वेब समीक्षा: सास-बहु का ड्रामा नहीं, एकता कपूर का ये 'होम' है मिडिल क्लास की कहानी घर-घर की
एकता कपूर के नये वेब शो होम ने उसी घर की कहानी को बयां करने की कोशिश की है, जहां कहानी मकान की पृष्ठभूमि की है, लेकिन जज़्बात होम यानि घर के हैं।
होम
कलाकार: अनु कपूर, सुप्रिया पिलगांवकर, अमोल पराशर, चेतना पांडे, परीक्षित साहनी
निर्देशक: हबीब फैजल
निर्माता: एकता कपूर
चैनल: आॅल्ट बालाजी
स्टार: 3.5 स्टार
अनुप्रिया वर्मा, मुंबई। जावेद अख्तर ने फ़िल्म साथ-साथ का वह गीत लिखा है, 'ये तेरा घर, ये मेरा घर... किसी को देखना हो गर... तो पहले आके देख ले मेरी नज़र, तेरी नज़र'। दरअसल, हकीकत भी यही है कि घर बनाने के लिए नज़र चाहिए, इमारत नहीं। नज़र है तो छोटी सी दुनिया भी सोना है, और नज़र न हो तो ऊंची ईमारत भी माटी का खिलौना है। एकता कपूर के नये वेब शो 'होम' ने उसी घर की कहानी को बयां करने की कोशिश की है, जहां कहानी मकान की पृष्ठभूमि की है, लेकिन जज़्बात 'होम' यानि घर के हैं। एक शहर जहां कैलेंडर में साल बदलने से पहले इंसान बदल जाते हैं, किरायेदार बदल जाते हैं। जहां के कैलेंडर में साल 12 महीनों में नहीं 11 महीनों में पूरा होता है। ऐसे शहर में सपने भी 11 महीनों का सफर लेकर ही आंखों में आते हैं। ऐसे में शहर मुंबई आने के बाद हर आंखों को एक सपना दिखाता है, अपना घर! फिर चाहे वह छोटा सा ही आशियाना क्यों न हो।एकता कपूर ने 'होम' के जरिये हबीब फैज़ल के निर्देशन में 'होम' की उस दुनिया और सपने को सहेजने की कोशिश की है।
एकता कपूर इस लिहाज से बधाई की पात्र हैं कि उन्होंने अपने वेब प्लैटफॉर्म के जरिये जहां एक तरफ बोल्ड विषयों को दर्शाना शुरू किया है। वही 'होम', 'हक से' जैसे वेब सीरिज जो दिलचस्प तरीके से सामाजिक और आम इंसानों के मूल्यों को दर्शाते हुए एक अलग ही तस्वीर पेश कर रही हैं। एकता कपूर के 'होम' की ये कहानी उस मिडिल क्लास के तमाम वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है, जो ताउम्र किराये के मकान में रहने के सामाजिक दबाव से बचने के हर संभव प्रयासरत रहता है। 'होम' इस लिहाज से एक सार्थक प्रयास है कि उन्होंने 'होम' के माध्यम से मुंबई व मुंबई महानगर जैसे उन तमाम लोगों की दास्तां प्रस्तुत करने की कोशिश की है, जो जिंदगी भर पाई-पाई जोड़ कर मुंबई में घर खरीदते हैं कि वह आगे अपनी जिंदगी चैन और सुकून से बिता पायेंगे। लेकिन बिल्डर के धोखाधड़ी की वजह से अपना वही सपना चकनाचूर होते अपनी आंखों से देखते हैं।
किसी शायर ने सटीक ही लिखा है इस हालात पर कि 'सोचा था घर बना कर बैठूंगा सुकून से, मगर घर की जरूरतों ने मुसाफिर बना डाला'! उस सपने को कुचलते हुए अपनी आंखों के सामने देखते हैं और कर कुछ नहीं पाते हैं। 'होम' की कहानी मुंबई के कैंपे कोला कंपाउंड की ट्रेजडी की वास्तविक कहानी से प्रभावित है, जिसका निर्देशन हबीब फैज़ल ने रिपोर्टाज अंदाज में ही प्रस्तुत करने की कोशिश की है। उन्होंने अपने इस वेब शो में पूरी कहानी को वास्तविकता के बेहद करीब गढ़ने की कोशिश ही नहीं की, बल्कि कामयाब भी रहे हैं। कैंपे कोला कंपाउंड के लोगों को कोर्ट के आदेश पर जबरदस्ती अपने घरों को खाली करने का आदेश मिला था और किस तरह वहां के लोगों ने एक बड़े संघर्ष को झेला, हबीब ने उसी मर्म को खूबसूरती से उकेरा है। साथ ही दर्शकों को सचेत भी किया है कि आप किस तरह इस शहर में किसी के भी बहकावे में आकर घर खरीदने के सपने को साकार करने के चक्कर में गलत कदम न उठायें और हजार बार सोच समझ कर, परख कर ही घर खरीदें।
'होम' आपको पुराने दौर के धारावाहिक 'कुछ-कुछ हमलोग', 'बुनियाद' जैसे शोज की याद दिलाता है। कहानी सेठी परिवार की है, जहां दादाजी(परीक्षित साहनी) भी हैं। हिमांश सेठी हैं, जो कि रिटायरमेंट के बाद भी इस वजह से नौकरी कर रहे हैं, कि उन्हें अपने बेटे के अमेरिका जाने का सपना पूरा करना है। पत्नी वंदना टिफिन सर्विस करती हैं कि अपने पति की मदद कर पायें। दादाजी क्रांतिकारी वकील हैं, जो अपने उसूलों के पक्के हैं। लेकिन उनके वही उसूूल उन्हें परेशानी में डाल देते हैं। वंश (अमोल पराशर), हिना (चेतना पांडे) बच्चे हैं। 'होम' में वह तमाम उलझने और जीवन की परेशानियां हैं, जिससे एक मिडिल क्लास परिवार जूझ रहा होता है। इसके बावजूद सबको सुकून है कि उनके पास अपना घर तो है, अपनी छत तो है। लेकिन, अचानक उनके सिर पर पहाड़ टूटता है, जब उनकी पूरी कॉलोनी को घर खाली करने का आदेश दिया जाता है। इस बीच किस तरह रियल इस्टेट में घोटाले होते हैं और मिडिल क्लास के सपनों की अर्थी पर बड़े-बड़े नेता, बिल्डर अपनी मतलब की रोटी सेंकते हैं। हबीब ने इसे बहुत ही सहजता से दिखाया है।
एक तरफ हिमांश के 'होम' की लड़ाई तो दूसरी तरफ अपने ही भाई से कम कामयाब होने का द्वंद और उन सबके बीच अपने बेटे के सपने को पूरा न कर पाने की खुन्नस अनु कपूर ने एक पिता के रूप में बखूबी निभाई है। अनु कपूर और सुप्रिया की जोड़ी ताजगी देने के साथ संजीदगी भी बयां करती है। ये जोड़ी शो की आत्मा है। इस लिहाज से भी यह शो देखा जाना चाहिए, कि तमाम परेशानियों के बावजूद आप किस तरह अपने हमसफर से प्यार के दो पल चुरा सकते हैं। अनु और सुप्रिया ने उसे बखूबी निभाया है। परीक्षित ने लंबे समय के बाद वापसी की है और उनकी उपस्थिति शो को और ख़ास बनाती है। ये 'होम' घर की चौड़ाई को आंकड़ों में आंकने से नहीं बना, बल्कि संवेदनाओं की ईट से सजायी गयी है। कहानी वंश के बायोस्कोप से दर्शायी गयी है कि कैसे आज के युवा जिंदगी को सेल्फी मोड में ही लेकर चलते हैं। किस तरह वह सेल्फ सेंर्ट्रड होते हैं और पहले अपने बारे में ही सोचते हैं। लेकिन अपने माता-पिता का संघर्ष, वह एहसास, अपने घर के होने का एहसास उस युवा को परिवार मोड में तब्दील करता है। सेल्फी मोड से किस तरह वंश श्रवण कुमार मोड में वापस आते हैं, इसे भी खूबसूरती और बारीकी से दर्शाने की कामयाब कोशिश की गयी है।
ख़ास बात यह है कि एकता कपूर का यह शो 'कहानी घर घर की' बयां करता है। लेकिन, यह सास-बहू ड्रामा नहीं है, बल्कि उस सर्कस की कहानी है, जिसकी चपेट में हर रोज एक मुंबईकर आता है और न चाहते हुए भी कठपुतलियों की तरह नाचता है। यह शो उन लोगों के लिए भी आइ-ओपनर हैं, जो आंख मूंद कर बहकावे में रियल स्टेट के दलालों के चपेट में आते हैं। मकान से घर बनने की ये कहानी आपके दिलों तक उतरती है। फिलहाल छह एपिसोड में 'होम' कई सवाल खड़े करती है। अगले सीजन का बेसब्री से इंतजार रहेगा और अंत में एक मिडिल क्लास की कलम से... 'वह जज्बातों का इश्तियार नहीं ढूंढ़ता, घर की चाहत होती है उसे जो ताउम्र मकान नहीं ढूंढ़ता'