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फसल अवशेष प्रबंधन के मामले में नजीर हैं सपेड़ा, खुड्डा कलां व गांव लंडा

धान की कटाई के बाद किसानों द्वारा फसल के अवशेष में आग लगाने से वातावरण में फैलने वाला धुआं माहौल को दमघोंटू बना देता है। इसको लेकर कृषि विभाग गांवों में जागरूकता शिविर लगाने से लेकर किसानों पर जुर्माना लगाने तक की कार्रवाई की जाती है। इसके बावजूद समस्या हर साल बनी रहती है। हालांकि, कृषि विज्ञान केंद्र तेपला द्वारा गोद लिए गए गांव सपेड़ा, खुड्डा कलां व लंडा उन किसानों के लिए नजीर से कम नहीं है जो यह कहकर फसल जलाते हैं कि अवशेष का प्रबंधन मुनासिब नहीं है

By JagranEdited By: Published: Sat, 13 Oct 2018 02:01 AM (IST)Updated: Sat, 13 Oct 2018 02:01 AM (IST)
फसल अवशेष प्रबंधन के मामले में नजीर हैं सपेड़ा, खुड्डा कलां व गांव लंडा
फसल अवशेष प्रबंधन के मामले में नजीर हैं सपेड़ा, खुड्डा कलां व गांव लंडा

जागरण संवाददाता, अंबाला शहर

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धान की कटाई के बाद किसानों द्वारा फसल के अवशेष में आग लगाने से वातावरण में फैलने वाला धुआं माहौल को दमघोंटू बना देता है। इसको लेकर कृषि विभाग गांवों में जागरूकता शिविर लगाने से लेकर किसानों पर जुर्माना लगाने तक की कार्रवाई की जाती है। इसके बावजूद समस्या हर साल बनी रहती है। हालांकि, कृषि विज्ञान केंद्र तेपला द्वारा गोद लिए गए गांव सपेड़ा, खुड्डा कलां व लंडा उन किसानों के लिए नजीर से कम नहीं है जो यह कहकर फसल जलाते हैं कि अवशेष का प्रबंधन मुनासिब नहीं है। इन तीनों ही गांवों में किसान क्लब बने हुए हैं और करीब तीन साल से यहां फसल के अवशेष जलाए नहीं जाते बल्कि इनका उपयोग भूमि की उपजाऊ क्षमता बढ़ाने के लिए किया जा रहा है।किसानों ने धान की कटाई के बाद सब्सिडी पर लिए कस्टम हाय¨रग सेंटर उपकरणों से इन अवशेष का प्रबंधन शुरू कर दिया है।

गांव सपेहड़ा के किसान बल¨जद्र ¨सह, मनदीप ¨सह, गगन, सुख¨वद्र व हर¨वद्र ¨सह के मुताबिक कृषि विज्ञान केंद्र के संपर्क में आने के बाद उन्हें पता चला कि फसल के अवशेष के साथ अगली फसल की बिजाई की जा सकती है। तेपला केंद्र के इंजीनियर गुरु प्रेम ने उन्हें फसल अवशेष जलाए जाने से होने वाले नुकसान बारे बताया। पहले केवल पर्यावरण को नुकसान समझते थे लेकिन असल में इसका भूमि के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ रहा था। पहले उनके पास उपकरण नहीं थे लेकिन अब सीएचसी सेंटर के तहत सपेहड़ा में ही के क्लब के पास फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर हैप्पी सीडर, रोटावेटर, मल्चर, पलटाहल आदि छह उपकरण हैं। बड़ी बात है कि इससे फसल के उत्पादन पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। अगले सालों में जब और किसानों के पास ऐसे उपकरण होंगे तो ऐसी घटनाओं में कमी आएगी।

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फसल अवशेष प्रबंधन किसानों के लिए फायदेमंद

- कृषि विज्ञान केंद्र के इंजीनियर गुरु प्रेम के मुताबिक फसल के अवशेष के साथ अगली फसल की बिजाई की जा सकती है। कंबाइन मशीन पर एसएमएस लगाकर फसल की कटाई करने के बाद हैप्पी सीडर से गेहूं की बिजाई की जा सकती है। फसल अवशेष नहीं जलाने से मित्र कीट, पर्यावरण को नुकसान नहीं होता और पानी की बचत रहती है। खरपतवार भी कम होता है। तेपला केंद्र द्वारा गोद लिए गांवों में लगभग 100 फीसद फसल अवशेष प्रबंधन हो रहा है।


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