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नागरिक अस्पताल में चार घंटे दुर्लभ सर्जरी कर दिया मरीजों को जीवनदान

उड़ने के लिए पंख नहीं आसमान नापने की मन में इच्छा शक्ति होनी चाहिए यानी इच्छा शक्ति मजबूत हो तो सीमित साधन और संसाधनों के बावजूद कुछ भी संभव है। जिला नागरिक अस्पताल के सर्जन डा. अंकुश शर्मा और डा. शिवित ने इन पंक्तियों की सार्थकता को प्रमाणित कर दिया है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 06 Jan 2022 08:21 PM (IST)Updated: Thu, 06 Jan 2022 08:21 PM (IST)
नागरिक अस्पताल में चार घंटे दुर्लभ सर्जरी कर दिया मरीजों को जीवनदान
नागरिक अस्पताल में चार घंटे दुर्लभ सर्जरी कर दिया मरीजों को जीवनदान

जागरण संवाददाता, अंबाला शहर : उड़ने के लिए पंख नहीं, आसमान नापने की मन में इच्छा शक्ति होनी चाहिए यानी इच्छा शक्ति मजबूत हो तो सीमित साधन और संसाधनों के बावजूद कुछ भी संभव है। जिला नागरिक अस्पताल के सर्जन डा. अंकुश शर्मा और डा. शिवित ने इन पंक्तियों की सार्थकता को प्रमाणित कर दिया है। दोनों ही डाक्टरों ने सीमित साधन होने के बावजूद जिला नागरिक अस्पताल में अति दुर्लभ सर्जरी कर रविदास नगर अंबाला शहर के 47 वर्षीय सतीश को नया जीवनदान दिया।

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गैंग्रीनस परफोरेटेड एपेंडिक्स विद फोरेटेड सीकम विद फिकल पेरोटिनाइटस बीमारी की यह जिले के तीनों अस्पतालों में पहली सर्जरी है। इस तरह की सर्जरी चंडीगढ़ पीजीआइ चंडीगढ़, राजकीय मेडिकल कालेज एवं अस्पताल सेक्टर-32 या फिर प्राइवेट अस्पतालों में होती आई हैं। मरीज की जान बचाने के लिए इन दोनों डाक्टरों ने जिला नागरिक अस्पताल में ही यह सर्जरी कर दिखाई। अब मरीज पूरी तरह से फिट है और खुद चलने फिरने भी लगा है। मरीजों की पत्नी रानी ने कहा कि नागरिक अस्पताल के डाक्टर उनके लिए किसी भगवान से कम नहीं। डाक्टरों ने ऐसी घड़ी में मेरे पति की जान बचाई जब वह पूरी तरह से हिम्मत हार चुके थे। अब आपरेशन को 11 दिन हो चुके हैं और अब वह चलने-फिरने लगा है। आजकल में मरीज को डिस्चार्ज कर दिया जाएगा। रुपये न होने के कारण तीन दिन इधर-उधर से लेता रहा मरीज दवा

दरअसल सतीश को 22 दिसंबर को पेट में दर्द हुआ। निजी अस्पतालों से टेस्ट और अल्ट्रासाउंड करवाया तो पेट में सूजन नजर आई, लेकिन स्पष्ट कुछ नहीं हुआ। इसके बाद जिला नागरिक अस्पताल में सीटी स्कैन करवाया गया उसमें एपेंडिक्स के लक्षण दिखाई दिए। केस काफी जटिल था इसीलिए इमरजेंसी से मरीज को चंडीगढ़-32 रेफर कर दिया गया। उन्हें बताया गया कि आपरेशन होना है। लेकिन सतीश के पास सर्जरी के रुपये नहीं थे, इसीलिए वह निजी अस्पताल से दर्द की दवा लेते रहे।

इसी कारण हालत बिगड़ने पर 25 दिसंबर को निजी अस्पताल संचालक ने हाथ खड़े कर दिए। ऐसे हाल में सतीश फिर जिला नागरिक अस्पताल पहुंचा। सौभाग्य से उस दिन ड्यूटी पर सर्जन डा. अंकुश थे। उन्होंने मरीज की केस हिस्ट्री देखी और सारा माजरा जाना। सतीश की पत्नी ने हाथ जोड़ते हुए कहा कि पीजीआइ या सेक्टर-32 में सर्जरी के लिए कम से कम 25-30 हजार रुपये खर्च होंगे लेकिन उनके पास इतने रुपये नहीं हैं। इस तरह लिया सर्जरी का निर्णय

मरीज की पत्नी की पीड़ा सुन डा. अंकुश शर्मा ने डा. शिवित से संपर्क साधा। शाम चार बजे मरीज नागरिक अस्पताल आया था और साढ़े छह बजे तक उसके सारे टेस्ट करवाकर व एनिस्थीसिया विशेषज्ञ की राय के बाद 25 की शाम ही आपरेशन शुरू कर दिया गया। करीब चार घंटे तक सर्जरी चली। लेकिन इसके बाद भी डाक्टरों को अनहोनी का डर सता रहा था क्योंकि 48 घंटे बेहद गंभीर थे। यह समय बीत गया लेकिन अभी और भी दिक्कतें थी। अभी फूड पाइप से तरल आहार दिया गया। छह दिन बाद फूड पाइप हटाई गई। मरीज ने जब तक गैस पास नहीं की, तब तक डाक्टरों की सांसें भी अटकी रही। मरीज ने जैसे ही गैस पास की और खुद शौच जाने लगा तो डाक्टरों ने राहत की सांस ली। क्या आई दिक्कतें

आपरेशन थियेटर में जब मरीज का पेट खोला गया तो छोटी व बड़ी आंत के बीच का जंक्शन (एपेंडिक्स) फट चुका था। पूरे शरीर में मल फैल चुका था। इतनी बदबू हो चुकी थी कि आपरेशन थियेटर में खड़ा होना मुश्किल हो गया। उसे साफ करने और सीलने के बाद जब शरीर के अन्य हिस्सों को चेक किया तो इसके साथ 2-3 सेंटीमीटर में अन्य सुराख भी मिले। जहर पूरे शरीर में फैल चुका था। इन सुराख को सीलने के साथ वह दोबारा से फट रहे थे। इसीलिए आपरेशन में चार घंटे लगे।


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