Comedy Couple : 'मकड़ी' और 'इक़बाल' के बाद इतने सालों तक इंडस्ट्री से क्यों गायब रहीं श्वेता प्रसाद बासु, बताई वजह
श्वेता प्रसाद बासु का कोरोना काल में भी फिल्में और वेब सीरीज की रिलीज का क्रम जारी रहा। हाल ही में वो नेटफ्लिक्स की फिल्म ‘सीरियस मेन’ में नज़र आईं। अब फिल्म ‘कॉमेडी कपल’ उनका 5वां प्रोजेक्ट है।
प्रियंका सिंह, जेएनएन। श्वेता प्रसाद बासु का कोरोना काल में भी फिल्में और वेब सीरीज की रिलीज का क्रम जारी रहा। हाल ही में वो नेटफ्लिक्स की फिल्म ‘सीरियस मेन’ में नज़र आईं। अब फिल्म ‘कॉमेडी कपल’ उनका 5वां प्रोजेक्ट है। यह 21 अक्टूबर को जी5 पर रिलीज होगी। इसमें श्वेता स्टैंडअप कॉमेडियन की भूमिका में हैं। इससे पहले श्वेता ‘शुक्राणु’ तथा ‘हॉस्टेजेस 2’ व ‘हाई’ वेब सीरीज में भी नजर आ चुकी हैं। पढ़ें उनसे हुई बातचीत के अंश..
सवाल : डिजिटल पर काम करना इस वक्त सबसे ज्यादा फायदेमंद लग रहा है?
जवाब : यह प्लेटफार्म काम करने का मौका दे रहा है। अलग-अलग कहानियां और किरदार आ रहे हैं। फिल्मों का वह फॉर्मूला यहां नहीं चलता है कि किरदारों को हीरो, हीरोइन, हीरो के दोस्त और हीरोइन की बहन, चार गानों में सीमित कर दिया जाए। वास्तविक इंसानों की कहानियां बताई जा रही हैं। वैसे भी मैं टाइपकास्ट नहीं होना चाहती।
सवाल : ट्रेलर में रिलेशनशिप थ्योरी की बात हो रही है। आपके लिए यह थ्योरी क्या रही है। रिलेशनशिप में झूठ के लिए कितनी जगह होनी चाहिए?
जवाब : मुझे ईमानदार और सच्चे लोग पसंद हैं। सिर्फ प्रेम संबंधों में ही नहीं, बल्कि ऑफिस में काम करने वाले सहयोगियों, परिवार या दोस्तों से भी झूठ नहीं बोलना चाहिए। सच्चाई से जीना ज्यादा आसान होता है, क्योंकि झूठ को याद रखना पड़ता है, सच को नहीं। रिलेशनशिप की थ्योरी हर किसी के लिए अलग हो सकती है।
सवाल : स्टैंडअप कॉमेडी में ज्यादातर पुरुषों का वर्चस्व है। इसके पीछे क्या वजह लगती हैं?
जवाब : लोगों का एक नजरिया बन गया है कि महिलाएं गाड़ी ठीक से नहीं चला सकती हैं, किसी कंपनी की सीईओ नहीं बन सकती हैं, स्टैंडअप कॉमेडी नहीं कर सकती हैं। किसी की प्रतिभा को जेंडर में बांधना गलत है। भारत में कई महिला स्टैंडअप कॉमेडियन हैं, जिनका काम पसंद किया जा रहा है। इस फिल्म में दोनों कलाकारों को बराबर का दिखाया गया है।
सवाल : फिल्म में कॉमेडी करना कितना मुश्किल लगा?
जवाब : मेरे भाई और दोस्त खुश हैं कि मैं इस फिल्म में कॉमेडी कर रही हूं। वह कहते हैं कि स्क्रिप्ट भले ही किसी और ने लिखी है, लेकिन तुम्हारे जोक्स पर हंसी आएगी। मुझे लगता है हंसाने के साथ दर्शकों को रुलाना भी बहुत मुश्किल होता है। रुलाने का मतलब होता है कि आपने दर्शक के दिल को छू लिया है। हम स्क्रिप्ट खुद नहीं लिखते हैं। ऐसे में उसे परफॉर्म करना खाना बनाने जैसा है, जिसमें नमक-मिर्च होना तो चाहिए, लेकिन संतुलित। काफी नापतौल के धीमी आंच पर बनाना पड़ता है।
सवाल : आप अपनी स्क्रिप्ट पर पेन से भी काफी कुछ लिखती हैं...
जवाब : मैं अपनी स्क्रिप्ट पर अपने बहुत से बनाती हूं। मैं एक छात्र की तरह पेन, पेंसिल, रबर लेकर बैठती हूं। निर्देशक जो भी कहते हैं, वह लिखती रहती हूं। स्क्रिप्ट के पहले पन्ने को मैं अपनी स्क्रैप बुक बना देती हूं। शूटिंग के आखिरी दिन मैं उस पर फिल्म के सभी सदस्यों से कुछ लिखने के लिए कहती हूं, उनका साइन लेती हूं।मकड़ी फिल्म के वक्त से अब तक की सारी स्क्रिप्ट्स मेरे पास रखी हुई हैं। ‘मकड़ी’ फिल्म से स्क्रिप्ट पर किसी का सिग्नेचर नहीं है। आगे जाकर शबाना जी, विशाल जी के साइन लूंगी।
सवाल : बाल कलाकार के तौर पर दो फिल्में करने के बाद आपने पढ़ाई पूरी की। कितना जरूरी है ग्लैमर से दूर होकर पढ़ाई-लिखाई पूरी करना?
जवाब : इसका श्रेय मैं अपने माता-पिता को देती हूं कि उन्होंने मेरे लिए मकड़ी और इकबाल जैसी फिल्में चुनीं। इकबाल के बाद काम बंद कर दिया। मेरे माता-पिता ने राजकुमार संतोषी की फिल्म 'हल्ला बोल', मधुर भंडारकर की फिल्म 'ट्रैफिक सिग्नल' के लिए मना कर दिया था। 12 साल की उम्र में जब राष्ट्रीय पुरस्कार मिला, तब उसके साथ मिली धनराशि को पापा ने मेरे नाम पर फिक्स डिपॉजिट कर दिया था। जब मैं 18 साल की हुई, तब मैंने उस पैसे से डीएसएलआर कैमरा खरीदा था, जिससे मैंने अपनी डॉक्यूमेंट्री बनाई थी।
सवाल : जब आप कई वर्षों बाद दोबारा फिल्म में वापसी कर रही थीं, तब इंडस्ट्री ने कितना स्वागत किया?
जवाब : मैं इस इंडस्ट्री की बच्ची हूं। विशाल भारद्वाज से लेकर शबाना आजमी, नसीरुद्दीन शाह, सुधीर मिश्रा, नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ काम किया है। इस इंडस्ट्री में बड़ी हुई हूं। दोस्त इसी इंडस्ट्री से हैं। यह मेरा परिवार है। यह मेरा पहला प्यार है। दस-ग्यारह साल की उम्र से इस इंडस्ट्री से प्यार हो गया था।