Move to Jagran APP

Mirzapur 2: असली दुनिया अब काल्पनिक लगती है, हम फिक्शनल फ़िल्मों में रियलिज़्म खोज रहे है- पंकज त्रिपाठी

Mirzapur 2 बिहार में पले बढ़े पंकज त्रिपाठी आज भी जमीन से जुड़े हुए हैं। दैनिक जागरण डॉट काम से हुई बातचीत में उन्होंने बताया कि उनके घर में बातचीत मातृभाषा में होती है। पढ़िए पूरा इंटरव्यू ...

By Rajat SinghEdited By: Published: Wed, 04 Nov 2020 01:22 PM (IST)Updated: Thu, 05 Nov 2020 11:02 AM (IST)
Mirzapur 2: असली दुनिया अब काल्पनिक लगती है, हम फिक्शनल फ़िल्मों में रियलिज़्म खोज रहे है- पंकज त्रिपाठी
कालीन भइया के किरदार में पंकज त्रिपाठी ( फोटो इंस्टाग्राम से ली गई है। )

नई दिल्ली, (रजत सिंह) । Mirzapur 2: 'गैंग ऑफ़ वासेपुर' से लोगों की निगाह में आए पंकज त्रिपाठी अब 'कालीन भइया' बनकर सबकी ज़ुबान पर हैं। उनकी एक्टिंग को लेकर दर्शकों में एक अलग किस्म का उत्साह देखा जा रहा है। इसके पीछे एक बड़ी वज़ह है कि हर किरदार को वे बड़ी ही खूबसूरती से फिल्मी पर्दे पर जिंदा कर देते हैं। बिहार में पले-बड़े पंकज त्रिपाठी आज भी जमीन से जुड़े हुए हैं। जागरण डॉट काम से हुई बातचीत में उन्होंने बताया कि उनके घर में बातचीत मातृभाषा में होती है। हालांकि, उन्हें लगता है कि असल दुनिया में अब लोग काल्पनिक हो गए हैं।

loksabha election banner

आम लोगों के बीच अपनी मातृभाषा ख़ासकर अवधी- भोजपुरी को लेकर शर्मिंदगी के विषय पर पंकज त्रिपाठी कहते हैं- 'आज कल हमारा रियल वर्ल्ड काफी फिक्शनल लगता है। वहीं, हम फिक्शन वर्ल्ड में रियलिटी खोज़ते हैं। फिक्शन दुनिया में हम रियलिज़्म को हासिल करना चाहते हैं। हमारे ऊपर इतना दबाव है कि हमें लगता है कि अग्रेंजी भाषा नहीं है, अंग्रेजी क्लास है। हमारे यहां (अवधी- भोजपुरी) लोगों को लगता है कि अगर हम अपनी मातृभाषा में बात करें, तो कहीं पिछड़े ज्ञात ना हो जाएं। मैं बार-बार कहता हूं कि जो लोकल है, वही ग्लोबल है। अगर हमें ग्लोबल होना है, तो अपनी लोकल चीज़ों को संरक्षित करें और उस पर प्राउड फ़ील करें।'

भाषा को लेकर पंकज त्रिपाठी ने बताया कि वह अब भी भोजपुरी में बात करते हैं। उनके बच्चे ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया उनकी भाषा जानती है। क्योंकि वह बात-बात में भोजपुरी में बात करने लगते हैं।

 

View this post on Instagram

ये आज अचानक दिखा और आज हीं के दिन सोलह साल पहले मै और मृदुला (पत्नी ) मुंबई आए थे।शुक्रिया हिंदी सिनेमा उद्योग , मुंबई और आप सब । प्रेम ❤️🙏🏾। thanks @mansworldindia @yehhaimirzapur क़ालीन भईया, उर्फ़ समकालीन भईया।

A post shared by Pankaj Tripathi (@pankajtripathi) on

'मिर्ज़ापुर' जैसी यूपी और बिहार या छोटे शहरों की कहानी को पर्दे पर आने को लेकर पंकज कहते हैं- 'पिछले 5-10 सालों में अनुराग कश्यप, इम्तियाज़ अली, तिग्मांशु धूलिया और राम गोपाल वर्मा जैसे लोग आए। इनके राइटर भी छोटे शहरों से आए। ख़ासकर बैंडिट क्वीन फ़िल्म से काफी संख्या में लोग आए, जो दिल्ली में थिएटर करते थे। या हजारीबाग और इलाहाबाद के रहने वाले लोग आए, जो छुट्टियों में बिजनौर और सिवान जैसे शहरों में नानी-मौसी के घर जाया करते थे। पहले मेकर थे, जो छुट्टियों में स्विटजरलैंड जाते थे, उनकी मौसी वहां रहती थी। ऐसे में छोटे शहर के स्टोरी टेलर आए, तो कहानी भी छोटे शहरों की आ गई।'


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.