Move to Jagran APP

State Of Siege- Temple Attack Review: कुछ नया विमर्श नहीं देती अक्षय खन्ना की फ़िल्म, पर बोर भी नहीं करती

स्टेट ऑफ़ सीज- टेम्पल अटैक के कथानक को जिस तरह से बदला गया है और कहानी जिस तरह से पेश की गयी है वो किसी भी पृष्ठभूमि में दिखायी जा सकती थी। इसके लिए सच्ची घटना से प्रेरित कहने की भी कोई ज़रूरत नहीं थी।

By Manoj VashisthEdited By: Published: Fri, 09 Jul 2021 01:17 PM (IST)Updated: Sat, 10 Jul 2021 07:03 AM (IST)
State Of Siege- Temple Attack Review: कुछ नया विमर्श नहीं देती अक्षय खन्ना की फ़िल्म, पर बोर भी नहीं करती
State Of Siege Temple Attack. Photo- Instagram

मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। आतंकी घटनाओं पर अपनी सीरीज़ 'स्टेट ऑफ़ सीज' की अगली कड़ी के रूप में ज़ी5 'स्टेट ऑफ़ सीज- टेम्पल अटैक' लेकर आया है। 'स्टेट ऑफ़ सीज-26/11' जहां मुंबई हमलों पर आधारित 8 एपिसोड की वेब सीरीज़ थी, वहीं 'टेम्पल अटैक' को अहमदाबाद के अक्षरधाम मंदिर पर 2002 में हुए आतंकी हमले से प्रेरित फ़िल्म कहा गया है।

loksabha election banner

मगर, टेम्पल अटैक सिर्फ़ एक आतंकी घटना पर बनी फ़िल्म नहीं है, बल्कि यह एक हॉस्टेज ड्रामा है और ऐसा कहने की पर्याप्त वजह हैं, जिसे अक्षरधाम मंदिर हमले की पृष्ठभूमि में स्थापित किया गया है। हालांकि, डिस्क्लेमर में इसे 'एक सच्ची घटना' से प्रेरित फ़िल्म बताया गया है। कहीं दावा नहीं किया है कि फ़िल्म अक्षरधाम मंदिर की घटना से ही प्रेरित है या उस पर आधारित है। इसीलिए, फ़िल्म में अक्षरधाम मंदिर को कृष्णा धाम मंदिर रहा गया है और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री को मनीष चोक्सी।

'स्टेट ऑफ़ सीज- टेम्पल अटैक' के कथानक को जिस तरह से बदला गया है और कहानी जिस तरह से पेश की गयी है, वो किसी भी पृष्ठभूमि में दिखायी जा सकती थी। इसके लिए सच्ची घटना से प्रेरित कहने की भी कोई ज़रूरत नहीं थी। बहरहाल, फॉर्मूला फ़िल्मों के तमाम 'क्लीशेज़' होने के बावजूद स्टेट ऑफ़ सीज- टेम्पल अटैक पकड़कर रखती है और एनएसजी ऑपरेशन के कुछ दृश्य रोमांचित करने में कामयाब रहते हैं। 

 

View this post on Instagram

A post shared by ZEE5 (@zee5)

फ़िल्म की 2001 में शुरुआत जम्मू-कश्मीर के कूपवाड़ा सेक्टर में किसी अनजान लोकेशन से होती है, जहां कुछ आंतकी छिपे हुए हैं। जब तक मदद नहीं पहुंचती एनएसजी के मेजर हनूत सिंह को अपनी यूनिट के साथ उन पर नज़र रखने के लिए कहा गया है। देर होते देख हनूत आतंकी ठिकाने पर हमला कर देता है, जहां से एक लड़की को छुड़ाया जाता है।

कमांडो वापस लौट ही रहे होते हैं कि कुख्यात आतंकी अबू हमज़ा और उसका दायां हाथ बिलाल नाइको वहां पहुंचते। एनएसजी टीम और आतंकियों के बीच गोलीबारी होती है। मेजर हनूत उसे पकड़ने का फ़ैसला करता है। हमले में नाइको ज़ख़्मी हो जाता है और पकड़ा जाता है। हमज़ा बच निकलता है। ख़ुद मेजर हनूत बुरी तरह ज़ख़्मी हो जाता है। एक कमांडो की जान चली जाती है, जिसे हनूत अपना दोस्त मानता है। यह घटना उसे कचोटती रहती है। कहानी कुछ महीने आगे बढ़ जाती है। एनएसजी के मनेसर स्थित कैंप में सूचना आती है कि गुजरात में मुख्यमंत्री की इनवेस्टर्स मीट पर आतंकियों की नज़र है।

सीओ कर्नल एमएस नागर मुख्यमंत्री की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी  मेजर समर चौहान देना चाहते हैं। पिछली घटनाओं के मद्देनज़र मेजर हनूत को को लेकर उन्हें थोड़ी झिझक है। मगर, समर पिता बनने वाला है। इसलिए मेजर हनूत के ज़ोर देने पर उसे इस मिशन की कमान दे दी जाती है।

सीओ नागर और मेजर हनूत यूनिट के साथ अहमदाबाद पहुंचकर मुख्यमंत्री की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सम्भाल लेते हैं। उधर, हमज़ा अपने चार लड़कों को पूरी तैयारी के साथ मिशन पर भेजता है। चारों आतंकी कृष्णा धाम मंदिर में दाख़िल हो जाते हैं। अंधाधुंध गोलीबारी करते हैं और लोगों को मारते हैं। हैंडलर हमज़ा इस बीच लोगों को मारने के बजाय उन्हें बंधक बनाने के लिए कहता है, क्योंकि असली मक़सद यही होता है। बंधकों के बदले आतंकी नाइको को छुड़वाना।

आगे की कहानी एनएसजी कमांडो और आतंकियों के बीच मंदिर में मुठभेड़ पर आधारित है। कैसे बंधकों को छुड़ाया जाता है? ऐसे ही ऑपरेशन में दोस्त और साथी अफ़सर को खो चुका मेजर हनूत क्या इस बार अपना दाग़ धो सकेगा? क्या आतंकी नाइको को रिहा करवाने में कामयाब हो पाते हैं? यह सारे सवाल फ़िल्म की अगले हिस्से की रूपरेखा बनाते हैं।

जैसा कि मैंने पहले कहा स्टेट ऑफ़ सीज- टेम्पल अटैक बॉलीवुड फ़िल्मों के बहुत सारे घिसे-पिटे फॉर्मूले लिये हुए चलती है। सिर पर कफ़न बांधकर दूसरे मुल्क़ में सिर्फ़ आतंक मचाने आये आतंकियों को अटैक के बीचों-बीच एक मुस्लिम किरदार से मज़हब और भाईचारे का उपदेश दिलवाना बहुत बचकाना और नाटकीय लगता है।

अहमदाबाद पहुंचने के बाद रेलवे स्टेशन से मंदिर की ओर जाते वक़्त आतंकियों का गांधी जी की मूर्ति को देखते हुए जाना। इस फ़िल्म का जो मिज़ाज है, उसमें ऐसे दृश्यों की कोई ज़रूरत नहीं थी। ऐसे विमर्श को दिखाना ही था, तो उसके दूसरे तरीक़े सोचे जा सकते थे। फ़िल्म के क्लाइमैक्स दृश्यों में मंदिर के स्वामी जी द्वारा कही गयी बात- हिंसा हर सवाल का जवाब नहीं हो सकती- ज़रूर प्रभावित करती है।

टेम्पल अटैक की पटकथा विदेशी लेखकों विलियम बोर्थविक और साइमन फैनराज़ो ने लिखी है, जबकि संवाद फ़रहान सलारुद्दीन के हैं। फ़िल्म का सारा ज़ोर एनएसजी कमांडोज़ के एक्शन को दिखाने पर गया है, जिसकी वजह से मंदिर के अंदर बंधकों के इमोशनल दृश्य असर नहीं छोड़ते।

इन दृश्यों में जज़्बात की वो गहराई नज़र नहीं आती, जो ऐसी हॉस्टेज सिचुएशन में होना चाहिए। एनएसजी के एक्शन के कुछ दृश्य रोमांच पैदा करने में कामयाब रहे हैं। विवेक दहिया के किरदार द्वारा आतंकी की ओर बिना पिन निकाले हैंड ग्रेनेड फेंककर उसे बाहर निकलने के लिए मजबूर करने वाला दृश्य मज़ेदार है। एक्शन दृश्यों को केन घोष ने सिनेमैटोग्राफर की मदद से अच्छे से शूट किया है।

फ़िल्म की एक और ख़ूबी है कि इसमें किसी भी किरदार को जबरन हीरो दिखाने की कोशिश नहीं की गयी है। फिर चाहे वो अक्षय कुमार का किरदार मेजर हनूत सिंह ही क्यों ना हो। ऐसा इसलिए भी हो सकता है, क्योंकि पटकथा लेखक विदेशी हैं, जहां बॉलीवुड स्टाइल हीरोइज़्म का चलन कम ही देखा जाता है।

 

View this post on Instagram

A post shared by ZEE5 (@zee5)

अक्षय ने इस फ़िल्म के साथ ओटीटी डेब्यू किया है और ख़ुद से जूझ रहे एनएसजी कमांडो के रूप में ठीक लगे हैं। हालांकि, एक ही रैंक वाले साथी मेजर समर चौहान (गौतम रोडे) की तुलना में वो उम्रदराज़ दिख रहे हैं। विवेक दहिया, कैप्टन बग्गा के रोल में ठीकठाक काम है।

एनएसजी के सीओ कर्नल नागर के रोल में प्रवीन डबास हैं। हालांकि, जब अक्षय उनके सामने होते हैं तो लगता है कि कर्नल नागर अक्षय को बनाना चाहिए था। मुख्यमंत्री के रोल में समीर सोनी, हमज़ा के किरदार में अभिमन्यु सिंह, नाइको के रोल में मीर सरवर और चारों आतंकियों के किरदार में कलाकार ठीक लगे हैं। हालांकि, पूरी फ़िल्म में ऐसा कोई किरदार उठकर नहीं आया, जो फ़िल्म ख़त्म होने के बाद ज़हन में अटक जाए।

'स्टेट ऑफ़ सीज- टेम्पल अटैक' की सबसे अच्छी बात इसकी अवधि है। फ़िल्म एक घंटा 49 मिनट में ख़त्म हो जाती है, जिसकी वजह से कुछ दृश्यों को छोड़कर फ़िल्म कसी हुई मालूम पड़ती है और बोर होने का मौक़ा नहीं देती। इस फ़िल्म को अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकी हमले की घटना के स्क्रीन रूपांतरण के बजाए सामान्य हॉस्टेज ड्रामा मानकर देखेंगे तो बेहतर होगा और फ़िल्म का लुत्फ़ उठा पाएंगे। 

कलाकार- अक्षय खन्ना, गौतम रोडे, विवेक दहिया, मंजरी फड़नीस, प्रवीन डबास, समीर सोनी.अभिमन्यु सिंह आदि।

निर्देशक- केन घोष

निर्माता- अभिमन्यु सिंह, रूपाली कादयान।

रेटिंग- *** (तीन स्टार)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.