The Empire Review: मुग़ल सल्तनत की बुनियाद रखने वाले बाबर की कहानी को महिला किरदारों की साजिशों ने दिये रोमांचक ट्विस्ट, जानिए कैसी है वेब सीरीज
द एम्पायर ऐतिहासिक घटनाओं पीरियड और कॉस्ट्यूम ड्रामा पसंद करने वालों के लिए मुकम्मल एक शो है जिसकी सीधी-सपाट कहानी को ट्विस्ट देने की ज़िम्मेदारी महिला किरदारों ने उठायी है और इन्हीं महिला किरदारों की साजिशें के चलते एक बच्चा साम्राज्य जीतने वाला बादशाह बाबर बनता है।
मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। इतिहास की पाठ्य पुस्तकों में उकेरी गयी मुग़ल शासकों और साम्राज्य की छवि को लेकर हमेशा से एक बहस छिड़ी रहती है। मगर मौजूदा दौर में यह बहस तीख़ी होने लगी है, जिसका नमूना पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर देखा जा रहा है और इसी के चलते बुधवार को दिनभर मुग़ल (Mughal) शब्द ट्रेंड बना रहा।
संयोग से ऐसे मौक़े पर डिज़्नी प्लस हॉटस्टार द एम्यायर वेब सीरीज़ लेकर आया है, जिसमें भारत में मुग़ल शासन की नींव डालने वाले पहले मुग़ल शासक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर की कहानी दिखायी गयी है। अगर आप सोशल मीडिया की इन बहसों से प्रभावित होकर इस शो को देखने या ना देखने का मन बना रहे हैं तो आपको इस सीरीज़ के डिस्क्लेमर के बारे में बता दें, जिसमें साफ़ कहा गया है कि यह वेब सीरीज़ हिस्टोरिकल फिक्शन है, जिसके किरदार, घटनाएं, ऐतिहासिक तथ्य, सब कुछ एलेक्स रदरफोर्ड की छह किताबों की सीरीज़ में से पहली Empire Of The Moghul- Raiders From The North पर आधारित है।
यह वेब सीरीज़ किसी भी तरह निर्माताओं के नज़रिए को ज़ाहिर नहीं करती। निर्माताओं ने इस काल्पनिक कहानी को दिखाने में कुछ सिनेमाई आज़ादी ज़रूर ली है। साथ ही सलाह दी है कि इस सीरीज़ में दिखायी गयी ऐतिहासिक घटनाओं को सच मानने की ज़ुर्रत तो बिल्कुल ना करें। यानी इतिहास टोटलने के लिए आप यह शो देखना चाहते हैं तो इसमें 'तारीख़ों' के सिवा कुछ नहीं मिलेगा, क्योंकि द एम्पायर के कई दृश्य ऐसे हैं, जो काल्पनिकता की कसौटी पर ही खरे उतरते हैं।
दरअसल, द एम्पायर ऐतिहासिक घटनाओं, पीरियड और कॉस्ट्यूम ड्रामा पसंद करने वालों के लिए मुकम्मल शो है, जिसकी सीधी-सपाट कहानी को ट्विस्ट देने की ज़िम्मेदारी महिला किरदारों ने उठायी है और इन्हीं महिला किरदारों की साजिशों के चलते हमेशा असमंजस में रहने वाला एक बच्चा साम्राज्य जीतने वाला बादशाह बाबर बनता है। रदरफोर्ड की किताब में दी गयी घटनाओं को द एम्पायर के आठ एपिसोड्स में समेटा गया है। हर एक एपिसोड की अवधि 30 से 50 मिनट के बीच है।
रदरफोर्ड की किताब की कहानी पर शो का स्क्रीन प्ले निर्देशक मिताक्षरा कुमार और भवानी अय्यर ने लिखा है, जिसकी शुरुआत 1526 ईस्वी में पानीपत की पहली लड़ाई से होती है। बाबर और दिल्ली सल्तनत के आख़िरी बादशाह इब्राहिम लोदी की फौजों के बीच भीषण जंग चल रही है।
जंग के दृश्यों के बीच बाबर हिंदुस्तान आने तक के अपने सफ़र को याद करता है और बाबर बने कुणाल कपूर के नैरेशन के साथ कहानी फ्लैश बैक में फरगाना (उज़्बेकिस्तान) पहुंचती है, जहां चौदह साल के बाबर को उसके पिता उमर शेख़ मिर्ज़ा अमीर खुसरो की ब्रज और फारसी भाषा में मिश्रित रचना सुना रहे हैं और बताते हैं कि कैसे अमीर खुसरो ने ब्रज और फारसी भाषाएं बिल्कुल अलग होने के बावजूद उन्हें एक ही रचना में गूंथ दिया है और कुछ यही हिंदुस्तानी समाज की पहचान है। अलग-अलग लोग, भाषाएं, पहनावे।
पिता की बातों से बनी हिंदुस्तान की छवि बाबर को बहुत प्यारी लगती है और और हिंदुस्तान जाना उसकी ज़िंदगी का सबसे अहम ख़्वाब और मक़सद बन जाता है। उधर, समरकंद में कबीलाई आक्रांता शैबानी ख़ान का आतंक बढ़ रहा है, जिसने वहां के शासक को मारकर समरकंद पर कब्ज़ा कर लिया है और अब उसकी नज़र फरगाना पर है। शैबानी उमर शेख़ को फरगाना छोड़ने के लिए संदेश भेजता है। शैबानी जैसे ताक़तवार दुश्मन का मुक़ाबला करने के लिए उमर शेख़ को एक बड़ी फौज की ज़रूरत थी।
इसलिए अपने विश्वासपात्र वज़ीर ख़ान से सलाह करके वो बाबर की शादी काबुल के शासक की बेटी गुलरुख से करवाना चाहता है, जिससे फरगाना और काबुल की फौजें मिलकर शैबानी का मुक़ाबला कर सकें। मगर, इस योजना को अमलीजामा पहनाने से पहले ही उमर शेख़ की एक हादसे में मौत हो जाती है (यहां एक बड़ा ट्विस्ट है, जिसे आप ख़ुद देखें तो बेहतर है) और 14 साल के बाबर को फरगाना के तख़्त पर बैठा दिया जाता है। बादशाह बनने के बाद बाबर समरकंद को शैबानी ख़ान के शिकंजे से छुड़ाने के लिए निकलता है।
उधर, शैबानी ख़ान फरगाना पर कब्ज़ा कर लेता है और बाबर की नानी एसान दौलत, मां कुतलुग़ और बहन खानज़ादा को कै़द कर लेता है। बाबर समरकंद जीत लेता है, मगर अपने परिवार को छुड़ाने की एवज़ में समरकंद फिर से शैबानी को दे देता है। शैबानी खानज़ादा को छोड़कर बाक़ी सबको जाने देता है। बाबर के पास अब ना फरगाना है और ना समरकंद। वो दर-ब-दर है। अब बाबर कैसे शैबानी ख़ान से जीतता है? फरगाना और समरकंद का क्या होता है? काबुल का शासक बाबर कैसे बनता है और किन हालात में वो हिंदुस्तान का रुख़ करने को बाध्य होता है? यह सब घटनाएं द एम्पायर के आठ एपिसोड्स की रचना करती हैं।
शुरुआत दो एपिसोड्स को छोड़ दें तो द एम्पायर की कहानी पकड़कर रखती है और सीन-दर-सीन आने वाले ट्विस्ट ध्यान भटकने नहीं देते। स्क्रीनप्ले में दृश्यों की बुनावट दिलचस्प है। हालांकि, अगर आप विदेशी हिस्टोरिकल वेब सीरीज़ देखने के शौक़ीन हैं तो कई दृश्यों का प्रस्तुतिकरण आपको देखा-देखा लगेगा, मगर इसका मतलब यह नहीं कि यह दृश्य बोर करते हैं।
पहले 6 एपिसोड्स बाबर और शैबानी ख़ान की दुश्मनी को समर्पित किये गये हैं और इन दृश्यों में सबसे अधिक ध्यान शैबानी ख़ान बने डीनो मोरिया आकर्षित करते हैं। डीनो का लुक, मेकअप, गेटअप, कॉस्ट्यूम उनके किरदार को एक अलग कशिश देता है। आंखों में काजल की निरंतर रहने वाली गहरी परत क्लोज़ अप में इस किरदार की मक्कारी को उभारने में कामयाब रहती है। शैबानी ख़ान के किरदार में डीनो के मैनेरिज़्म में कहीं-कहीं पद्मावत के अलाउद्दीन खिलजी की झलक नज़र आती है। मगर, उसे ओवरलैप नहीं करती है।
शैबानी के साथ बाबर की बहन खानज़ादा की समीकरण इस सीरीज़ को एक बड़ा ट्विस्ट देती है। हालांकि, यह ट्विस्ट अप्रत्याशित नहीं है। शुरुआती एपिसोड्स में डीनो बाबर का किरदार निभा रहे कुणाल कपूर पर भारी पड़े हैं, मगर बाद कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, कुणाल बाबर के किरदार में दाख़िल हो जाते हैं। जैसा मैंने पहले कहा, सीरीज़ को ट्विस्ट देने का काम महिला किरदारों ने किया है।
लगभग सभी प्रमुख महिला किरदार किसी ना किसी के लिए साजिश रचते नज़र आ रहे हैं। सोच में पुरुष किरदारों से अधिक बर्बर यह महिला किरदार हैं। फिर चाहे बाबर की नानी एसान दौलत हो या बाबर की दूसरी पत्नी गुलरुख या फिर बाबर की बहन खानज़ादा। एसान दौलत के किरदार में शबाना आज़मी ने बेहतरीन काम किया है। हालांकि, उन्हें इस किरदार में जज़्ब करने में थोड़ा वक़्त लगता है।
खानज़ादा के रूप में दृष्टि धामी को एक बेहद मजबूत और अदाकारी की सम्भावनाओं वाला किरदार मिला है, जिसे निभाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी है। वज़ीर ख़ान के किरदार में राहुल देव की अदाकारी और सधी हुई संवाद अदाएगी सुकून देती है। सनी देओल निर्देशित पल पल दिल के पास से एक्टिंग में डेब्यू करने वाली सहर बाम्बा की यह दूसरी स्क्रीन एपीयरेंस है। बाबर के पत्नी महम बेगम और मल्लिका-ए-हिंदुस्तान के किरदार में सहर हल्की लगी हैं। ख़ासकर, हुमायूं बने आदित्य सील की मां के किरदार में सहर की कास्टिंग बेढब लगती है। बाबर के बचपन के सहयोगी और सलाहकार कासिम के किरदार इमाद शाह ने ठीक काम किया है, मगर इस किरदार को जिस तरह पेश किया गया है, वो उस कालखंड में फिट नहीं लगता, जिसमें सीरीज़ स्थापित की गयी है।
तकनीकी पक्ष की बात करें तो द एम्पायर का ओवरऑल लुक प्रभावित तो करता है, मगर सीजीआई और वीएफएक्स के कुछ दृश्य बनावटी लगते हैं। ख़ासकर, फरगाना, समरकंद और काबुल में दिखाये गये महल और क़िलों के लॉन्ग शॉट्स इसके आधिपत्य के लिहाज़ से सुंदर दिखते हैं, मगर असली नहीं लगते। वहीं, जंग के कुछ दृश्यों में वीएफएक्स कमज़ोर लगता है। निर्देशक मिताक्षरा कुमार का स्वतंत्र निर्देशक के तौर पर यह पहला शो है।
उन्होंने लम्बे समय तक संजय लीला भंसाली को असिस्ट किया है। लिहाज़ा दृश्यों के रंगों और आर्ट संयोजन में भंसाली का अंदाज़ नज़र आता है, मगर इसमें कोई बुराई नहीं है, अगर दृश्य प्रभावित करते हैं। द एम्पायर जैसे पीरियड शोज़ में आर्ट और कॉस्ट्यूम विभाग के साथ संवादों की अहमियत सबसे अधिक होती है, क्योंकि संवाद अदाएगी का अंदाज़ अगर कलाकार के कॉस्ट्यूम को क़म्प्लीमेंट ना करे तो मज़ा किरकिरा हो जाता है। द एम्पायर में भी ऐसा कुछ जगहों पर हुआ है।
बाबर ने लोदी से सल्तनत जीतने के बाद हिंदुस्तान पर चार सालों तक राज़ किया था। 1530 में आगरा में उसकी मृत्यु हुई थी। हालांकि, सीरीज़ में बाबर और यहां की आवाम के बीच रिश्ते को नहीं दिखाया गया है, बल्कि फोकस बाबर की पारिवारिक साजिशों पर अधिक रहा है। द एम्पायर वेब सीरीज़, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की दुनिया में कोई क्रांतिकारी शो तो नहीं है, मगर भारत के पहले मुग़ल शासक की हिंदुस्तान पहुंचने की कहानी को रोमांचक तरीक़े से दिखाता है, जो बोर नहीं करता। और हां, एक बार फिर दोहरा दूं, इसे ऐतिहासिक दस्तावेज़ तो बिल्कुल ना मानें।
कलाकार- कुणाल कपूर, शबाना आज़मी, डीनो मोरिया, दृष्टि धामी, राहुल देव, आदित्य सील आदि।
निर्देशक- मिताक्षरा कुमार
निर्माता- निखिल आडवाणी
स्टार- *** (तीन स्टार)