस की सुनवाई से इंकार कर दिया था। सुप्रीम ने इस मामले की सुनवाई के निर्देश भी हाईकोर्ट को दे दिए हैं।
गौरव राजपूत, एडवोकेट।