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भैयादूज : बहनें करेंगी भाईयों की दीर्घायु की कामना

भैया-दूज बहन-भाई के प्रेम का पर्व है। पांच नवंबर को कार्तिक मास माह शुक्ल पक्ष की द्वितीय को यह पूर्व भारत वर्ष में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। जहां बहनों में इस पर्व को लेकर उत्सुकता रहती हैं, वहीं भाई भी अपनी बहनों के लिए महंगे उपहार खरीदकर भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को मजबूत करने की कामना करते हैं।

By Edited By: Published: Tue, 05 Nov 2013 01:20 PM (IST)Updated: Tue, 05 Nov 2013 01:20 PM (IST)
भैयादूज : बहनें करेंगी भाईयों की दीर्घायु की कामना

वरिष्ठ संवाददाता, रोहतक। भैया-दूज बहन-भाई के प्रेम का पर्व है। पांच नवंबर को कार्तिक मास माह शुक्ल पक्ष की द्वितीय को यह पूर्व भारत वर्ष में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। जहां बहनों में इस पर्व को लेकर उत्सुकता रहती हैं, वहीं भाई भी अपनी बहनों के लिए महंगे उपहार खरीदकर भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को मजबूत करने की कामना करते हैं। भैया-दूज को लेकर बाजारों में उपहार खरीदने के लिए दीवाली की रौनक को लोगों ने कम नहीं होने दिया जा रहा है। भैया-दूज पर्व इस बार विशेष योग लेकर आ रहा है। वृश्चिक राशि में मंगल स्वामी रहेगा, जो बहनों के भाईयों के लिए सुख-समृद्धि और खुशहाली भरा रहेगा। सर्वसिद्धि योग में अगर बहनें अपने भाईयों को तिलक करेंगी और न केवल भाईयों को दीर्घायु मिलेगी बल्कि रिश्तों में स्थिरता भी रहेगी।

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भैया-दूज के लिए विशेष संयोग

मधुसूदन ज्योतिष केंद्र के संचालक आचार्य मधुसूदन के मुताबिक इस बार भैया-दूज पर्व वृश्चिक राशि में मंगल गृह में आ रहा है, जो बहनों के भाईयों के लिए श्रेष्ठ और स्थिर रहेगा। सुबह सात बजकर 42 मिनट से लेकर दस बजकर दो मिनट तक बहनें विशेष पूजा-अर्चना करके अपने भाईयों को तिलक करेंगी तो परिणाम बेहतर रहेंगे। मंगल गृह के अनुसार ही बहनों के भाईयों पर प्रभाव रहता है। अगर बेहतर रहेगा और भाईयों को खुश समृद्धि और लंबी आयु मिलेगी और अगर विपरित रहेगा तो भाईयों पर इसका विपरित प्रभाव पड़ेगा।

ये हैं पूजा की विधि

- बहनें पहले आठ चिरंजीवी की पूजा करें। इसके लिए थाली में आठ ढेरियां बना लें और रोली, मोली व मिठाई रखें।

- इसके बाद यमराज की पूजा भी करेंगे ताकि उनके भाईयों को अकाल मृत्यु से बचाया जा सके।

- यमराज की पूजा के बाद ही बहनें भाईयों को हाथ पर मोली बांधकर तिलक करें और मिठाई खिलाएं।

यह है पौराणिक कथा

बताया जाता है कि भैया-दूज की शुरुआत द्वापर युग से हुई। इस यम द्वितीय भी कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य की संज्ञा से दो संतान थी, पुत्र यमराज व पुत्री यमुना। यमुना और यमराज में बहुत प्रेम था। वह जब भी यमराज से मिलने जाती, उन्हें अपने घर आने को कहती। लेकिन व्यस्तता के चलते यमराज नहीं जा पाते। एक दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीय को यमराज अचानक अपनी बहन यमुना के घर पहुंच गए। यमुना ने अपने भाई का आदर सत्कार करते हुए तिलक लगाया और स्वादिष्ट भोजना भी कराया। यमराज अपनी बहन की सेवा से बहुत प्रसन्न हुए और वर मांगने को कहा। यमुना ने अपने भाई के आग्रह को स्वीकार करते हुए कहा कि आप यह वर दीजिए कि प्रतिवर्ष आज के दिन आप यहां आएंगे और मेरा आतिथ्य स्वीकार करेंगे। वहीं इस दिन जो भाई अपनी बहन के घर जाकर आतिथ्य स्वीकार करेगा, आप उसे दीर्घायु का आशीर्वाद देंगे। तभी से हर वर्ष कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीय को भैया-दूज को पर्व मनाया जाता है।

ओपी वशिष्ठ

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