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2 हजार की ओपीडी दवा खिड़की पर 4 फार्मासिस्ट, मरीज को 12 सेकेंड में दवा देने की चुनौती

जागरण संवाददाता, अंबाला शहर जिला नागरिक अस्पताल में रोजाना करीब 2 हजार की ओपीडी हो

By JagranEdited By: Published: Thu, 13 Sep 2018 01:13 AM (IST)Updated: Thu, 13 Sep 2018 01:13 AM (IST)
2 हजार की ओपीडी दवा खिड़की पर 4 फार्मासिस्ट, मरीज को 12 सेकेंड में दवा देने की चुनौती
2 हजार की ओपीडी दवा खिड़की पर 4 फार्मासिस्ट, मरीज को 12 सेकेंड में दवा देने की चुनौती

जागरण संवाददाता, अंबाला शहर

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जिला नागरिक अस्पताल में रोजाना करीब 2 हजार की ओपीडी हो रही है। इन मरीजों को दवा देने का जिम्मा अस्पताल के उन 4 फार्मासिस्ट पर है जिनकी ड्यूटी दवा खिड़की पर होती है। शेष दो पर स्टोर में दवाईयों के वितरण व रिकार्ड मेंटेन करने का काम देखते है। ऐसे में सुबह 8 बजे से 2 बजे यानी छह घंटे की ड्यूटी में दवा खिड़की पर एक मरीज के हिस्से में 500 मरीज आ रहे हैं। चारों फार्मासिस्ट को मिलकर एक घंटे में 300 से ज्यादा मरीजों और प्रत्येक मरीज को 12 सेकेंड में दवा देने की चुनौती है। अब अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर किसी मरीज को दवा सही मिले इसकी कितनी गारंटी है। अगर दवा कुछ और मिल गई तो फिर दोबारा से दवा लेना आसान नहीं है। जबकि एक मरीज को खिड़की तक पहुंचने में लगभग एक घंटा लग रहा है। यहां मरीज के लिए दवा लेना तो फार्मासिस्ट के लिए दवा वितरण करना मानसिक प्रताड़ना से कम नहीं है।

अस्पताल में दवा वितरण के संबंध में चार ¨वडो बनाई हुई हैं। पहले मरीज ओपीडी के लिए जाता है और करीब 10 बजे इन खिड़कियों पर दबाव देखने वाला होता है। जिसके बाद खिड़कियों पर मरीज रोजाना खूब परेशानी झेलते हैं। वहीं, काम के अतिरिक्त बोझ के नीचे दबे फार्मासिस्ट कई बार 2 बजे के बाद भी ¨वडो खोलने को मजबूर हैं। एक फार्मासिस्ट की ड्यूटी गर्भवती महिलाओं की खिड़की पर है। इसके अलावा सीनियर सिटीजन, महिला व पुरुष की खिड़कियां की अलग अलग ¨वडो है।

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नियमित 10 में से 2, इस माह खत्म हो रहा अनुबंध

- 200 बेड अस्पताल में फार्मासिस्ट के 10 पद स्वीकृत हैं लेकिन यहां नियमित दो ही फार्मासिस्ट हैं। चार फार्मासिस्ट को अनुबंध पर रखा हुआ है। इस माह इन चारों अनुबंधित फार्मासिस्ट का अनुबंध खत्म होने जा रहा है। अगर पूर्व में कोई व्यवस्था नहीं की गई तो फिर दवा के लिए मारामारी होना तय है। जबकि फार्मासिस्ट की ड्यूटी न केवल दवाओं तक है बल्कि अस्पताल की इंडोर सेवाएं भी इन पर निर्भर करती हैं। अस्पताल साल भर इंडोर मरीजों से भरा रहता है।

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एक दिन में दवा मिलने की नहीं गारंटी

- अस्पताल में नियमित पद तो 10 में से 8 खाली पड़े हैं और अनुबंध पर भी पद पूरे नहीं भरे जा रहे हैं जिससे यहां मरीजों के लिए दवा लेना मुसीबत बन गया है। जब कोई मरीज सुबह आठ बजे से ओपीडी की लाइन में खड़ा होता है तो उसे पहले तो डॉक्टर नहीं मिलता और कहीं डॉक्टर ने टेस्ट लिख दिए तो उसकी रिपोर्ट एकत्र करते करते उसका पूरा दिन निकल जाएगा। जब डॉक्टर रिपोर्ट देखकर दवा लिखेगा तो तब तक दवा खिड़की का बंद हो जाना तय है।


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