OK Computer Web Series Review: इंसानी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बीच अस्तित्व के टकराव की 'अजीब' दास्तां...
OK Computer Web Series Review डिज़्नी प्लस हॉटस्टार वीआईपी पर 26 मार्च को स्ट्रीम हुई 6 एपिसोड्स की साइंटिफिक वेब सीरीज़ इंसानी मेधा और कृत्रिम मेधा के बीच सह-अस्तित्व के साथ-साथ एक-दूसरे से टकराने की कहानी है। जैकी श्रॉफ विजय वर्मा राधिका आप्टे मुख्य किरदारों में हैं।
मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। कृत्रिम मेधा यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस धीरे-धीरे हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बनती जा रही है। हमें पता भी नहीं चलता और तकनीक का यह पहलू हमारी रोज़-मर्रा की ज़िंदगी में इतने अंदर तक घुस चुका है कि इसकी आदत हो चली है। कुछ मामलों में यह तकनीक हमें नियंत्रित भी करती है। मगर, क्या कभी उस वक़्त के बारे में सोचा है, जब कृत्रिम मेधा रखने वाले रोबोट्स और बॉट्स इंसानी जीवन में इस कदर घुल-मिल जाएंगे कि अपने घर, रसोई, बैड रूम, दफ़्तर, रास्तों, यातायात, अस्पतालों, स्कूलों में उन्हें देखना बिल्कुल अजीब नहीं लगेगा। इंसानों की तरह उनके अपने अधिकार होंगे और उन अधिकारों की हिफ़ाज़त करने वाली संस्थाएं भी। उनसे प्यार करने वाले लोग होंगे और नफ़रत करने वाले संगठन भी...
आपने शायद नहीं सोचा हो, मगर शिप ऑफ़ थेसियस और तुम्बाड़ जैसी फ़िल्मों के लेखन-निर्माण-निर्देशन से जुड़े रहे फ़िल्ममेकर आनंद गांधी ने सोच लिया और उस सोच को ओके कम्प्यूटर वेब सीरीज़ के ज़रिए विस्तार भी दे दिया। डिज़्नी प्लस हॉटस्टार वीआईपी पर 26 मार्च को स्ट्रीम हुई 6 एपिसोड्स की साइंटिफिक वेब सीरीज़ इंसानी मेधा और कृत्रिम मेधा के बीच सह-अस्तित्व के साथ-साथ एक-दूसरे से टकराने की कहानी है।
रचनाकारों ने वेब सीरीज़ को साइंटिफिक कॉमेडी के रूप में विकसित किया है और उसी तरह इसका प्रचार भी किया है, मगर इसकी टोन व्यंगात्मक अधिक रखी गयी है। ओके कम्प्यूटर की कहानी 2031 के गोवा में स्थापित की गयी है, जहां विशालकाय मानवीय होलोग्राम ट्रैफिक नियंत्रित करते हैं। हर तरफ़ रोबोट्स, बॉट्स और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की छाप देखी जा सकती है।
सीरीज़ की शुरुआत एक क्राइम सीन से होती है। एक पूर्ण स्वचालित कार की टक्कर से एक इंसान की जान चली गयी है। साइबर सेल का एसीपी साजन कुंडू जांच के लिए क्राइम सीन पर पहुंचता है। रोबोट्स के अधिकारों की हिफ़ाज़त करने वाली संस्था PETER की ओर से लक्ष्मी सूरी कुंडू को जांच में ज्वाइन करती है। कुंडू को मशीनों से नफ़रत है। लक्ष्मी को यक़ीन है कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस में क़त्ल की साजिश रचने की क्षमता नहीं है।
कुंडू के शक़ की सुई सबसे पहले स्वचालित कार बनाने वाली कंपनी पर जाती है। फिर जिज्ञासु जागृति मंच भी शक़ के दायरे में आता है, जिसका मुखिया पर्यावरणवादी पुष्पक शकूर है। भविष्य में जिज्ञासु जागृति मंच जैसे संगठनों को आतंकी संगठन माना जाता है, क्योंकि वो रोबोट्स और मशीनों के बढ़ते प्रभाव और प्रभुत्व के ख़िलाफ़ हैं। पुष्पक पकड़ लिया जाता है, मगर कुंडू को जांच में पता चलता है कि पुष्पक ने अपना मैसेज देने के लिए जान-बूझकर ख़ुद को फंसाया है।
आख़िरकार, अजीब कुंडू के निशाने पर आता है। कुंडू को लगता है कि अजीब ने ही कार के सिस्टम को हैक करके इंसान का क़त्ल करवाया है, क्योंकि कार के सिस्टम से अजीब का आईपी एड्रेस मिलता है। कुंडू जांच में यह साबित करने में सफल हो जाता है कि अजीब ने ही कार के ज़रिए इंसान का क़त्ल किया है, जो रोबोट्स के लिए बनाये गये सबसे अहम नियम का उल्लंघन है।
लक्ष्मी पूरी कोशिश करती है, मगर अजीब को बचा नहीं पाती। अजीब को सुप्रीम अदालत डिस्मेंटल करने का आदेश देती है। मगर, यहां सबसे बड़ा ट्विस्ट तब आता है, जब कुंडू और लक्ष्मी को पता चलता है कि क़ातिल अजीब नहीं कोई और है। क़ातिल कौन है? मरने वाला कौन था? उसे मारने की साजिश किसने की और क्यों की, इन सवालों के जवाब जब सामने आते हैं तो चौंकाते हैं।
ओके कम्प्यूटर की विषयवस्तु, कहानी और कथा-भूमि प्रभावित करती है। भविष्य की दुनिया रचने में रोबोट्स, छोटे-छोटे बॉट्स, उड़ने वाली कारें, तकनीकी रूप से उन्नत शहर-इमारतों आकर्षित करते हैं। इसमें प्रोडक्शन साज-सज्जा टीम की मेहनत और कल्पनाशीलता साफ़ झलकती है। दृश्य प्रभावित तो करते हैं, मगर बांधकर नहीं रख पाते।
सीरीज़ में जैकी श्रॉफ (पुष्पक शकूर), विजय वर्मा (साजन कुंडू), राधिका आप्टे (लक्ष्मी सूरी), कनी कुश्रुति (मोनालिसा), सारंग साठे (अशफ़ाक़), विभा छिब्बर (डीसीपी) जैसे बेहतरीन कलाकार हैं, मगर किरदारों को इस तरह गढ़ा गया है कि उनकी बातें और हरकतें अजीब और बचकानी लगती हैं। अपने चरित्र को निभाते हुए विजय वर्मा में कहीं-कहीं अमोल पालेकर की छवि दिखती है।
दृश्यों के संयोजन में कलाकारों का अभिनय कई जगह अतिरेकता लिये हुए महसूस होता है। ऐसा लगता है, मानो निर्देशक ने उन्हें बेलगाम छोड़ दिया हो। सम्भवत: हास्य पैदा करने के लिए ऐसा किया गया है, मगर हंसी नहीं आती। सीरीज़ में रोबोनॉइड अजीब का किरदार सबसे दिलचस्प है। उसकी मासूमियत, हाज़िरजवाबी और बच्चे-सी आवाज़ में बात करने का तरीक़ा मज़ेदार है। इसे उल्हास मोहन ने निभाया है।
अजीब की अपनी एक कहानी है। उसे चार इंजीनियरों ने बनाया था। अजीब इतना विकसित सुपर कम्प्यूटर है कि टेक कंपनी वैसे और रोबोट्स बनाना चाहती थी, मगर इंजीनियरों ने इसे स्वीकार नहीं किया और अपनी मर्ज़ी से कोमा में चले गये। उनके शरीर समाधि पेटी में सुरक्षित रख दिये गये। टेक कंपनी ने कोशिश की, मगर अजीब जैसी कोडिंग नहीं कर सके। यानी अजीब पूरी दुनिया में अपने जैसा इकलौता रोबोनॉइड है, जिसके अंदर मानवीय संवेदनाएं भी हैं। वक़्त के साथ उसे कल्ट स्टेटस हासिल हो गया है। कहानी में अजीब का ट्रैक सबसे अधिक राहत देता है।
ओके कम्प्यूटर साइंस फिक्शन सीरीज़ है, जिसमें बहुत अधिक तकनीकी बातों का प्रयोग किया गया है। संवादों के ज़रिए इन्हें आसान करने की कोशिश की गयी है, मगर सामान्य दर्शक इसमें उलझकर रह जाता है और कहानी का लुत्फ़ नहीं उठा पाता। सीरीज़ का क्लाइमैक्स असरदार है। शेखर कपूर की मौजूदगी सुखद आश्चर्य देती है, जिन्हें भारतीय सिनेमा की पहली बेहद कामयाब साइंस फिक्शन फ़िल्म मिस्टर इंडिया बनाने का श्रेय दिया जाता है। अजीब के संदर्भ में स्टैंड अप कॉमेडियन कुणाल कामरा और तन्मय भट्ट भी कुछ फ्रेम्स में नज़र आते हैं।
सीरीज़ में रोबोनॉइड अजीब के ज़रिए कुछ डायरेक्ट और कुछ इनडायरेक्ट मैसेज दिये गये हैं। मसलन, जो भी अल्पसंख्यक होता, दुनिया उसके पीछे पड़ जाती है। या कॉमेडियन एक तरह के डिटेक्टिव होते हैं, जो हमारे स्वभाव में कमियां निकालकर हमें सचेत करते हैं। ओके कम्प्यूटर भविष्य का आइना दिखाती तकनीकी रूप से उन्नत एक विचारोत्तेजक वेब सीरीज़ है, जो मनोरंजन के मोर्चे पर विफल रहती है।
कलाकार- विजय वर्मा, राधिका आप्टे, जैकी श्रॉफ, विभा छिब्बर आदि।
लेखन- पूजा शेट्टी, नील पागेदार, आनंद गांधी।
निर्देशक- पूजा शेट्टी, नील पागेदार।
निर्माता- आनंद गांधी
स्टार- **1/2 (ढाई स्टार)
अवधि- प्रति एपिसोड लगभग 40 मिनट