मन की आंखों से कला को पहचान फैला रहे संगीत का जादू
संगीत के लिए नजर की नहीं बल्कि नजरिये की जरूरत होती है। यह पक्तियां 42वें इंटर जोनल युवा महोत्सव की अलग-अलग विधाओं में अपने द्वारा तैयार किए छात्रों को लेकर पहुंचे दिव्यांग संगीत मास्टर राजेंद्र पर बिल्कुल सटीक बैठती है। करनाल निवासी 4
अंशु शर्मा, अंबाला
संगीत के लिए नजर की नहीं, बल्कि नजरिये की जरूरत होती है। यह पक्तियां 42वें इंटर जोनल युवा महोत्सव की अलग-अलग विधाओं में अपने द्वारा तैयार किए छात्रों को लेकर पहुंचे दिव्यांग संगीत मास्टर राजेंद्र पर बिल्कुल सटीक बैठती है। करनाल निवासी 48 वर्षीय राजेंद्र भले ही दोनों आंखों से दिव्यांग हो, लेकिन वह मन की आंखों से छात्रों के अंदर छुपी कला को पहचान लेते हैं। वह जीएमएन कॉलेज की तरफ से हरियाणवी ग्रुप सांग, रागिनी, गजल की प्रस्तुति लेकर पहुंचे थे। मंच पर उतरे राजिद्र के छात्रों ने शानदार प्रदर्शन कर अपने कॉलेज का नाम चमकाया। दैनिक जागरण से बातचीत के दौरान विचार सांझा करते हुए राजेंद्र ने कहा कि बचपन से दिव्यांग हूं। बचपन में संगीत व वाद्ययंत्रों में रूचि थी। टीवी तो कभी अलमारी आदि सामानों पर हाथों से बजाने में मुझे बड़ा मजा आता था। उसी से सुर-ताल की परख हुई। 7 साल की उम्र में जाकर संगीत की शिक्षा व दीक्षा ली और आज इस मुकाम तक पहुंचे।
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वाद्ययंत्र के अलावा गायकी के शौकीन
दिव्यांग राजेंद्र ने बताया कि वह तबला, हरमोनियम, संतूर, सितार, ढोल, बैंजो बजाने के अलावा गायकी के भी शौकीन है। करनाल के राजकीय गर्ल्स हाई अर्बन स्कूल में बतौर संगीत अध्यापक के पद पर कार्यरत है। संगीत में रिआज की सबसे ज्यादा जरुरत है। इस युवा महोत्सव में उनकी गजल की टीम रिकमैंडिड व गजल और हरियाणवी ग्रुप सांग कमैंडिड आए है। वह करनाल गौरव पुरस्कार से सम्मानित है। जल्द ही वह उत्तरी भारत का सबसे बड़ा हरि वल्लभ संगीत सम्मेलन जोकि जालंधर में होना है, उसमें भाग लेंगे। उनका कहना था कि उन्हें बचपन में कमियों का एहसास तो था कितु संगीत क्षेत्र में आगे बढ़ने के दौरान नकारात्मक भाव नहीं आए, क्योंकि संगीत सुनने के लिए आपको आंखों की आवश्यकता नहीं होती। बंद आंखों से जो संगीत की अनुभूति होती है वह खुली आंखों से नहीं होती।