सुविधाओं के अभाव में अस्तित्व खोता जा रहा है कच्छ, 47 गांव हुए वीरान
गुजरात के कच्छ जिले में 47 से भी अधिक गांव वीरान पड़े हैं दरअसल अपनी जरूरतों के पूरा न हाेने के कारण लोग यहां से पलायन कर रहे हैं।
अहमदाबाद, जेएनएन। गुजरात में अपनी अलग पहचान रखने वाले कच्छ जिले के गांव अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं। यह राज्य का सर्वाधिक बड़ा जिला है। इससे समाज शास्त्री चिंतित हैं। यहां के गांवों पर एक दृष्टि करें तो वहां 47 से भी अधिक गांव वीरान पड़े हैं। जहां अब कोई नहीं रहता। इनमें से कुछ गांव तो आजादी के बाद से ही उज़ड गये हैं। अपनी जरूरतों के पूरी न होने पर लोग गांवों से पलायन कर रहे हैं।
शहरों में चाहे जितना वैभवी मकान और ठार-बार हो परन्तु लोगों को इसके प्रति विशेष लगाव रहता ही है। ग्रामीण क्षेत्रों का प्रदूषण मुक्त स्वच्छ वातावरण और प्राकृतिक माहौल शहरी लोगों को अपनी और आकर्षित करता है। इसलिए आजकल फार्म हाउस का चलन बढ़ता जा रहा है। वहीं गांव के लोग अब शहरों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। गांव खाली होते जा रहे हैं। कच्छ जिले के संदर्भ में 2011 की जनगणना के अनुसार कच्छ में कुल 924 में से 877 गांव में मानव बस्ती है। शेष 47 गांव वीरान पड़े हैं। ऐसे गांव का अस्तित्व केवल रिकार्ड में ही है। इसमें बहुत से ऐतिहासिक गांव भी शामिल है। 1961 में कच्छ में आबादी वाले गांवों की संख्या 905 थी। आज यह 877 हो गयी हैं।
कच्छ की कुल 20.92 लाख की आबादी में 13.63 लाख लोग गांवों में रहते हैं। इस संख्या में लगातार कमी आती जा रही है। कच्छ के 106 गांव ऐसे हैं जिनकी आबादी 200 से भी कम है। अर्थात इन गांवों में 60-70 परिवार ही रहते होंगे। जिले की अबडासा, लखपत, भुज एवं नखत्राणा तहसील में ऐसे गाँवों की संख्या अधिक है। भूतकाल में गोकुलिया गांव की बहुत बातें होती थी। परन्तु आज तक इसमें कुछ खास सुधार नहीं हुआ हैं। कच्छ में खेती या पशुपालन करने वाले लोगों के जीवन स्तर में सुधार नहीं हुआ है। जिसके कारण नई पेढ़ी भी गांव में रहने के लिए तैयार नहीं है। इस प्रकार औद्योगिकीकरण और आधुनिकी करण की अंधी दौड के कारण कच्छ के गांवों का अस्तित्व खतम होता जा रहा हैं। इस प्रकार शिक्षा व्यवस्था का अभाव, स्वास्थय सेवा एवं ढांचागत सेवाओं का अभाव, खेती में कम पैदावार कम बरसात और सीमित आप के कारण कच्छ के गांवों के लोग पलापन कर रहे हैं।