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Tandav Web Series Review: सियासत की गहराई छूने से चूकी सितारों की भव्यता में डूबी प्राइम की वेब सीरीज़ 'तांडव', पढ़ें पूरा रिव्यू

Tandav Web Series Review तांडव राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को हासिल करने के लिए साम-दाम-दण्ड-भेद का हर हथकंडा अपनाने की कहानी है। मगर बड़ी स्टार कास्ट भव्य दृश्यों और तमाम मसालों के बावजूद सीरीज सियासत की उस गहराई में नहीं उतर पाती।

By Manoj VashisthEdited By: Published: Fri, 15 Jan 2021 01:24 PM (IST)Updated: Sun, 17 Jan 2021 09:10 AM (IST)
Tandav Web Series Review: सियासत की गहराई छूने से चूकी सितारों की भव्यता में डूबी प्राइम की वेब सीरीज़ 'तांडव', पढ़ें पूरा रिव्यू
'तांडव' 14 जनवरी की रात रिलीज़ हो गयी। फोटो- इंस्टाग्राम

मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। अमेज़न प्राइम वीडियो पर पॉलिटिकल थ्रिलर वेब सीरीज़ 'तांडव' 15 जनवरी को रिलीज़ होनी थी, मगर 14 जनवरी को तय समय से कुछ घंटे पहले रिलीज कर दी गयी। सीरीज़ का निर्देशन अली अब्बास ज़फ़र ने किया है, जबकि  सैफ़ अली खान, डिंपल कपाड़िया, कुमुद मिश्रा, तिग्मांशु धूलिया, सुनील ग्रोवर और गौहर खान समेत कई जाने माने कलाकारों ने सीरीज़ में अहम किरदार निभाए हैं। अली का यह डिजिटल डेब्यू भी है। 

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तांडव राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को हासिल करने के लिए साम-दाम-दण्ड-भेद का हर हथकंडा अपनाने की कहानी है। मगर, बड़ी स्टार कास्ट, भव्य दृश्यों और तमाम मसालों के बावजूद सीरीज सियासत की उस गहराई में नहीं उतर पाती, जो एक पॉलिटिकल कहानी को सही मायनों में थ्रिलर बनाती है। तांडव एक सतही पॉलिटिकल थ्रिलर वेब सीरीज़ है, जो दर्शक को बांधे रखने में विफल रहती है।

दोष, तांडव के रचनाकारों का भी नहीं है। पिछले कुछ सालों में जनता ने वास्तविक जीवन में इतने सियासी दाव-पेंच देख लिये हैं कि पॉलिटिकल-थ्रिलर्स को देखने की समझ और नज़रिया दोनों बदल गये हैं और उन्हीं वास्तविक घटनाक्रमों को जब 9 एपिसोड्स की सीरीज़ में जस का तस फैला दिया जाता है तो दिलचस्पी घटना लाज़मी है। फिर चाहे वो जेएनयू के बहाने छात्र राजनीति और मुख्यधारा की सियासत का टकराव हो या सरकार के प्रति किसानों का असंतोष या फिर मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में मीडिया की भूमिका। लेफ्ट, राइट और हमें चाहिए आज़ादी के नारे जनता सब कुछ तो निरंतर देख ही रही है।

तांडव में दो ट्रैक समानांतर चलते हैं, जो सीरीज़ के पात्रों के ज़रिए कहीं-कहीं एक-दूसरे से टकराते भी हैं। एक ट्रैक छात्र राजनीति का है और दूसरा मुख्य धारा की सियासत। छात्र राजनीति वाले ट्रैक पर लेखक गौरव सोलंकी को अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ी होगी, क्योंकि उन्होंने पिछले कुछ सालों में सुर्ख़ियों में रहे छात्र राजनीति के प्रमुख चेहरों और घटनाक्रमों को समाहित करते हुए दृश्य गढ़े हैं। अलबत्ता, मुख्य धारा की राजनीति के दृश्यों को लिखने में कुछ कल्पनाशीलता का ज़रूर उपयोग किया है, मगर प्रेडिक्टेबल होने की वजह से वो प्रभावहीन रह जाते हैं।  

देवकी नंदन (तिग्मांशु धूलिया) देश की सबसे बड़ी पार्टी जनता लोक दल (JLD) के नेता हैं और तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं, चौथी बार बनने जा रहे हैं। मगर, चुनाव के नतीजे आने से ठीक पहले उनकी मौत हो जाती है। देवकी नंदन की मौत इस कहानी का पहला बड़ा ट्विस्ट है। देवकी नंदन की मौत के बाद पार्टी में पॉवर गेम शुरू होता है। बेटा समर प्रताप सिंह (सैफ़ अली ख़ान), छात्र राजनीति के समय से देवकी नंदन के सहयोगी रहे और पार्टी के नम्बर दो नेता गोपाल दास मुंशी (कुमुद मिश्रा) और पार्टी की वरिष्ठ नेता व देवकी नंदन के साथ निजी संबंध रखने वाली अनुराधा किशोर (डिम्पल कपाड़िया) के बीच खेल शुरू हो जाता है, जिसमें अनुराधा बाज़ी मार ले जाती है और पीएम बन जाती है।

अनुराधा ने समर की एक कमज़ोर नस दबाकर रखी है। वो छटपटाकर रह जाता है, मगर अनुराधा के ख़िलाफ़ कोई क़दम नहीं उठा पाता। इसलिए समर 'चाणक्य' बनने का फ़ैसला लेता है, जो 'चंद्रगुप्त' की खोज करके सत्ता हासिल करेगा। पीएम बनने के बाद अनुराधा के सामने अब पार्टी के पुराने दिग्गजों और समर के खेमे को साधकर रखने की चुनौती है। वहीं समर, छात्र नेता शिवा शेखर (मोहम्मद ज़ीशान अय्यूब) में अपना चंद्रगुप्त देखता है, जो किसान आंदोलन के बाद से कैंपस पॉलिटिक्स का पोस्टर बॉय बन चुका है। आगे की कहानी अनुराधा और समर के बीच चल रहे इसी सियासी 'समर' पर आधारित है, जिसके सेनापति समर की पत्नी आएशा (सारा जेन डायस), पीए गुरपाल (सुनील ग्रोवर) और अनुराधा की पीए मैथिली (गौहर ख़ान) हैं। 

तांडव, एक पॉलिटिकल थ्रिलर के रूप में कुछ नया पेश करने में विफल रहती है। राजनीतिक घटनाक्रम भी सदियों पुरानी परिपाटी को दोहराते नजर आते हैं, जिन्हें दर्शक राजनीतिक पृष्ठभूमि पर बनी दर्ज़नों फ़िल्मों में देखते रहे हैं। फिर चाहे वो प्रधानमंत्री देवकी नंदन का रिश्तों से ज़्यादा अहमियत कुर्सी को देना हो या अति महत्वाकांक्षी बेटे समर प्रताप सिंह के साथ तल्ख़ रिश्ते या फिर सियासी सीढ़ियां चढ़ने के लिए रिश्तों की तिजारत हो या अनुराधा किशोर की ख़ुद पीएम बनने की लालसा या विरोधी खेमे के सांसदों को तोड़ने के लिए सौदेबाज़ी। 

पॉलिटिकल थ्रिलर कहानियों में संवादों की बड़ी अहमियत होती है। दृश्यों के हल्केपन को कई बार संवादों से वज़नी बनाया जाता है। मगर, तांडव के संवाद साधारण और सपाट हैं। तांडव का सबसे बड़ा आकर्षण इसकी स्टार कास्ट ही है, जिसकी अगुवाई सैफ़ अली ख़ान और डिम्पल कपाड़िया करते हैं। एक महत्वाकांक्षी, निर्मम और साज़िश-दर-साज़िश करने वाले नेता के रोल में सैफ़ ठीक लगे हैं। हालांकि, नेगेटिव किरदारों में सैफ़ ने जो काम ओमकारा का लंगड़ा त्यागी बनकर कर दिया, वो सैफ़ की अभी तक की अभिनय यात्रा का चरम है, जिसे वो तमाम नेगेटिव किरदार निभाने के बावजूद पीछे नहीं छोड़ सके हैं।

डिम्पल कपाड़िया प्रयोगधर्मी अदाकारा रही हैं और अपने करियर में उन्होंने अभिनय की कई चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया है। अपने डिजिटल डेब्यू में भी डिम्पल निराश नहीं करतीं। अपनी किरदार की गरिमा और धूर्तता को उन्होंने समान रूप से जिया है। विवेकानंद विश्वविद्यालय (VNU) के छात्र नेता शिवा शेखर के किरदार में मोहम्मद ज़ीशान अय्यूब और सना मीर (कृतिका कामरा) ने जान फूंकने की पूरी कोशिश की है। हालांकि, सना मीर का ट्रैक पहले सीज़न में खुलकर सामने नहीं आ पाया।

पीएम देवकी नंदन के किरदार को तिग्मांशु धूलिया ने सहजता से निभाया है। हालांकि, उम्र में सैफ़ अली ख़ान से महज़ तीन साल बड़े तिग्मांशु उनके पिता के किरदार में खटकते भी हैं। समर की पत्नी के रोल में सारा जेन डायस, पीए गुरपाल के रोल में सुनील ग्रोवर और अनुराधा की पीए मैथिली के रोल में गौहर ख़ान फिट लगे हैं। दोनों ही कलाकारों अपनी स्क्रीन इमेज से अलग नज़र आये हैं। ख़ासकर, सुनील को गुरपाल के रूप में देखकर गुत्थी की बिल्कुल याद नहीं आती। 

कुमुद मिश्रा और शोनाली नागरानी ने भी अपने किरदारों के साथ न्याय किया है। डीनो मोरिया, संध्या मृदुल, अमायरा दस्तूर, हितेन तेजवानी और अनूप सोनी के किरदारों को पहले सीज़न में अधिक जगह नहीं मिली है। सम्भवत: अगले सीज़नों में इन किरदारों की और भी परतें खुलेंगी। सीरीज़ के सभी एपिसोड्स में निरंतनर बजने वाला बैकग्राउंड स्टोर दृश्यों का असरदार बनाता है। सुल्तान, गुंडे और टाइगर ज़िंदा है जैसी फ़िल्में निर्देशित करने वाली अली अब्बास ज़फ़र और आर्टिकल 15 जैसी संवेदनशील और इंटेंस फ़िल्म लिखने वाले गौरव सोलंकी से ओटीटी की दुनिया में वाकई तांडव मचाने वाली वेब सीरीज़ की उम्मीद थी। 


कलाकार- डिम्पल कपाड़िया, सैफ़ अली ख़ान, कुमुद मिश्रा, सुनील ग्रोवर, गौहर ख़ान, शोनाली नागरानी, कृतिका कामरा, अनूप सोनी, डीनो मोरिया, संध्या मृदुल आदि। 

निर्देशक- अली अब्बास ज़फ़र

निर्माता- अली अब्बास ज़फ़र और हिमांशु किशन मेहरा। 

वर्डिक्ट- **1/2 (ढाई स्टार)


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