चंद्रावल ने भारतीय सिनेमा में निभाई अहम भूमिका
भारतीय सिनेमा की शुरुआत के 100 साल हो चुके हैं। इसके इतिहास में हरियाणवी फिल्मों का योगदान भी कम नहीं है। हरियाणवी फिल्मों ने जहां राज्य की सभ्यता व संस्कृति का भरपूर प्रचार किया। वहीं इस छोटे से राज्य की बोली को देशभर में लोकप्रिय कर दिया। कई हिंदी फिल्मों व धारावाहिकों में बोले जाने वाले संवादों में हरियाणवी का पुट इसी लोकप्रियता का परिणाम है।
संजीव मंगला, पलवल। भारतीय सिनेमा की शुरुआत के 100 साल हो चुके हैं। इसके इतिहास में हरियाणवी फिल्मों का योगदान भी कम नहीं है। हरियाणवी फिल्मों ने जहां राज्य की सभ्यता व संस्कृति का भरपूर प्रचार किया। वहीं इस छोटे से राज्य की बोली को देशभर में लोकप्रिय कर दिया। कई हिंदी फिल्मों व धारावाहिकों में बोले जाने वाले संवादों में हरियाणवी का पुट इसी लोकप्रियता का परिणाम है।
हरियाणवी को सबसे ऊंचा दर्जा फिल्म चंद्रावल की बदौलत मिला। इस फिल्म ने न केवल राज्य में बल्कि अन्य प्रांतों में भी लोकप्रियता हासिल की। हरियाणवी फिल्मों की शुरुआत 70 के दशक में हो गई थी। तब दो हरियाणवी फिल्में बीरा शेरा और हरफूल सिंह जाट जुलानी वाला बाक्स आफिस पर आई। ये फिल्में सराही गई, लेकिन ज्यादा लोकप्रियता हासिल नहींकर पाईं। इसके बाद आई बहुरानी भी काफी चर्चा में रही। धरती व बीरा शेरा फिल्में भी इसी दौरान निर्मित हुई। हरियाणवी फिल्मों का सही दौर 1984 में शुरू हुआ, जब देवी शंकर प्रभाकर ने फिल्म चंद्रावल का निर्माण किया। फिल्म में अभिनेत्री उषा शर्मा ने सभी का दिल जीत लिया। एक गाडि़यां लुहार युवती के प्रेम पर बनी इस फिल्म ने सारे देश में लोकप्रियता कमाई। पलवल निवासी हास्य अभिनेता डा.प्रशांत शुक्ल ने इस फिल्म में हास्य कलाकारों रूंडे-खुंडे के गुरु का जीवंत अभिनय किया। चंद्रावल फिल्म के गीत जीजा तू काड़ा, मैं गौरी घणी, फोटू खिचवावें दोनों जंणी मेरा चूंदड़ मंगा दे रे, ओ नणदी के बीरा आज भी अनेक वैवाहिक कार्यक्त्रमों में सुनने को मिलते हैं। चंद्रावल फिल्म की विशेषता यह भी रही कि इसके गाने में हरियाणा के कुछ प्रमुख शहरों का उच्चारण है, जैसे बल्लभगढ़ के बुढ्डे बोले भरकर चिलम, बीजली सी टूट पड़ी मारे गए हम। चंद्रावल के बाद बड़ी संख्या में हरियाणवी फिल्में बनीं। इनमें फूलबदन, लाड्डो बसंती, बटेऊ, छबिली, बेरी, छैल गेल्या जांगी, छैल गाबरू, चांद चकोरी, छोरा जाट का, चंद्रों, छोरा हरियाणा का, जाटणी, के सपने का जिक्त्र, म्हारा पीहर सासरा, लंबरदार, यारी, लाड्डो, प्रेमी रामफल, म्हारी धरती म्हारी मां, मुकलावा, पनघट, फागण आया रें शामिल हैं। भारतीय सिनेमा के इतिहास में हरियाणवी फिल्मों व भाषा के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
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