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Panipat Movie Review: दमदार है अर्जुन कपूर और संजय दत्त की 'पानीपत', जानें फिल्म की कहानी

Panipat Movie Review अर्जुन कपूर कृति सेनन और संजय दत्त अभिनीत फिल्म पानीपत द ग्रेट ब्रिटेयल आज रिलीज हो गई है। जानें फिल्म की कहानी।

By Nazneen AhmedEdited By: Published: Fri, 06 Dec 2019 09:51 AM (IST)Updated: Fri, 06 Dec 2019 09:51 AM (IST)
Panipat Movie Review: दमदार है अर्जुन कपूर और संजय दत्त की 'पानीपत', जानें फिल्म की कहानी
Panipat Movie Review: दमदार है अर्जुन कपूर और संजय दत्त की 'पानीपत', जानें फिल्म की कहानी

पराग छापेकर, मुंबई। ऐतिहासिक फिल्में बनाना हर किसी के बस की बात नहीं इसमें न सिर्फ गहन रिसर्च की जरूरत होती है साथ ही साथ एक व्यापक दृष्टि का होना आवश्यक है| ऐतिहासिक फिल्मों की परंपरा को संजय लीला भंसाली और आशुतोष गोवारिकर जैसे निर्देशक ही आगे बढ़ा रहे हैं इसी सिलसिले को कायम रखते हुए आशुतोष गोवारिकर लेकर आए हैं, 'पानीपत'।

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यह उस दौर की कहानी है जब मराठा साम्राज्य पूरे भारत पर राज्य कर रहा था उस समय भारत की परिकल्पना नहीं थी आज का पूरा देश छोटे-छोटे राष्ट्रों में बैठा हुआ था यह छोटे-छोटे राष्ट्र एक दूसरे पर संपत्ति और समृद्धि के लिए अधिकार करते थे एक दूसरे से युद्ध करते थे ऐसे में मराठों ने अटक तक भगवा ध्वज फहराया था। यहां तक कि मुगल सम्राट भी उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए कर देते थे। इस धनराशि के बदले ये शर्त होती थी कि ना तो मराठी उन पर आक्रमण करेंगे और साथ ही उन पर हुए आक्रमण के समय उनकी रक्षा करेंगे।

सदाशिव राव भाऊ जोकि पेशवा के सेनापति रहे उन्हें उत्तर से बगावत की खबर मिलती है और जब इसे दबाने उनके विश्वसनीय शिंदे जाते हैं तो उनकी हत्या कर दी जाती है ऐसे में पेशवा तय करते हैं कि सदाशिवराव भाऊ अपनी सेना लेकर जाए और इस बगावत को खत्म करें। एक षड्यंत्र है जिसे दिल्ली में रचा गया है क्योंकि सदाशिवराव भाऊ का सामना होने जा रहा है कंधार के जालिम राजा अहमद शाह अब्दाली से जिसे एक षड्यंत्र के तहत दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए बुलाया गया है को बचाने के लिए सदाशिवराव भाऊ को।

अब्दाली और सदाशिव राव भाऊ की फौज का आमना सामना होता है पानीपत के मैदान में पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों का यह महानायक किस तरह से अपने ही लोगों के विश्वासघात का शिकार होता है और अपने प्राण निछावर कर देता है यही कहानी है पानीपत क उदात्त प्रेम निस्वार्थ देश प्रेम और वीरता से भरी पानीपत एक ऐसी फिल्म है जिसे देखना इतिहास को आंखों के सामने घटते हुए देखना है।

आशुतोष गोवारिकर में 1761 के काल को जीवंत कर दिया है। भव्य सेट्स, शानदार कॉस्टयूम, उस समय का रहन सहन, सेनाय अस्त्र-शस्त्र यह सारी चीजें बेहद रिसर्च के साथ आशुतोष सफलतापूर्वक पर्दे पर उतारते हैं। इस तरह की फिल्म बनाना हर किसी के बस की बात नहीं कोशिश के लिए बधाई के हकदार हैं।

अर्जुन कपूर ने इस किरदार को जीवंत बनाने के लिए कड़ी मेहनत की है वह साफ नजर आता है। क्लाइमैक्स के सीन में वह सच में बाजी मार ले जाते हैं। कृति सेनन हल्की-फुल्की फिल्मों में ही नजर आई थी उनका परफॉर्मेंस भी एक अलग अंदाज में नजर आता है। नवाब मलिक का परफॉर्मेंस उल्लेखनीय है। संजय दत्त की उपस्थिति बड़े पर्दे पर इतनी सशक्त कि वह वाकई उतने ही क्रूर और खूंखार लड़ाके लगते हैं। इसके अलावा मोहनीश बहल, पद्मिनी कोल्हापुरे, जीनत अमान और कुणाल कपूर जैसे पुराने कलाकारों ने चार चांद लगा दिए।

फिल्म का संगीत ला जवाब है फिल्म की कोरियोग्राफी भी कलरफुल तो है ही साथ ही साथ भव्य भी है। सिनेमैटोग्राफी को वाकई सलाम किया जा सकता है। एडिटिंग डिपार्टमेंट थोड़ा और काम कर सकता था। स्पेशल इफेक्ट्स में अभी भी शायद हमें उतनी महारत हासिल नहीं हुई है जितनी हॉलीवुड को हुई है। खासकर युद्ध के मैदान में पीछे खड़ा योद्धा सिर्फ खड़ा नजर आए और आक्रमण ना करें तो थोड़ा अजीब लगता है मगर इसे नजरअंदाज किया जा सकता है!

कुल मिलाकर पानीपत हमारे प्राचीन इतिहास को जानने के लिए देखी जानी चाहिए! यह एक ऐसी फिल्म है जिसमें मनोरंजन के साथ-साथ आपको ऐसी कई घटनाएं देखने मिलेगी भारतीय इतिहास के पदों में छुप गई थी

रेटिंग : 3.5


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