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गुजकोटॉक कानून के खिलाफ हाइकोर्ट में याचिका दाखिल, बतायी ये वजह

Petition filed against the GCTOC law गुजकोटॉक कानून को लेकर कोर्ट में याचिका दायर की गयी है इस कानून को राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद ने वर्ष 2019 में मंजूरी

By Babita kashyapEdited By: Published: Wed, 09 Sep 2020 12:58 PM (IST)Updated: Wed, 09 Sep 2020 12:58 PM (IST)
गुजकोटॉक कानून के खिलाफ हाइकोर्ट में याचिका दाखिल, बतायी ये वजह
गुजकोटॉक कानून के खिलाफ हाइकोर्ट में याचिका दाखिल, बतायी ये वजह

अहमदाबाद, जागरण संवाददाता। बहुचर्चित गुजरात कंट्रोल ऑफ टेरेरिज्‍म एंड ऑगेनाइज्‍ड क्राइम एक्‍ट (गुजकोटॉक) के खिलाफ हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है जिसमें इस कानून को संविधान विरोधी व पुलिस को अपार शक्ति देने वाला बताया है। पुलिस को बिना मंजूरी फोन टेप करने व 10 साल पहले किये गये अपराध को भी नये मामले के साथ जोड़कर आरोप पत्र बनाने को कानून की दृष्टि से भी गलत बताया गया है।

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 राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दी  थी कानून को मंजूरी 

गुजरात उच्‍च न्‍यायालय के मुख्‍य न्‍यायाधीश विक्रमनाथ व न्‍यायाधीश जे बी पारडीवाला की खंडपीठ के समक्ष दाखिल एक जनहित याचिका गुजरात कंट्रोल ऑफ टेरेरिज्‍म एंड ऑगेनाइज्‍ड क्राइम एक्‍ट गुजकोटॉक को संविधान व कानून विरोधी बताते हुए इसके दुरूपयोग की आशंका जताई गई है। याचिका के आधार पर हाईकोर्ट ने गुजरात सरकार व महाधिवक्‍ता कमल त्रिवेदी को नोटिस भेजकर अगले माह इसकी सुनवाई रखी है। याचिकाकर्ता मौहम्‍मद हुसैन मकराणी बलोच ने अधिवक्‍ता विराट पोपट के माध्‍यम से दायर याचिका में बताया गया है कि राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद ने वर्ष 2019 में [गुजकोटॉक] कानून को मंजूरी दी थी, इस कानून के तहत राज्‍य में कई केस भी दर्ज किये गये हैं। याचिका  में दावा किया गया है कि इस कानून के कई प्रावधान संविधान के विपरीत है इसलिए इसे असंवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए।

  गुजकोटॉक  देता है पुलिस को अपार शक्ति

याचिका में खास इस बात पर जोर दिया गया है कि गुजकोटॉक पुलिस को अपार शक्ति देता है जिससे कानून के दुरूपयोग की आशंका बढ़ जाती है। पुलिस को बिना किसी की इजाजत के फोन टेप करने का अधिकार तथा उसे फिर सबूत के तौर पर अदालत में पेश करने, सह-आरोपी के बयान को ग्राह्य माना जाना तथा आरोपी को अग्रिम जमानत का भी अधिकार नहीं दिया जाना अपने आप में मौलिक अधिकार का हनन है। इस कानून के तहत खुद को निर्दोष सिद्ध करने की जिम्‍मेदारी भी आरोपी पर ही डाली गई है जबकि सामान्‍य कानून यह कहता है कि फरियादी को दोष सिद्ध करना है। साथ ही दस साल पुराने किसी अपराध को भी नये मामले के साथ जोडकर आरोपपत्र दाखिल करना भी पूरी तरह गलत है। इस कानून के प्रावधान भारतीय दंड संहिता विरोधी है इसलिए इसे गैरसंवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए। महाधिवक्‍ता व राज्‍य सरकार को नोटिस जारी कर अगले माह इसकी सुनवाई रखी गई है।

 गुजकोटॉक को लेकर हुई थी लंबे समय तक तनातनी

गौरतलब है कि गुजकोटॉक को लेकर गुजरात सरकार व तत्‍कालीन यूपीए सरकार के बीच लंबे समय तक तनातनी चली थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्‍यमंत्री थे तब सबसे पहले राज्‍यपाल नवलकिशोर शर्मा तथा बाद में राज्‍यपाल डॉ कमला ने इस विधेयक को लटकाकर रखा। राज्‍यपाल ओम प्रकाश कोहली ने इसे स्‍वीक्रत कर राष्‍ट्रपति कोविंद को भेजा था। एक लंबीजद्दोजहद के बाद आतंकवाद व संगठित अपराध विरोधी यह कानून मंजूर हो सका था।


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