Move to Jagran APP

Ek Duaa Review: भ्रूण हत्या के ख़िलाफ़ संदेश देती मार्मिक कहानी है एशा देओल की डेब्यू होम प्रोडक्शन 'एक दुआ'

Ek Duaa Review एक दुआ की कहानी मुंबई में रहने वाली आबीदा की है। पति सुलेमान टैक्सी चलाता है। एसी वाली प्राइवेट टैक्सियों का चलन बढ़ने से सुलेमान की कमाई प्रभावित हुई है। परिवार आर्थिक तंगी से गुज़र रहा है। क़र्ज़ लेकर गुज़र-बसर हो रही है।

By Manoj VashisthEdited By: Published: Wed, 28 Jul 2021 12:40 PM (IST)Updated: Wed, 28 Jul 2021 02:41 PM (IST)
Ek Duaa Review: भ्रूण हत्या के ख़िलाफ़ संदेश देती मार्मिक कहानी है एशा देओल की डेब्यू होम प्रोडक्शन 'एक दुआ'
Esha Deol in Ek Duaa. Photo- Instagram

मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। ओटीटी प्लेटफॉर्म पर इस वक़्त फ़िल्म फेस्टिवल चल रहा है, जिसके तहत शॉर्ट फ़िल्में दिखायी जा रही हैं। एशा देओल की डेब्यू होम प्रोडक्शन फ़िल्म एक दुआ भी फेस्टिवल के तहत सीधे वूट सिलेक्ट पर रिलीज़ की गयी है। एक दुआ भ्रूण हत्या के ख़िलाफ़ संदेश देने वाली एक मार्मिक कहानी है। फ़िल्म में एशा ने ख़ुद मुख्य भूमिका निभायी है। फ़िल्म का निर्देशन राजकमल मुखर्जी ने किया है, जो एशा के साथ इससे पहले शॉर्ट फ़िल्म केकवॉक बना चुके हैं। 

loksabha election banner

एक दुआ की कहानी मुंबई में रहने वाली आबीदा की है। पति सुलेमान टैक्सी चलाता है। एसी वाली प्राइवेट टैक्सियों का चलन बढ़ने से सुलेमान की कमाई प्रभावित हुई है। परिवार आर्थिक तंगी से गुज़र रहा है। क़र्ज़ लेकर गुज़र-बसर हो रही है। दोनों के एक बेटा है, जो स्कूल में पढ़ता है। घर में एक बेटी भी नज़र आती है, मगर आबीदा को छोड़कर उस पर किसा का ध्यान ही नहीं रहता, सिवाय आबीदा के। बेटी दुआ से आबीदा बहुत प्यार करती है। 

आर्थिक बदहाली से निज़ात पाने के लिए सुलेमान की मां सलाह देती है कि एक बेटा और कर लो। बेटे के आने से बरकत होती है। सुलेमान की मां की इस सलाह पर आबीदा की कुछ पुरानी कड़वीं यादें लौट आती हैं। अतीत के इस हिस्से का कहानी के वर्तमान से भी गहरा और भावनात्मक संबंध है। बेहतर है, यह सस्पेंस आप ख़ुद फ़िल्म में देखें।

 

View this post on Instagram

A post shared by Voot Select (@vootselect)

क्लाइमैक्स में यह रहस्य खुलने के बाद दर्शक को कुछ और दृश्यों की सार्थकता समझ में आती है, जो आरम्भ में साधारण लगते हैं। वहीं, आबीदा की मन:स्थिति का खुलासा भी होता है। एक दुआ के अंत में अभिषेक बच्चन की आवाज़ में एक जज़्बाती कविता के साथ भ्रूण हत्या से संबंधित आंकड़े और रिपोर्ट्स साझा की गयी हैं।

अविनाश मुखर्जी ने एक सीधी-सपाट कहानी को स्क्रीनप्ले के ज़रिए दिलचस्प बनाया है। कुछ दृश्य झकझोरते हैं। आबीदा के गर्भपात का दृश्य काफ़ी भावुक करने वाला है। आकस्मिक गर्भपात की वजह से दर्द में छटपटाती आबीदा और दूसरी तरफ़ उसकी चीखों को अनसुना करके माला जपते हुए इबादत करती सास। इस दृश्य के ज़रिए वैचारिक सोच का पिछड़ापन और हिपोक्रेसी पर प्रहार किया गया है। सवाल भी उठते हैं कि एक मासूम की कोख में हत्या के लिए ज़िम्मेदार होते हुए भी इबादत करने की हिम्मत आख़िर कहां से आती है?

आबीदा के किरदार में एशा देओल ने भावनात्मक दृश्यों में अभिनय की परिपक्वता दिखायी है। बेटी के लिए तड़पती मां और उसकी मानसिक अवस्था दिखाने वाले दृश्यों में एशा का अभिनय प्रभावशाली है। सुलेमान के किरदार में राजवीर अंकुर सिंह का काम ठीक है। सुनीता शिरोले ने सुलेमान की मां के किरदार की रूढ़िवादी, पिछड़ी, ख़ुदगर्ज़ और निर्लज्ज सोच को बेहतरीन ढंग से पेश किया है। फ़िल्म में मुस्लिम इलाक़ों की चहल-पहल को बढ़िया तरीक़े से क़ैद किया गया है, जो किरदारों की आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि को स्थापित करते हैं। एक दुआ बेहतरीन अभिनय से सजी बेहद ज़रूरी सामाजिक संदेश देने वाली फ़िल्म है, जिसे देखना ज़रूरी है।

कलाकार- एशा देओल, राजवीर अंकुर सिंह, सुनीता शिरोले, बार्बी शर्मा आदि।

निर्देशक- राम कमल मुखर्जी

निर्माता- एशा देओल, भरत तखतानी, अरित्रा दास, वेंकीज़।

रेटिंग- *** (3 स्टार)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.