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अब अंबा माता के दर्शन के लिए भक्तों को नहीं चढ़नी पड़ेंगी पांच हजार सीढ़ियां

गुजरात में दुनिया की सबसे ऊंची 182 मीटर प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी तथा दुनिया के सबसे विशाल एक लाख 10 हजार की बैठक क्षमता वाले मोटेरा स्टेडियम के बाद अब सौराष्ट्र के जूनागढ़ में एशिया का सबसे लंबा रोपवे तैयार है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 24 Oct 2020 12:13 PM (IST)Updated: Sat, 24 Oct 2020 12:15 PM (IST)
अब अंबा माता के दर्शन के लिए भक्तों को नहीं चढ़नी पड़ेंगी पांच हजार सीढ़ियां
2.3 किमी का सफर आठ मिनट में होगा तय। प्रतीकात्मक

शत्रुघ्न शर्मा, अहमदाबाद। गुजरात के जूनागढ़ के गिरनार पर्वत पर एशिया का सबसे लंबा रोपवे बनकर तैयार है। अब अंबा माता के दर्शन के लिए भक्तों को पांच हजार सीढ़ियां नहीं चढ़नी पड़ेंगी। रोपवे में सवार होकर चंद मिनटों में गिरनार तलहटी से मंदिर की चौखट तक पहुंचा जा सकेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को इसका ऑनलाइन लोकार्पण करेंगे।

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रोपवे की ट्रॉली गिरनार पर्वत की तलहटी से सीधे मां अंबाजी के मंदिर तक पहुंचेगी : गुजरात में दुनिया की सबसे ऊंची 182 मीटर प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी, तथा दुनिया के सबसे विशाल एक लाख 10 हजार की बैठक क्षमता वाले मोटेरा स्टेडियम के बाद अब सौराष्ट्र के जूनागढ़ में एशिया का सबसे लंबा रोपवे तैयार है। इसकी लंबाई 168 मीटर है। 67 मीटर ऊंचे टावर के जरिये रोपवे की ट्रॉली गिरनार पर्वत की तलहटी से सीधे मां अंबाजी के मंदिर तक पहुंचेगी। एक घंटे में 800 लोग गंतव्य तक जा सकेंगे। एक ट्रॉली को 2.3 किमी का सफर तय करने में महज आठ मिनट लगेंगे। रोपवे का सबसे पहले विचार वर्ष 1958 में राजरन कालिदास सेठ को आया था। इसके बाद वर्ष 1968 में इसे हरी झंडी मिली, लेकिन काम शुरू नहीं हो सका। 1983 में जूनागढ़ के जिला कलेक्टर राज्य के पर्यटन निगम को इसका प्रस्ताव भेजा। गुजरात विधानसभा में रोपवे प्रोजेक्ट का सवाल पहली बार तत्कालीन विधायक महेंद्र मशरू ने 1990 में उठाया।

110 करोड़ रुपये की लागत से बना एशिया के सबसे लंबा रोपवे : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए इस प्रोजेक्ट को परवान चढ़ाया। वन विभाग की जमीन पर्यटन विभाग को सौंपी गई तथा 16 मार्च, 2007 को जमीन संपादन का काम पूरा हुआ। गुजरात के स्थापना दिवस एक मई, 2007 को मोदी ने गुजरात गौरव दिवस मनाते हुए रोपवे का शिलान्यास किया। तकनीकी समस्या के चलते राज्य सरकार ने बाद में इस प्रोजेक्ट का काम उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद की कंपनी उषा ब्रेको लिमिटेड को सौंप दिया तथा ऑस्टिया के इंजीनियरों की मदद से रोपवे का काम तेजी से आगे बढ़ा। करीब 110 करोड़ रुपये की लागत से बना एशिया के सबसे लंबा रोपवे शनिवार से विधिवत शुरू हो जाएगा।

इस तरह मिली योजना को मंजूरी : 31 मई, 2008 को गिरनार अभयारण्य घोषित हुआ, जिसके बाद समूचा मामला राज्य सरकार के हाथ से निकलकर केंद्र सरकार के हाथ में चला गया। 20-21 दिसंबर, 2010 को सेंट्रल वाइल्ड लाइफबोर्ड की स्टैं¨डग कमेटी के सदस्य रोपवे की संभावनाओं को जांचने गिरनार आए तथा गिद्धों पर खतरा बताते हुए अपनी रिपोर्ट केंद्र को सौंपी। एक दिसंबर, 2010 को सांसद भावना चीखलिया, सवरेदय नेचर क्लब के अमृत देसाई केंद्र सरकार के तत्कालीन वनमंत्री जयराम रमेश को मिले तथा रोपवे की मंजूरी के लिए चर्चा की। इसके बाद वनमंत्री जयराम जब जूनागढ़ आए तो इन सभी ने फिर उनसे मुलाकात कर यह मुद्दा उठाया, जिसके बाद तुरंत केंद्रीय वाइल्ड लाइफ बोर्ड ने इसकी मंजूरी दे दी।

एक दिन में आठ हजार यात्री उठाएंगे लुत्फ : गुजरात में इससे पहले अंबाजी मंदिर में 1998 से, पावागढ़ में 1986 से तथा सापूताना में एक प्राइवेट रोपवे कार्यरत है। गिरनार पर्वत पर राज्य का चौथा रोपवे शुरू होगा। यह सीमेंट व स्टील से बने नौ सपोर्ट टावर पर टिका होगा। इस पर लगे केबल की साइज 50 एमएम है तथा पूरे रोपवे की लंबाई में दो स्टेशन बनाए गए हैं। आठ लोगों के बैठने की क्षमता वाली 25 ट्रॉलियां यहां लगाई गई हैं, जिनसे हर घंटे 800 यात्रियों को मंदिर तक पहुंचाया जा सकेगा। एक दिन में करीब आठ हजार यात्री रोपवे का लुत्फ उठा सकेंगे।


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