Sherdil- The Pilibhit Saga Review: पंकज त्रिपाठी ने अभिनय से साधी सच्ची घटना की ढीली पटकथा
Sherdil- The Pilibhit Saga Review शेरदिल- द पीलीभीत सागा का निर्देशन श्रीजित मुखर्जी ने किया है जिनकी यह दूसरी हिंदी फिल्म है। फिल्म सच्ची घटना से प्रेरित है। शेरदिल में नीरज काबी शिकारी की भूमिका में हैं। पढ़िए पूरा रिव्यू-
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। वर्ष 2010 में रिलीज अनुषा रिजवी निर्देशित फिल्म पीपली लाइव में किसानों के आत्महत्या के मुद्दे को उठाया गया था। सरकार उन किसानों के परिवार के लिए मुआवजे का एलान करती है, जिन्होंने कर्ज की वजह से आत्महत्या कर ली। मुआवजे की चाह में नत्था का भाई आत्महत्या की बात करता है। अब मुआवजे पाने को लेकर सत्य घटना से प्रेरित फिल्म 'शेरदिल: द पीलीभीत सागा' सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। यह फिल्म वर्ष 2017 में पीलीभीत (उत्तर प्रदेश) में घटित सच्ची घटना से प्रेरित हैं, जहां ग्रामीण मुआवजे पाने के लिए कथित तौर पर बुजुर्गों को बाघ का शिकार बनने के लिए जंगल भेज देते थे।
कहानी जंगल के पास बसे झुंडाओ गांव के सरपंच गंगाराम (पंकज त्रिपाठी) की है। उसके गांव की फसलों को जंगली जानवरों ने काफी नुकसान पहुंचाया है। वह गांववासियों के हितार्थ सरकारी स्कीम का पता करने जाता है। वहां अधिकारी उसे वन विभाग से सर्टिफिकेट लाने की बात कहता है। निराश गंगाराम सूचना पट पर पढ़ता है कि बाघ का शिकार बने व्यक्ति के परिजनों को सरकार दस लाख रुपये का मुआवजा देगी।
गंगाराम जंगल में जाने का निर्णय लेता है। हालांकि, उसकी पत्नी लाजो (शायोनी गुप्ता) इसका विरोध करती है, लेकिन वह उसे भी मनाने में कामयाब हो जाता है। वहां पर उसकी मुलाकात शिकारी जिम (नीरज काबी) से होती है, जो जंगल को अपना ऑफिस समझता है और बाघ के गैरकानूनी शिकार के लिए आया है।
बांग्ला फिल्मों के प्रख्यात निर्देशक श्रीजित मुखर्जी ने बेगमजान के बाद अब अपनी दूसरी हिंदी फिल्म शेरदिल : द पीलीभीत सागा का लेखन और निर्देशन किया है। उन्होंने गरीबी के साथ मानव और जानवरों के टकराव को भी कहानी में पिरोया है। सरकारी उपेक्षा के शिकार लोगों की व्यथा को भी दर्शाने का प्रयास किया है। कागजों पर भले ही कहानी रोमांचक लगी हो, लेकिन पर्दे पर उतनी रोचक नहीं बन पाई है।
कहानी का अहम केंद्र जंगल है। जंगल में तमाम तरह जानवरों के अलावा तमाम तरह की गतिविधियां होती हैं। गंगाराम के जंगल में प्रवेश करने के बाद वहां की गतिविधियों को वह समुचित तरीके से चित्रित करने और रोमांचित बना पाने में विफल रहे हैं। जब गंगाराम का सामना बाघ से होता है तो उसमें कौतूहल के साथ रोमांच की कमी बहुत अखरती है, जबकि उसमें अपार संभावनाएं थीं।
ग्रामीण पृष्ठभूमि के बावजूद पंकज का किरदार सपाट हिंदी बोलता है। उसमें स्थानीय पुट का अभाव भी खटकता है, जबकि शायोनी ने थोड़ा पुट लाने की कोशिश की है। फिल्म वर्तमान से अतीत में कई बार आती-जाती है। उससे कहानी का प्रवाह कई बार टूटता है। नीरज काबी की एंट्री के बाद कहानी में थोड़ी रफ़्तार आती है।
फिल्म का दारोमदार पंकज त्रिपाठी के कंधों पर है। कमजोर पटकथा और निर्देशन के बावजूद उन्होंने अपने अभिनय से उसे साधने की कोशिश की है। तेज-तर्रार पत्नी की भूमिका में शायोनी के किरदार को और विकसित करने की जरूरत थी। नीरज काबी मंझे हुए अभिनेता हैं। उनके हिस्से में कई चुटकीले संवाद आए हैं। दोनों कलाकारों के वार्तालाप के कुछ दृश्य रोचक बन पड़े है। बैकग्राउंड में चलने वाला सब चला चली का खेला गाना कर्णप्रिय है और कहानी संग सुसंगत है।
प्रमुख कलाकार: पंकज त्रिपाठी, शायोनी गुप्ता, नीरज काबी
निर्देशक: श्रीजित मुखर्जी
अवधि: दो घंटा
स्टार: दो