Un-paused Naya Safar Review: दूसरी लहर की भावुक कहानियों के नये सफर को वैकुंठ पर मिली मंजिल, छाये नागराज मंजुले
कोरोना की दूसरी लहर में देश के लगभग हर वर्ग ने आर्थिक मानसिक या भावनात्मक रूप से किसी ना किसी दिक्कत का सामना किया था। ऐसी सभी कहानियों को पटकथा के जरिए प्राइम वीडियो की एंथोलॉजी सीरीज में पिरोया गया है।
मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। कोरोना वायरस पैनडेमिक में लोगों को जिस तरह के अनुभव हुए हैं, उसमें भावनाओं का ज्वार-भाटा समाया हुआ है। दूसरी लहर में किसी की नौकरी गयी, कोई अपनों से दूर हुआ, किसी ने अपनों को खोया, कोई किसी अपने की आखिरी झलक देखने के लिए तड़पता रहा... सामाजिक, आर्थिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक... ऐसी कौन सी चुनौती थी, जिसका सामना किसी ना किसी ना किया हो?
अमेजन प्राइम वीडियो की पहली पैनडेमिक स्पेशल एंथोलॉजी सीरीज अनपॉज्ड ने जहां पहली लहर के दौरान लॉकडाउन के आर्थिक, सामाजिक और मानसिक असर को पेश किया था। वहीं, एंथोलॉजी सीरीज के इस सीजन अनपॉज्ड- नया सफर (Un-paused Naya Safar) में विभिन्न हालात में समाज के अलग-अलग वर्गों के भावनात्मक पहलुओं को दिखाया है। सीरीज में लगभग आधे-आधे घंटे की पांच कहानियां हैं।
ये कहानियां नयी नहीं हैं। यह हमारे और आपके बीच से निकली हुई कहानियां हैं और दूसरी लहर के दौरान तकरीबन हर किसी ने ऐसी कहानी देखी या सुनी होगी और कुछ ने तो करीब से महसूस भी की होगी या खुद उस कहानी के किरदार रहे होंगे। मगर, दो कहानियां ऐसी हैं, जिनमें कोविड वॉर रूम के अंदर घनघनाते फोन और श्मशान घाट में धधकती चिताओं के दृश्य मन विचलित कर जाते हैं।
अनपॉज्ड नया सफर की पांचों कहानियों में पटकथा के जरिए दूसरी लहर के दौरान हुई हर उस घटना को कवर किया गया है, जिसने आपको भी अंदर तक हिलाकर रख दिया होगा। यह कहानियां कोई फैसला नहीं सुनातीं, बस उस दौरान हुए विभिन्न अच्छे-बुरे अनुभवों को किरदारों के जरिए पेश करती हैं।
द कपल
पहली कहानी द कपल मुंबई में रहने वाले एक कामकाजी युवा जोड़े डिप्पी और आकृति की है। लॉकडाउन में दोनों वर्क फ्रॉम होम करते हुए आरामदायक भविष्य की उम्मीद बांध हुए हैं कि एक दिन आकृति की अच्छी-भली नौकरी चली जाती है। तरक्की और इंक्रीमेंट की उम्मीद कर रही आकृति को इस अचानक हुई घटना से झटका लगता है। फ्रस्ट्रेशन बढ़ने के साथ पति-पत्नी में लड़ाई-झगड़े बढ़ जाते हैं, मगर फिर दोनों एक-दूसरे का भावनात्मक सहारा बनते हैं और संभालते हैं।
यह ऐसी कहानी है, जिससे देश के महानगरों में रहने वाले कई मध्यवर्गीय युवा गुजरे होंगे। प्रियांशु पेन्युली और श्रेया धन्वंतरि ने डिप्पी और आकृति के किरदार निभाये हैं। कहानी प्राइवेट कम्पनियों की मनमानी और मौकापरस्ती पर भी कमेंट करती है। प्रियांशु और श्रेया धन्वंतरि के बीच तीखी बहसबाजी का दृश्य काफी असरदार और रिलेटेबल है। इस कहानी का निर्देशन नूपुर अस्थाना ने किया है।
वार रूम
दूसरी कहानी वार रूम मुंबई में बीएमसी द्वारा स्थापित कोविड-19 वार रूम के अंदर की झलक और कोविड वारियर के द्वंद्व को दिखाती है। इस मामले में यह कहानी थोड़ा अलग है। कहानी के केंद्र में एक स्कूर टीचर संगीता वाघमरे हैं, जिनकी ड्यूटी वार रूमें लगायी गयी है। संगीता के सामने उस वक्त चुनौती खड़ी हो जाती है, जब एक ऐसे गंभीर कोविड मरीज के लिए बेड की मांग की जाती है, जो उसके बेटे की मौत के लिए जिम्मेदार है। आरोपी स्कूल प्रिंसिपल जमानत पर छूट चुका है।
बदले की भावना जोर मारने लगती है और संगीता बेड उपलब्ध होने के बावजूद सही सूचना नहीं देती। आगे क्या होता है? यह आप सीरीज में खुद देखिए। यह कहानी फर्ज और निजी भावनाओं के बीच कशमकश दिखाती है। कोविड वार रूम की हलचल देखने के बाद आप वाकई सोचेंगे, आखिर कोविड वारियर्स ने ये सब कैसे किया होगा? पेशेगत जिम्मेदारी और एक इमोशनल मां संगीता वाघमरे के किरदार में गीतांजलि कुलकर्णी ने बेहतरीन काम किया है। अयप्पा केएम का निर्देशन सधा हुआ है।
तीन तिगाड़ा
कहावत है- तीन तिगाड़ा, काम बिगाड़ा। यहां तीन तिगाड़े तो हैं, लेकिन असली काम बिगाड़ा लॉकडाउन है। दूसरी लहर में लॉकडाउन के कारण बेरोजगारी का शिकार सिर्फ वो नहीं हुए जिनकी नौकरियां गयीं या दुकानें बंद करनी पड़ीं, वो भी हुए जो आपराधिक कामों के जरिए जिंदगी बिता रहे थे। तीसरी कहानी तीन तिगाड़ा ऐसे ही तबके पर आधारित है। इस कहानी में साकिब सलीम, आशीष वर्मा और सैम मोहन ने तीन चोरों चंदन, डिम्पल और अजीत के किरदार निभाये हैं।
तीनों सामान से भरा एक ट्रक चुराकर लाते हैं, जिसकी कीमत साठ लाख रुपये हैं। इन्हें बाजार में ठिकाने लगाने की जिम्मेदारी नल्लीस्वामी की है, जो डॉन है। एक सुनसान जगह पर बने गोदाम में माल बिकने के इंतजार में तीनों फंसकर रह जाते हैं, क्योंकि लॉकडाउन की वजह से खरीदार नहीं मिल रहा। इस कहानी का निर्देशन रुचिर अरुण ने किया है। एक्टिंग और निर्देशन के स्तर पर यह कहानी भी देखने लायक है।
गोंद के लड्डू
चौथी कहानी गोंद के लड्डू उतनी वजनदार नहीं है। इस कहानी को कहने के लिए लॉकडाउन या पैनडेमिक की पृष्ठभूमि की कोई जरूरत नहीं। यह कभी भी, कहीं भी सेट की जा सकती है। इस कहानी में नीना कुलकर्णी ने बुजुर्ग मां सुशीला त्रिपाठी का किरदार निभाया है, जो अकेली रहती है। हाल ही में मां बनी बेटी किसी दूसरे शहर में रहती है। लॉकडाउन की वजह से नानी ने बच्चे का मुंह नहीं देखा है। बेटी की सेहत के लिए सुशीला गोंद के लड्डू बनाकर भेजना चाहती है। सवाल यह है कैसे भेजे?
बेटी को गोंद के लड्डू भेजने के लिए वो काफी मेहनत के बाद ऑनलाइन कोरियर बुक करती है, जो उसके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। जिस कोरियर सर्विस से लड्डू भेजती है, उसके डिलवीर बॉय रोहन का एक्सीडेंट हो जाता है और सारे लड्डू बर्बाद हो जाते हैं। रोहन का सुपरवाइजर पहले ही खराब परफॉर्मेंस के लिए उसे चेतावनी दे चुका है। रोहन की बीवी गीतांजलि, जो खुद एक ऑनलाइन फूड ऐप के कॉल सेंटर विभाग में काम करती है, वो गोंद के लड्डू बनाने का फैसला करती है, ताकि रोहन डिलीवरी करके अपनी नौकरी बचा सके। अब आगे क्या होगा? क्या रोहन को इसका खामियाजा नौकरी देकर चुकाना होगा? क्या गीतांजलि गोंद के लड्डू बना पाती है? सुशीला इस पर किस तरह रिएक्ट करेगी? इसे कई सवालों के जवाब आगे मिलते हैं।
कुल मिलाकर यह एक फील गुड कहानी है। रोहन और गीतांजलि के किरदार में लक्षवीर सिंह सरन दर्शना राजेंद्रन हैं। यह भी फीलगुड कहानी है। हालांकि, डिलीवरी बॉय की पत्नी द्वारा गोंद के लड्डू बनाकर भेजने का प्लॉट थोड़ा ज्यादा लगता है। पटकथा के दायरे में शिखा माकन का निर्देशन ठीक है।
वैकुंठ
इस एंथोलॉजी सीरीज की जान आखिरी कहानी वैकुंठ है, जिसका निर्देशन नागराज मंजुले ने किया है और खुद ही मुख्य भूमिका भी निभायी है। नागराज वैकुंठधाम यानी श्मशान घाट में चिताएं जलाने वाले डोम विकास चव्हाण के किरदार में हैं। दूसरी लहर में एम्बुलेंस की आवाजें और कोविड-19 से मरने वाले मरीजों की चिताओं के दृश्य बेहद आम हो गये थे। समाचार चैनलों और इंटरनेट पर आपने दूसरी लहर के दौरान ऐसे कई मार्मिक दृश्य देखे होंगे, जहां श्मशानों के बाहर चिताओं की लाइन लगी है। एम्बुलेंस पूरी तरह पैक शवों को लेकर आती हैं।
पता तक नहीं चलता कि किसका परिजन कौन है। जो पहले एक नाम हुआ करता था, अब नम्बर बनकर रह गया। कोविड का खौफ ऐसा कि बेटा, पिता को मुखाग्नि नहीं दे सका। परिजन अस्थियां भी सैनिटाइज करके ले रहे हैं। कोरोना के डर के चलते श्मशान में राख का ढेर लगा है, जिसे बाद में खेतों में खाद की तरह छिड़क दिया जाता है। जिसे श्मशान नसीब नहीं हो सका, उसकी लाश पानी में तैरती मिली।
ऐसे दृश्यों के बीच जरा उस शख्स के बारे में सोचिए, जिसने दिन-रात खुद चिताओं को आग दी होगी। नागराज मंजुले की वैकुंठ उसी इंसान के बारे में है। विकास अपनी निजी उलझनों को भूलकर दिन-रात तमाम खतरे के बीच रहते हुए कोविड-19 शवों को जला रहा है। पिता सरकार अस्पताल में कोविड से जूझ रहा है। मकान मालिक ने कोविड के डर से घर खाली करवा लिया है। अब वो 10-12 साल के बेटे के साथ श्मशान में ही रहने को मजबूर है।
श्मशान घाट के दृश्यों में नागराज का बेहतरीन निर्देशन सामने आता है। दृश्य बिल्कुल असली-से लगते हैं। उस पर डोम के रोल में नागराज की जबरदस्त एक्टिंग। दूसरी लहर की इन भावुक कहानियों के नये सफर को वैकुंठ के जरिए एकदम मुकम्मल मंजिल मिलती है। जैसा कि ऊपर कहा गया है कि पैनडेमिक की दूसर लहर से जुड़ी कहानियों को लेकर अनपॉज्ड नया सफर कुछ नया या शॉकिंग तो नहीं देती, मगर अदाकारी और तकनीकी मोर्चे पर सीरीज प्रभावित करती है। यह सीरीज कोरोना वायरस पैनडेमिक की दूसरी लहर की कुछ मीठी और बहुत-सी कड़वी यादों का नॉस्टलिया है।
रेटिंग- *** (तीन स्टार)