The Master Review: जबरदस्त एक्शन करते दिखे साउथ सुपरस्टार विजय, कई अहम मुद्दों को दिखाती है उनकी 'द मास्टर'
कहानी का आरंभ नाबालिग भवानी (विजय सेतुपती) के ईमानदार पिता की हत्या से होता है। उसके पिता ट्रक एसोसिएशन के चेयरमैन होते हैं। भवानी पर गलत आरोप लगाकर बाल सुधार गृह भेज दिया जाता है। वहां भी उस पर अत्याचार किया जाता है। उसे मारापीटा जाता है।

मुंबई, स्मिता श्रीवास्तव : कोरोना काल में सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली बड़े बजट की पहली फिल्म है द मास्टर। तमिल, तेलुगु में बनी इस फिल्म को हिंदी में डब करके प्रदर्शित किया गया है यह फिल्म कॉलेज में छात्र राजनीति से लेकर बाल सुधार गृह में अच्छे शिक्षक की अहमियत और सोच को रेखांकित करती है। यहां पर खास बात यह है कि शिक्षक पढाने से इतर एक्शन करने में माहिर है।
कहानी का आरंभ नाबालिग भवानी (विजय सेतुपती) के ईमानदार पिता की हत्या से होता है। उसके पिता ट्रक एसोसिएशन के चेयरमैन होते हैं। भवानी पर गलत आरोप लगाकर बाल सुधार गृह भेज दिया जाता है। वहां भी उस पर अत्याचार किया जाता है। उसे मारापीटा जाता है। यह मार पिटाई उसे कमजोर बनाने के बजाए मजबूत बनाती हैं। वह आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो जाता है। वह बाल सुधार केंद्र में बंद बच्चों की मदद से अपराध करवाता है कहानी कुछ साल के अंतराल के बाद आगे बढ़ती है। भवानी अब ताकतवर हो चुका है। वह ट्रक एसोसिएशन का अध्यक्ष बनना चाहता है। अपने खिलाफ जाने वालों को रास्ते से हटा देता है।
उसके बदले नाबालिग बच्चों से समर्पण कर देता है। वह बाल सुधार गृह में बंद बच्चों में नशे की आदत डालता है। इन कृत्यों में उसे पुलिस और बाल सुधार गृह के भ्रष्ट अधिकारियों का पूरा सहयोग मिलता है। उधर कॉलेज में प्रोफेसर जेडी (विजय) अपने छात्रों का चहेता है। हालांकि यह प्रोफेसर बाकी शिक्षकों से बेहद अलग है। शाम को छह बजे के बाद शराब में द्युत हो जाता है। घटनाक्रम ऐसे मोड़ लेते हैं कि वह बाल सुधार गृह में बच्चों को पढ़ाने के लिए आता है। वहां दो बच्चों को फांसी पर लटकते देखने के बाद उसकी जिंदगी का मकसद बदल जाता है। कैसे वह भवानी को शिकस्त देता है फिल्म इस संबंध में हैं।
लोकेश कंगराज निर्देशित फिल्म का खास आकर्षण विजय का एक्शन और उनका स्टाइल है। लोकेश निर्देशित कैथी के हिंदी रीमेक में अजय देवगन ने पिछले साल काम करने की पुष्टि की थी। फिल्म में विजय सेतुपती की एंट्री किसी क्लास में पढ़ाते हुए नहीं बल्कि दो छात्रों को पकड़ने से होती है, जिन पर छात्रा के यौन शोषण का आरोप होता है। फिल्म कॉलेज में चुनाव के बहाने छात्र राजनीति की अहमियत को भी रेखांकित करती है। साथ ही बाल सुधार में रह रहे बच्चों के भविष्य को लेकर भी सवाल उठाती है। फिल्म में कार से ट्रकों पर तीरंदाजी से वार करने के दृश्य रोमांचक हैं। इसी तरह बाल सुधार गृह में मास्टर के साथ कबड्डी मैच का सीन भी शानदार हैं।
वहीं भवानी का डायलाग हो सके तो दो मिनट में मुझे मारकर अपने आपको बचा लो का अंदाज भी स्टाइलिश है। फिल्म के कुछ दृश्य अमिट छाप छोड़ते हैं। मसलन चारु (मालविका मोहनन) के पीछे जब गुंडे पड़े होते हैं तो हीरो उसे बचाने नहीं जाता। बल्कि कोई और उसे आसानी से बचा ले जाता है। इसी तरह विजय का कड़े को अपने हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना एक्शन का नया अंदाज है।
फिल्म में विजय और विजय सेतुपती दोनों को अपनी प्रतिभा दिखाने का भरपूर स्क्रीन टाइम मिला है। दोनों ने उसका समुचित उपयोग भी किया है। हालांकि शुरुआत में भवानी और जेडी के किरदारों को स्थापित करने में लेखक और निर्देशक ने लंबा समय लिया है। मध्यातंर के बाद कहानी में कसाव आता है। जेडी और भवानी के बीच टकराव और आमने- सामने आने को लेकर कौतूहल बना रहता है। बाल कैदी बने कलाकार अपने अभिनय से प्रभावित करते हैं। मालविका मोहनन फिल्म में सुंदर दिखी है। उनके हिस्से में कुछ खास नहीं आया है। 170 मिनट अवधि की इस फिल्म को एडिट करके कम किया जा सकता था। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक कहानी साथ सुसंगत है।
फिल्म रिव्यू् : द मास्टर
प्रमुख कलाकार : विजय, विजय सेतुपती , मालविका मोहनन
निर्देशक : लोकेश कंगराज
अवधि : 170 मिनट
स्टार : तीन
Edited By Priti Kushwaha