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Human Interview: मैंने पहली फिल्म 'आंखें' बनायी तो लोगों ने कहा ऐसे सब्जेक्ट यहां नहीं चलते- विपुल शाह, निर्देशक

बतौर फिल्ममेकर इंडस्ट्री में दो दशक से अधिक बिता चुके विपुल ने पहली बार मेडिकल थ्रिलर जॉनर का निर्देशन किया है वहीं निर्देशक के तौर पर उनका यह डिजिटल डेब्यू भी है। पेश है ह्यूमन सीरीज को लेकर विपुल से एक्सक्लूसिव बातचीत-

By Manoj VashisthEdited By: Published: Tue, 11 Jan 2022 12:25 PM (IST)Updated: Wed, 12 Jan 2022 12:52 PM (IST)
Human Interview: मैंने पहली फिल्म 'आंखें' बनायी तो लोगों ने कहा ऐसे सब्जेक्ट यहां नहीं चलते- विपुल शाह, निर्देशक
Human Web Series director Vipul Shah interview. Photo- Instagram, mid-day

मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर 14 जनवरी को मेडिकल थ्रिलर वेब सीरीज ह्यूमन रिलीज हो रही है। इस सीरीज की कहानी इंसानों पर दवाओं के परीक्षण (Human Drug Trial) की पृष्ठभूमि पर कही गयी है। सीरीज में शेफाली शाह और कीर्ति कुल्हरी मुख्य भूमिकाओं में हैं, जबकि निर्माण और सह-निर्देशन विपुल अमृतलाल शाह ने किया है। मोजेज सिंह दूसरे निर्देशक हैं। अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार, परेश रावल, अर्जुन रामपाल और सुष्मिता सेन अभिनीत क्राइम थ्रिलर आंखें से इंडस्ट्री में बतौर निर्देशक विपुल ने अक्षय कुमार के साथ कुछ हिट फिल्में दी हैं। वहीं, कमांडो फिल्म सीरीज के लिए भी विपुल पहचाने जाते हैं।

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बतौर फिल्ममेकर इंडस्ट्री में दो दशक से अधिक बिता चुके विपुल ने पहली बार मेडिकल थ्रिलर जॉनर का निर्देशन किया है, वहीं निर्देशक के तौर पर उनका यह डिजिटल डेब्यू भी है। हालांकि, डिज्नी प्लस हॉटस्टार के लिए वो विद्युत जाम्वाल अभिनीत फिल्म सनक का निर्माण कर चुके हैं। पेश है ह्यूमन सीरीज को लेकर विपुल से एक्सक्लूसिव बातचीत-

मेडिकल थ्रिलर बनाने का विचार कैसे आया? क्या यह किसी सच्ची घटना से प्रेरित है?

मैंने एक आर्टिकल पढ़ा था। 2007 में अफ्रीका में एक ड्रग टेस्टिंग बड़े पैमाने पर गलत हो गया था। हजारों लोगों की जान चली गयी थी। अफ्रीका में एड्स का एपिडेमिक उस ड्रग टेस्टिंग के जरिए शुरू हुआ था, क्योंकि एक सीरिंज को कई लोगों पर इस्तेमाल किया गया था। उसकी वजह से वहां बहुत अफरातफरी मची थी। नतीजतन, WHO और यूनाइटेड नेशंस ने अफ्रीका में ड्रग टेस्टिंग बैन कर दी थी। वो आर्टिकल पढ़ने के बाद मुझे लगा कि भारत में क्या हो रहा है, यह मुझे जानना होगा। इंडिया में ह्यूमेन ड्रग टेस्टिंग की क्या सिचुएशन है, यह मुझे जानना है और वहां से इस विषय की शुरुआत हुई। हमने बहुत रिसर्च करने के बाद पहले इसे एक फिल्म की तरह लिखने की कोशिश की, लेकिन हमें लगा कि एक फिल्म के दायरे में हम इस सब्जेक्ट को समेट नहीं पा रहे हैं। इसके लिए हमें लॉन्ग फॉर्मेट चाहिए। ओटीटी प्लेटफॉर्म पर जाना चाहिए। इसीलिए यह डिजिटल शो बना। हमने रिसर्च के बाद इसमें जो तथ्य डाले हैं, वो बिल्कुल सही हैं। बस कहानी काल्पनिक है।

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ड्रग परीक्षण की कहानी को भारतीय परिप्रेक्ष्य में कैसे ढाला?

भारत में हमने जब लोगों से बात की तो कई लोगों को ह्यूमन ड्रग टेस्टिंग के बारे में पता ही नहीं था। हमने जब लोगों से बात की तो उन्होंने कहा, 'दवाई कैसे नुकसान कर सकती है। ये तो बड़े अच्छे लोग हैं, जो दवा टेस्ट करने के हमें पैसे भी देते हैं। हमारे लिये तो यह बड़ा फायदे का सौदा है।' तो यह एक सोच है लोगों की। अनपढ़ हैं या  गरीब हैं, जिन्हें इसके बारे में नहीं पता। लोग पांच और दस हजार रुपये के लिए इंजेक्शन लगवा लेते हैं। कई बार उन्हें पता ही नहीं होता कि कौन सी दवाई उन पर टेस्ट हो रही होती है। एक भारतीय जान की कीमत इतनी कम है। जब इसका हमें पता चला तो हमने इस पर एक शो बनाना चाहिए।

इस विषय को आकार देने में कितना वक्त लगा?

मैं इस सब्जेक्ट के साथ करीब पांच साल से जुड़ा हुआ हूं। पहले तीन साल हमने इसे फिल्म की तरह लिखने में लगाये और फिर 2-3 साल से इसे डिजिटल शो की तरह डेवलप कर रहे थे। काफी अर्सा हो गया, पर अब लगता है कि कुछ दिलचस्प हम बना पाये हैं। अब 14 तारीख को ऑडिएंस के फैसले का इंतजार रहेगा।

आपने अब तक मसाला एंटरटेनर फिल्में निर्देशित की हैं। मेडिकल जॉनर आपके लिए भी नया है। इस ट्रांसफॉर्मेशन पर क्या कहेंगे?

जब कोई चीज आप अपने दिल से करते हैं तो वो नई नहीं रहती। हम एक फिल्ममेकर हैं और फिल्ममेकिंग का एक रूल होता है कि कोई भी फिल्ममेकर किसी फिल्म को तभी करता है, जब कहानी उसके दिल को बहुत छूती है। यह कहानी दिल को बहुत टच करती थी, बहुत संवेदनशील है, बहुत अहम है। फिर वो नया नहीं रहता, अलग नहीं रहता। कहानी, जब दिल से जुड़ी होती है तो आपका विश्वास सौ प्रतिशत होता है।

शेफाली शाह एक उम्दा अभिनेत्री हैं। उन्होंने काफी काम भी किया है। ह्यूमन को लेकर उनकी क्या प्रतिक्रिया रही? क्या कुछ सुझाव दिये?

देखिए, शेफाली एक बहुत इजी गोइंग एक्ट्रेस हैं। सेट पर उनकी सीनियोरिटी या कोई और बात बीच में नहीं आती। सीन को कैसे और अच्छा किया जाए, इस पर फोकस से साथ वो काम करती हैं। जब मैंने उन्हें स्क्रिप्ट पढ़ने के लिए दी तो एक ही दिन में उनका जवाब आ गया, 'विपुल यह बहुत शानदार है, यह मुझे करना है' और यही कीर्ति (कुल्हरी) का भी था। उन्होंने पहला एपिसोड पढ़ने के बाद ही तय कर लिया था कि यह सीरीज तो करनी ही है। दोनों के साथ काम करना जबरदस्त अनुभव रहा, क्योंकि आप जो सीन सोचते हैं, वो दोनों उससे कहीं आगे ले जाते हैं। बाकी एक्टर्स, राम कपूर, मोहन आगाशे, इंद्रनील (सेनगुप्ता), आदित्य (श्रीवास्तव), विशाल जेठवा सभी ने जबरदस्त परफॉर्मेंस दी है। परफॉर्मेंसेज इस शो की सबसे बड़ी ताकत है।

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ह्यूमन में इंडस्ट्री के कुछ बेहतरीन कलाकार नजर आएंगे। ऐसे कलाकारों को साथ लाना कितना मुश्किल रहा?

सारे एक्टर्स हमारी पहली च्वाइस थे। जब हमने उन्हें बताया कि ऐसा विषय लेकर हम बना रहे हैं तो सभी ने एकदम हां कह दी, क्योंकि जब सब्जेक्ट अच्छा होता है तो सब एक्टर्स उससे जुड़ना चाहते हैं। उनको भी यह होता है कि मुझे भी कुछ अलग करने को मिलेगा, नया करने को मिलेगा। सभी के लिए नेचुरल च्वाइस हो जाती है। 

ह्यूमन ड्रग ट्रायल की कहानी के जरिए समाज या सिस्टम को क्या मैसेज देना चाहते हैं?

हमने कोई मैसेज देने की कोशिश नहीं की है। सिर्फ चिकित्सा की दुनिया की सच्चाई को लोगों के सामने पेश किया है। ह्यूमन ड्रग्स टेस्टिंग के बारे में लोगों की जानकारी बढ़े। एक बहुत इंगेजिंग और कम्पेलिंग थ्रिलर की तरह लोग इसे एंजॉय करें और शो खत्म होने के बाद वो इसके बारे में सोचें तो हमारे लिए खुशी की बात होगी।

कोरोना पैनडेमिक की वजह से सिनेमाघरों में फिल्म व्यवसाय को काफी नुकसान हो रहा है। क्या आपको लगता है कि फिल्ममेकर्स को नई स्ट्रेटजी की जरूरत है?

मुझे नहीं लगता कि स्ट्रेटजी गलत है। मुझे लगता है कि एक दौर है, निकल जाएगा। लोगों के दिलों में फिल्मों के लिए प्यार है, वो कम नहीं होता। हां, सुरक्षा की फिक्र की वजह से लगता है कि थिएटर में जाएंगे तो कहीं कोरोना ना हो जाए। तो लोग संभलकर जा रहे हैं। मुझे नहीं लगता कि ऐसी कोई प्रॉब्लम है कि लोग सिनेमा देखने नहीं जाएंगे। सिनेमा से लोगों का प्यार बहुत गहरा है। मैं यह मानता हूं कि एक दिन यह डिस्कशन बदल जाएगा। लोग कहेंगे, कि वी आर बैक टू वेयर वी वर (We are back to where we were)।

आपको इंडस्ट्री में बतौर निर्देशक 20 साल हो रहे हैं। इस दौरान ओटीटी भी काफी उभरकर सामने आया है। कंटेंट को लेकर क्या बदलाव पाते हैं?

देखिए, मेरी तो पहली फिल्म आंखें, जब बन रही थी तो लोग कह रहे थे कि यह कोई सब्जेक्ट है फिल्म बनाने का। तीन अंधे बैंक रॉबरी कर रहे हैं। यह तो हॉलीवुड में चल सकता है, यहां तो चल नहीं सकता। यह बहस कि इस तरह का सब्जेक्ट चलेगा, इस तरह का नहीं चलेगा, यह नया सब्जेक्ट आ गया है, बहुत सतही है। मुझे लगता है कि ऑडिएंस बहुत स्पष्ट है। अच्छी चीज किसी भी फॉर्मेट में पसंद आएगी। आप देखिए, मसाला एंटरटेनर पुष्पा भी उतनी ही चल रही है। जब डिजिटल पर अलग तरह के शोज आते हैं तो वो भी उतना ही चलते हैं। स्पाइडरमैन भी चल रही है, सूर्यवंशी भी उतनी ही चलती है। लोग हर तरह का एंटरटेन पसंद करते हैं। लोग तो असल में चाहते हैं कि जितनी विविधता उन्हें मिले, उतना अच्छा है। मुझे तो लगता है कि हर कहानी के लिए मैदान खुला है, लोग बनाते जाएं, दर्शक देखेंगे।

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OTT के आने से फिल्ममेकर्स के सामने चुनौतियां बढ़ी हैं?

ओटीटी के आने से हम सबको और अधिक मेहनत करनी पड़ेगी, क्योंकि ओटीटी पर पूरी दुनिया का कंटेंट पड़ा हुआ है। जैसे, डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर मैं एक शो देख रहा था, सक्सेशन... कमाल का शो है। ऐसे बहुत से शोज आते हैं। उसकी वजह से ऑडिएंस की अपेक्षाएं हमारे कंटेंट से भी बढ़ती चली जाएंगी। अब ओटीटी वालों की फिल्मवालों से या फिल्मवालों की ओटीटी से लड़ाई नहीं है, बल्कि लड़ाई अब पूरी दुनिया से है, क्योंकि लोग ओटीटी पर पूरी दुनिया का कंटेंट देखते हैं। हमारा हर कंटेंट अब उस इंटरनेशनल कंटेंट के साथ लड़ेगा। लड़ाई का मैदान कहीं और चला गया है। 

आप सालों से देखिए, जब-जब एक अच्छा सब्जेक्ट बनाया गया है, वो चला है। जब आयुष्मान (खुराना) की फिल्म विक्की डोनर आयी थी, तब तो कोई ओटीटी नहीं था और वो फिल्म भी लोगों ने खूब पसंद की। मैं तो इस एक फिल्म का नाम ले रहा हूं, ऐसी हजारों फिल्में हैं। हां, ओटीटी के आने से कंटेंट को लेकर लोग ज्यादा कॉन्शस हुए हैं और अच्छा कंटेंट बनाने की सतर्कता बढ़ गयी है।


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