महिला सरपंच के डीएनए टेस्ट पर गुजरात उच्च न्यायालय ने लगाई रोक
महिला का दावा है कि गलत तरीके से उसे हटाया जा रहा है।
शत्रुघ्न शर्मा, अहमदाबाद। महिला सरपंच को तीन संतान होने के शक में पद से बर्खास्त कर डीएनए टेस्ट कराने के तहसील विकास अधिकारी के आदेश पर गुजरात उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है। महिला का दावा है कि गलत तरीके से उसे हटाया जा रहा है, छह साल की बच्ची की मां वह नहीं है, किसी नागरिक की सहमति के बिना डीएनए टेस्ट कराने को भी उसने अदालत में चुनौती दी है।
जानकारी के मुताबिक, अमरेली जिले की कुकावाव तहसील के तोरी गांव की सरपंच ज्योति राठौड के खिलाफ दिसंबर 2016 में तहसील विकास अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराई गई थी कि वह तीन संतान की मां है, इसलिए पंचायत राज कानून में दो संतान की बाध्यता के अनुसार उसे सरपंच पद के अयोग्य घोषित कर देना चाहिए।
शिकायत पर संज्ञान लेते हुए विकास अधिकारी ने सितंबर 2017 में ज्योति को सरपंद पद के अयोग्य घोषित करने के साथ उसे तीसरी संतान नहीं होने की पुष्टि के लिए डीएनए टेस्ट कराने का आदेश दिया। शिकायतकर्ता का कहना है कि ज्योति को तीसरी संतान के रूप में 6 साल की एक बेटी है, उसके जन्म प्रमाण पत्र में माता व पिता का नाम बदल दिया गया है, हालांकि ज्योति का कहना है कि इस बच्ची के माता पिता नीता व भरतभाई हैं जो उसके जन्म प्रमाण पत्र में भी दर्ज है, लेकिन शिकायतकर्ता ज्योति का ही दूसरा नाम नीता बता रहा है।
हाईकोर्ट के न्यायाधीश ए जे शास्त्री ने सरपंच ज्योति की अर्जी पर विकास अधिकारी व राज्य सरकार को जवाब तलब किया है। गौरतलब है कि पंचायत राज अधिनियम के मुताबिक स्थानीय निकाय जनप्रतिनिधियों के लिए दो संतान की बाध्यता है, तीसरी संतान होने पर वह स्थानीय निकाय में किसी पद पर रहने व चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाते हैं।