'जब इंसान के पास कोई सहारा नहीं होता, तो वह खुद का सहारा बन जाता है'- सिंगल मदर होने पर बोलीं माधुरी संजीव
माधुरी ने पति के नाम को ही अपना सरनेम बनाया। इस बारे में वह कहती हैं संजीव मेरे आदर्श गुरु और प्रेरणा रहे हैं। इसलिए मैंने शादी के बाद उनके नाम को ही अपना सरनेम बना लिया। मुझे यह नाम सुनने में अच्छा लगता है।
दीपेश पांडेय। हिंदी टीवी की दुनिया में तीन दशक से सक्रिय अभिनेत्री माधुरी संजीव अब शो 'इस मोड़ से जाते हैं' में निगेटिव किरदार निभा रही हैं। करियर के शुरुआती दौर में ही पति के निधन के बाद माधुरी ने अपने बच्चे की जिम्मेदारियां बखूबी निभाते हुए करियर को भी आगे बढ़ाया...
अलग करने का मौका
इस शो को चुनने के कारणों और अपने किरदार नूतन के बारे में माधुरी बताती हैं, किसी भी शो को चुनने से पहले मैं देखती हूं कि किरदार कैसा है, कहानी में उसकी क्या अहमियत है, उसके बाद लेखन और डायलॉग कैसा है। इसके अलावा प्रोडक्शन हाउस, पैसे कितने मिल रहे हैं, दिन कितने चाहिए जैसी चीजें भी आती हैं। यह काफी दिलचस्प किरदार है, जिसे पूरा निगेटिव तो नहीं, लेकिन ग्रे शेड कहा जा सकता है। नूतन का अपना एक सफर रहा है। वह सख्त और सिद्धांतों वाली है। आमतौर पर शो में ऐसे किरदारों को पूरी तरह निगेटिव कर देते हैं, लेकिन इसमें थोड़ा अलग तरीके से दिखाया गया है। वह अपनी हर बात को मजबूती से रखती है।
वैचारिक मेल नहीं
माधुरी के किरदार नूतन का मानना है कि अगर पत्नी पति से आगे बढ़ जाती है तो कई बार रिश्ते टूट जाते हैं या खराब हो जाते हैं। इस पर माधुरी कहती हैं, अगर हम बराबरी की बात करें तो मैं इस सोच से बिल्कुल भी सहमत नहीं हूं। अगर पत्नी पति से आगे निकल जाती है तो इसमें बुराई ही क्या है। जब आपके विचार अपने किरदार के विचारों से मेल खाते हैं तो निश्चित तौर पर उन्हें निभाने में आसानी होती है, पर ऐसा भी नहीं कि किरदार के विचारों से असहमत होने पर कोई बहुत बड़ी मुश्किल आ जाती है। हम तो कलाकार हैं, हमारा काम ही है अलग-अलग किरदारों में ढल जाना और उसको इतनी संजीदगी से पेश करना कि सामने वाले को लगे कि मैं भी उसके विचारों में विश्वास रखती हूं। बाकी लुक, बाडी लैंग्वेज और टोन के लिए थोड़ी बहुत तैयारी तो करनी ही पड़ती है।
बचपन से ही एक्टिंग की ख्वाहिश
अपने अभिनय सफर के बारे में माधुरी कहती हैं, अगर मैं कहूं कि बचपन से ही एक्टिंग करती आ रही हूं तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। बचपन से ही मैं अपने भाई-बहनों से अलग थी, जब सब लोग खेलते थे तो मैं तितलियों के पीछे भागती थी, पेड़ों और फूलों को देखती थी, नदी किनारे दौड़ लगाती थी। उसके बाद बड़ी होने पर थिएटर से जुड़ गई और थिएटर के निर्देशक संजीव दीक्षित से शादी हो गई। शादी के बाद थिएटर का सिलसिला और आगे बढ़ा। इसके बाद वर्ष 1986 में पहली बार मुंबई आई और पहला सीरियल नुक्कड़ मिला। नुक्कड़ में छोटा सा किरदार निभाने के बाद मुझे सईद मिर्जा ने धारावाहिक इंतजार में लांच किया। वहां से शुरू हुआ टेलीविजन का सफर अब तक चल रहा है। मुंबई आकर मैंने थिएटर भी करने की कोशिश की, लेकिन यहां का थिएटर मुझे बहुत कमर्शियल लगा। यहां हमने थिएटर के लिए कुटुंब नामक एक ग्रुप बनाया था, जिसमें हमने लैला मजनू और एक अन्य नाटक किया था। हमारे ग्रुप में आलोक नाथ, नीना गुप्ता, अन्नू कपूर और अनीता कंवल जैसे कलाकार थे, लेकिन फिर टीवी का दौर शुरू हो गया और हर कोई इसकी तरफ भागने लगा। फिर हमें वह ग्रुप बंद करना पड़ा। इसके बाद मैंने थिएटर का कोई प्रयास नहीं किया। सिर्फ टीवी और फिल्में कीं।
पति का नाम बनाया सरनेम
माधुरी ने पति के नाम को ही अपना सरनेम बनाया। इस बारे में वह कहती हैं, संजीव मेरे आदर्श, गुरु और प्रेरणा रहे हैं। इसलिए मैंने शादी के बाद उनके नाम को ही अपना सरनेम बना लिया। मुझे यह नाम सुनने में अच्छा लगता है। जब संजीव गुजरे तब मेरा बेटा सिर्फ एक साल था। उस समय मेरे सामने सबसे पहली चीज बच्चे का पालन-पोषण और पढ़ाई थी। हमारी लव मैरिज हुई थी। इसलिए घरवाले भी हमारे खिलाफ थे। जब इंसान के पास कोई सहारा नहीं होता है तो वह खुद का सहारा बन जाता है। मुझे बेटे का भी सहारा बनना था। इसके अलावा मेरी कोई अन्य प्रेरणा नहीं थी। दूसरा मेरे काम ने भी मुझे बड़ी हिम्मत दी। यह काम जब तक आप पूरी शिद्दत के साथ नहीं करेंगे, उसके साथ न्याय नहीं कर पाएंगे। घर में मैं भले ही एक बच्चे की मां और संजीव की पत्नी थी, लेकिन सेट पर जाने के बाद सभी को भूल जाना होता है। उस किरदार में खो जाना होता है। बस संजीव की बातों और यादों को लेकर मैं चलती रही और सफर यहां तक पहुंच गया।