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Exclusive Interview: 'दिल बेकरार' वेब सीरीज में ऐसा कुछ नहीं, जिस पर कोई विवाद हो- राज बब्बर

Dil Bekaraar Raj Babbar Interview राज बब्बर वेटरन एक्ट्रेस पद्मिनी कोल्हापुरे और पूनम ढिल्लों के साथ सई साल बाद स्क्रीन स्पेस शेयर कर रहे हैं। इन दोनों एक्ट्रेसेज के साथ उन्होंने अपने करियर की कुछ बेहद यादगार फिल्मों में काम किया है।

By Manoj VashisthEdited By: Published: Mon, 22 Nov 2021 11:44 AM (IST)Updated: Tue, 30 Nov 2021 12:37 PM (IST)
Exclusive Interview: 'दिल बेकरार' वेब सीरीज में ऐसा कुछ नहीं, जिस पर कोई विवाद हो- राज बब्बर
Raj Babbar in old times and in Dil Bekaraar. Photo- Instagram

मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। सिनेमा और सियासत का सफर कामयाबी के साथ तय करने वाले वेटरन एक्टर राज बब्बर अब डिज्नी प्लस हॉटस्टार की वेब सीरीज दिल बेकरार से ओटीटी की दुनिया में कदम रख रहे हैं। अनुजा चौहान के चर्चित उपन्यास दोज प्राइसी ठाकुर गर्ल्स के इस स्क्रीन रूपांतरण में राज एक रिटायर्ड जज और पांच बेटियों के किरदार में नजर आएंगे। 

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वहीं, वेटरन एक्ट्रेस पद्मिनी कोल्हापुरे और पूनम ढिल्लों के साथ सई साल बाद स्क्रीन स्पेस शेयर कर रहे हैं। इन दोनों एक्ट्रेसेज के साथ राज बब्बर ने अपने करियर की कुछ बेहद यादगार फिल्मों में काम किया है। हबीब फैजल निर्देशित वेब सीरीज में अक्षय ओबेरॉय और सहर बाम्बा मुख्य किरदारों में हैं। सीरीज 26 नवम्बर को प्लेटफॉर्म पर आ रही है। जागरण डॉट कॉम के डिप्टी एडिटर मनोज वशिष्ठ ने इस सीरीज के विभन्न पहलुओं पर राज बब्बर और पद्मिनी कोल्हापुरे से विस्तार से बातचीत की। पेश हैं, उसके अंश-

अस्सी का दौर आप दोनों के करियर का शीर्ष माना जाता है। आप दोनों ने ही कई महत्वपूर्ण फिल्मों में काम किया था। अब दिल बेकरार में उसी दौर को दोबारा जीना कितना नॉस्टेलजिक रहा?

राज बब्बर- जी, मनोज आपने बहुत सही कहा। हमारे लिए इस सीरीज की सबसे बड़ी खासियत ही यही थी, जो एडवांटेज बनकर आयी। एक तो जब हबीब साहब (फैजल) ने बुलाया और सब्जेक्ट सुनाया तो वो जिस दौर को सुना रहे थे, हम उसे देख रहे थे। बहुत खूबसूरत दौर था। उन्होंने सीरीज करने के बारे में पूछा तो हमने कहा- च्वाइस ही नहीं है। मैं इंटरेस्टेड हूं। बात खत्म हो गयी। हम चले आये। मुझे उस समय यह नहीं मालूम था कि इसमें कौन काम कर रहा है। जब बताया गया कि पद्मिनी जी (कोल्हापुरे) और पूनम जी (ढिल्लों) इसमें काम कर रही हैं तो कॉन्फिडेंस लेवल और बढ़ गया।

इन लोगों के साथ ही हम काम करने निकले थे और आपने सही कहा हम लोगों के लिए वही अहम दौर है। हमारी पहचान का दौर भी रहा है। फिर सीरीज में यंग जेनरेशन का पता चला। सहर (बाम्बा) का काम भी मैंने देखा था और अक्षय (ओबेरॉय) का काम भी देखा था। लगा कि बहुत अच्छे लोगों के साथ काम करने का मौका मिलेगा। जब कपड़े पहने और उस माहौल में पहुंचे तो एकदम नॉस्टेलजिक हो गये।

हबीब साहब ने तो हमें उस दौर में पहुंचा दिया था, अब हमारा काम था कि कैसे उस दौर में रूह फूंकते हैं। उसमें हबीब साहब ने हमारी बहुत मदद की और बहुत मेटिकुलस थे। वो जो चाहते थे, आखिर लेकर ही मानते थे। अस्सी का दौर हमारे के लिए तो बहुत प्यारा था और जब उसे रीक्रिएट करने का मौका मिला तो सोने पे सुहागा वाली बात हो गयी। दर्शक जब इस दौर को देखेगा तो हतप्रभ रह जाएगा कि इस दौर की जो खूबसूरती, मासूमियत है, जो सच्चाई है, इसे दिखाने में प्रोडक्शन टीम  ने जो दिया है, वो लोगों को बहुत पसंद आने वाला है।

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पद्मिनी कोल्हापुरे- इस सीरीज में उन्होंने (हबाब फैजल) जिस तरह से दर्शाया है, उससे लगता है कि वो एक-एक चीज जी चुके हैं। इस सीरीज को देखकर लोग भावुक होंगे। उन्हें उस दौर को फिर जीने का का मौका मिलेगा। हम लोग तो खैर उस दौर को जी चुके हैं। मुझे लगता है, अक्षय और सहर के लिए ज्यादा चैलेंजिंग रहा। इन लोगों को ज्यादा मेहनत करनी पड़ी। राज जी, पूनम और मैं तो इस बात से खुश थे कि इतने बरसों बाद फिर एक साथ जुड़ गये। अक्षय, सहर और बाकी यंग कलाकारों की एनर्जी देखने का मजा ही कुछ और था।

अस्सी का दशक कई सामाजिक सरोकार से जुड़ी फिल्मों के लिए जाना जाता है। क्या आपको लगता है कि ऐसी फिल्मों के लिए मेकर्स की दिलचस्पी अब कम हो गया है?

राज बब्बर- अगर हम डॉ. कोटनिस की अमर कहानी, महबूब खान की मदर इंडिया या उससे पहले की फिल्में देखें, तो यह दौर हमेशा रहा है। सामाजिक सरोकार वाला सिनेमा हमेशा रहा है। राज कपूर साहब ने तो हमेशा वैसे ही फिल्में बनायी हैं। चाहे बूट पॉलिश रही हो या कोई और फिल्म। उन्होंने सोशली रेलिवेंट फिल्में बनायी हैं, लेकिन उसके अंदर मार्केटिंग का एक पहलू भी रखा।

अब मैं दिल बेकरार पर आऊंगा... दोज प्राइसी ठाकुर गर्ल्स को इतने सधे हुए तरीके से अडॉप्ट किया गया है कि इसकी रूह खत्म नहीं हुई। इसकी जो मूल भावना है, वो भी खत्म नहीं हुई। इसके अंदर रोमांस है, कॉमेडी है और इसके अंदर हर वो चीज है, जो एक दर्शक सिनेमा में देखना चाहता है। देखकर गुदगुदाना चाहता है। जिस सबक की आप बात कर रहे हैं, दिल बेकरार में ऐसा कोई उपदेश तो नहीं है। मगर जिस तरह का सिनेमा गुरुदत्त या राज कपूर का रहता था, उसका हलका सा एहसास आपको दिल बेकरार में भी नजर आएगा, तमाम खूबसूरत हंसी-मजाक के साथ।

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आपने अपने करियर में संजीदा किस्म के किरदार और फिल्में अधिक की हैं। दिल बेकरार में पूरी तरह कॉमेडी करने का अनुभव कैसा रहा?

राज बब्बर- सिचुएशनल कॉमेडी का एक अलग ही आनंद होता है। इस सीरीज के अंदर भी मैंने उस आनंद को लिया है। मैंने कभी यह नहीं सोचा कि मैं सीरीज कर रहा हूं या सीरियल कर रहा हूं। क्योंकि मुझे एक्टिंग करने में मजा आता है और मैं सोचता हूं कि मैं रोल कर रहा हूं। यह रोमांटिक कहानी है और इसके इर्द-गिर्द तमाम किरदार और कलाकार हैं। एक आदर्शवादी, ईमानदार, उसूलपसंद जज है, जो आपको दिखायी देता है। उससे लड़ने वाला जर्नलिस्ट भी है, जो उनको एक्सपोज करना चाहता है। उसमें उसका भी स्वायत्त सुख है। वो चाहता है कि मेरा भी नाम आये। मेरा भी बाइलाइन आये। लेकिन सच्चाई यह है कि वो कुछ बड़ा करना चाहता है और वो उसके लिए परवाह नहीं करता। जो भी उसके सामने हो, उसे एक्सपोज करने के लिए वो बेखौफ है।

सहर ने जो किरदार किया है, डब्बू का, देबजानी ठाकुर का, वो कमाल का किरदार है। अगर कोई मुझसे पूछे तो यह बहुत ही आडियलिस्टिक लव स्टोरी है। दो आदर्शवादी लोग एक दूसरे को चाहना शुरू कर देते हैं और 80 के अंदाज में चाहते हैं। पहले देखते ही रह जाते हैं, मुस्कुराते हैं, पत्ते खेलते हैं। (शूटिंग के वक्त को याद करते हुए, जोर से हंसते हुए) अरे भैया, वो कोर्ट पीस... उसका तो नाम लेते हुए मुझे आज भी डर लगता है। कोर्ट पीस के पत्ते मेरे घर भिजवा दिये इन्होंने। मैंने गाड़ी में रखे। वैन में रखे। घर में रखे। हबीब साहब का भी जवाब नहीं। उन्होंने इस फिल्म में मुझे पत्ते पकड़ना भी सिखला दिया और मैं हमेशा अपनी लाइन भूल जाता था कि अपना पत्ता फेंकूं या अपनी लाइन बोलूं।

पद्मिनी कोल्हापुरे- (हंसते हुए) हबीब साहब ने मुझसे भी बहुत सी ऐसी चीजें करवायीं, जो मैं आम तौर पर जिंदगी में करती नहीं हूं। मेरा किरदार भी काफी मजेदार है। बहुत मजा आया करने में।

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ओटीटी जैसे नये मंच को किस तरह देखते हैं। खासकर सीनियर कलाकारों के नजरिए से?

राज बब्बर- एक्टर्स के लिए बहुत बड़ा एडवांटेज है, राइटर्स और डायरेक्टर्स के लिए भी। यहां तक कि प्रोडक्शंस के लिए भी। माफ कीजिएगा, सिर्फ हम लोगों के लिए नहीं, ऑडिएंस के लिए भी। सिनेमा हमेशा जिंदा रहेगा। जो फैमिली के साथ आउटिंग करना चाहते हैं, उनके लिए सिनेमा रहेगा। मगर, जिनके पास वक्त नहीं है, अच्छा काम देखना चाहते हैं और अच्छा कंटेंट देखना चाहते हैं। उनके लिए ओटीटी प्लेटफॉर्म वरदान की तरह होगा।

पद्मिनी कोल्हापुरे- ओटीटी का फ्यूचर भारत में बहुत बढ़िया है। सिर्फ सीनियर एक्टर्स के लिए ही नहीं, बल्कि सभी कलाकारों के लिए।

आखिरी सवाल, कलाकार होने के साथ आप सार्वजनिक जीवन में भी हैं। ऐसे में ओटीटी कंटेंट को नियमन पर आप क्या सोचते हैं? 

राज बब्बर- इस सवाल का जवाब मैं इसलिए नहीं दे रहा कि मैं किसी चीज से बंधा हूं, लेकिन जिस दौर की बात कर रहा हूं वो है दिल बेकरार और जिस दायरे में मैं हूं वो है दिल बेकरार। यह मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि दिल बेकरार में ऐसी कोई चीज नहीं है, जिसको लेकर कोई टिप्पणी सामने आएगी। कल क्या हुआ, कल क्या होगा। इस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं कर सकता, क्योंकि मुझे नहीं मालूम। लेकिन जहां तक दिल बेकरार की बात है, मैं बहुत आत्मविश्वास के साथ कहता हूं कि हबीब फैजल, प्रोड्यूसर्स और प्लेटफॉर्म ने ऐसी कोई चीज नहीं की है, जिसकी वजह से कोई खतरा सामने नजर आये।

पद्मिनी कोल्हापुरे- इसको फैमिली एंटरटेनर के तौर पर प्रमोट कर रहे हैं। जहां फैमिली एंटरटेनर की बात है तो लोग सपरिवार इस शो को देख सकते हैं।


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