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Movie Review: देश के लिए गर्व का लम्हा है- 'परमाणु: द स्टोरी ऑफ़ पोखरण', (चार स्टार)

जब आप फिल्म देख कर बाहर निकलते हैं तो आप को भारतीय होने होने पर गर्व महसूस होता है!

By Hirendra JEdited By: Published: Fri, 25 May 2018 09:10 AM (IST)Updated: Fri, 25 May 2018 06:16 PM (IST)
Movie Review: देश के लिए गर्व का लम्हा है- 'परमाणु: द स्टोरी ऑफ़ पोखरण', (चार स्टार)
Movie Review: देश के लिए गर्व का लम्हा है- 'परमाणु: द स्टोरी ऑफ़ पोखरण', (चार स्टार)

 -पराग छापेकर

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स्टार कास्ट: जॉन अब्राहम, डायना पेंटी, बोमन ईरानी आदि।

निर्देशक: अभिषेक शर्मा

निर्माता: जॉन अब्राहम

भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री में ऐतिहासिक घटनाओं पर ऐसी बहुत कम फ़िल्में बनी हैं जो आधिकारिक तौर पर इतिहास पर नज़र डालती हो। कुछ फ़िल्में बंटवारे को लेकर बनी तो कुछ फ़िल्में जातिवाद को लेकर भी बनी। कुछ गिनी-चुनी फ़िल्में जैसे '26/1' या 'ब्लैक फ्राइडे' हैं जो सच्ची घटनाओं पर सिलसिलेवार नज़र डालती हैं, उसी कड़ी को आगे बढ़ाती हुई फ़िल्म है- 'परमाणु: द स्टोरी ऑफ़ पोखरण'!

भारत के परमाणु विस्फोट को लेकर एक के बाद एक घटनाक्रम को रिपोर्टिंग के अंदाज़ में बयां करने वाली यह फ़िल्म सचमुच सराहनीय है। इन घटनाओं को पिरोने के लिए कुछ काल्पनिक किरदारों का सहारा ज़रूर लिया गया है लेकिन, वह मात्र घटनाओं को एक सूत्र में पिरोने के लिए है।

1974 में जब भारत ने अपने पहला परमाणु परीक्षण किया था तो उसके बाद अमेरिका की ओर से कई आर्थिक और राजनीतिक पाबंदी हम पर लगाये गये! इस दौरान सोवियत संघ के विघटन के बाद हमें किसी भी बड़े देश का साथ नहीं मिला। पाकिस्तान के साथ चीन और कई मायने में अमेरिका भारत की सुरक्षा को लेकर चिंता का विषय बनता जा रहा था। साथ ही साथ हम फिर से परमाणु परीक्षण ना कर पाये इसके लिए लगातार गुप्तचर व्यवस्थाओं का सहारा लिया जा रहा था। साथ ही अमेरिकी सैटेलाइट पोखरण रेंज पर लगातार आसमान से नज़र रखे हुए थे। ऐसे में भारत के लिए परमाणु परीक्षण करना असंभव सा था और सुरक्षा के मद्देनजर परमाणु परीक्षण करना जरूरी भी था!

इस परमाणु परीक्षण को किस तरह से अंज़ाम दिया गया? किन-किन विपरीत स्थितियों में पूरी दुनिया की निगाह रखती सैटेलाइट से नज़र बचाकर परमाणु परीक्षण किया गया यही कहानी है फिल्म 'परमाणु...' की। निर्देशक अभिषेक शर्मा ने इस जटिल विषय को बहुत ही आसानी से जो एक आम आदमी को समझ में आये, इस अंदाज़ में पेश किया है! जिसमें वह पूरी तरह से सफल हुए हैं।

अभिनय की बात की जाये तो जॉन अब्राहम, डायना पेंटी और बाकी के सारे कलाकारों ने उम्दा परफॉर्मेंस दिया है! एक मामले में जॉन अब्राहम की पीठ थपथपानी पड़ेगी कि निर्माता होते हुए भी उन्होंने फ़िल्म में नायक बनने की कोशिश नहीं की बल्कि, एक किरदार के तौर पर ही वह पूरी फ़िल्म में रहे। और यही इस फ़िल्म की विशेषता भी है क्योंकि, इतनी बड़ी योजना को कोई एक अकेला शख्स अंज़ाम नहीं दे सकता। टीमवर्क के क्या मायने हैं वो इस फ़िल्म में बखूबी दर्शाया गया है। इसमें कोई हीरो और कोई हीरोइन नहीं है बल्कि एक टीम है जो साथ काम करती है।

'परमाणु: द स्टोरी ऑफ़ पोखरण' एक बेहतरीन फ़िल्म है। अगर आपने पोखरण परीक्षण के बारे में नहीं पढ़ा है या नहीं जाना है तो यह फ़िल्म आपके लिए जानकारियों के नये आयाम खोलती है। सत्य घटनाओं पर आधारित होने के बावजूद भी यह फ़िल्म काफी मनोरंजक बन पड़ी है! पूरी फ़िल्म आपको कुर्सी पर दम साधे हुए बैठने पर मजबूर कर देती है और जब आप यह फ़िल्म देख कर बाहर निकलते हैं तो आप को भारतीय होने पर यकीनन गर्व महसूस होता है!

जागरण डॉट कॉम रेटिंग: पांच (5) में से चार (4) स्टार

अवधि: 2 घंटे 8 मिनट


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