Move to Jagran APP

Nail Polish Review: हैरान कर देता है 'नेल पॉलिश' का रहस्य, मानव कौल हैं रोमांच की रीढ़, पढ़ें पूरा रिव्यू

नेल पॉलिश की कहानी लखनऊ में क्रिकेट प्रशिक्षण अकादमी चला रहे वीर सिंह (मानव कौल) से शुरू होती है जिन पर दो बच्चों के साथ दुष्कर्म कर मार डालने के बाद लाशों को जला देने के संगीन आरोप हैं।

By Manoj VashisthEdited By: Published: Fri, 01 Jan 2021 01:09 PM (IST)Updated: Sat, 02 Jan 2021 08:10 AM (IST)
Nail Polish Review: हैरान कर देता है 'नेल पॉलिश' का रहस्य, मानव कौल हैं रोमांच की रीढ़, पढ़ें पूरा रिव्यू
नेल पॉलिश में मानव कौल। फोटो- पीआर

नई दिल्ली, मनोज वशिष्ठ। नये साल की नई उम्मीदों और चुनौतियों के बीच पहली जनवरी को नेल पॉलिश Zee5 पर स्ट्रीम कर दी गयी है। अर्जुन रामपाल, मानव कौल, आनंद तिवारी और रजित कपूर अभिनीत यह फ़िल्म एक कोर्ट-रूम ड्रामा है, जिसमें अर्जुन रामपाल डिफेंस लॉयर बने हैं और बच्चों के क़त्ल के आरोपी मानव कौल के बचाव में जिरह करते दिख रहे हैं। नेल पॉलिश को भले ही कोर्ट-रूम ड्रामा कहकर प्रचारित किया गया हो, मगर इसमें साइकोलॉजिकल-थ्रिलर कहलाने की भरपूर क्षमता है, जिसका फ़िल्म के शीर्षक 'नेल पॉलिश' से गहरा संबंध है और रोमांच की रीढ़ है। 

loksabha election banner

नेल पॉलिश की कहानी लखनऊ में क्रिकेट प्रशिक्षण अकादमी चला रहे वीर सिंह (मानव कौल) से शुरू होती है, जिस पर दो बच्चों के साथ दुष्कर्म कर मार डालने के बाद लाशों को जला देने के संगीन आरोप हैं। राज्य में पहले से ही बच्चों के ख़िलाफ़ दुर्दांत अपराधों को देखते हुए वीर सिंह के पकड़े जाने के बाद सियासत गर्मा जाती है।विपक्षी राजनीतिक दल अपना हित साधने की गरज से वीर सिंह को बचाने की ज़िम्मेदारी नामी क्रिमिनल लॉयर सिड जय सिंह (अर्जुन रामपाल) को देता है। इसके बदले में जय सिंह को राज्य सभा सीट ऑफर की जाती है। 

उधर, बच्चों की गुमशुदगी और क़त्ल की वारदातों की वजह से जनता के रोष को देखते हुए राज्य प्रशासन वीर सिंह को कड़ी से कड़ी सज़ा दिलवाने के लिए पब्लिक प्रोसिक्यूटर अमित कुमार (आनंद तिवारी) को केस सौंपता है। मामला जज किशोर भूषण (रजित कपूर) की अदालत में जाता है और फिर दलीलों का सिलसिला शुरू होता है। मारे गये बच्चे के मुंह से मिले त्वचा के टुकड़े की डीएनए सैंम्पिलंग के आधार पर अदालत में यह लगभग तय हो जाता है कि बच्चों का क़त्ल वीर सिंह ने ही किया है। इससे पहले पुलिस वीर सिंह के फार्म हाउस में स्थित तहखाने से बड़ियों में जकड़े एक ज़िंदा बच्चे को बरामद कर चुकी होती है, जिस आधार पर उसे गिरफ़्तार किया गया था। 

जिरह के दौरान विभिन्न गवाहों के बयानों के आधार पर वीर सिंह के बारे में कुछ सनसनीखेज़ बातें सामने आती हैं, जो उसके निर्दयी अतीत से जुड़ी होती हैं। यह बात भी सामने आती है कि वो आर्मी का प्रशिक्षित अंडर कवर एजेंट रंजीत रह चुका होता है और अपने मिशन को अंजाम देने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। यह सब बातें वीर सिंह के ख़िलाफ़ जाती हैं। जेल में क़ैदियों के हमले के बाद गंभीर रूप से ज़ख़्मी वीर सिंह को अस्पताल में भर्ती करवा दिया जाता है, जहां उसकी पर्सनैलिटी का एक नया रूप सामने आता है। 

वीर ख़ुद को चारू रैना कहने लगता है और उसी तरह व्यवहार करने लगता है। नेल पॉलिश लगाता है। बाल लम्बे करने की ख्वाहिश जताता है। अदालत द्वारा नियुक्त मनोचिकित्सक की जांच में उसे डीआईडी यानि डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर होने का पता चलता और इस प्रक्रिया में कुछ और चौंकाने वाले खुलासे होते हैं, जो अदालत में वीर सिंह के पक्ष को और कमज़ोर कर देते हैं।

अब अदालत में बहस इस बात पर शुरू होती है कि उनके सामने वीर सिंह है ही नहीं तो केस किसके लिए लड़ा जाए और सज़ा किसे दी जाए? सवाल यह भी है कि वीर सिंह ढोंग कर रहा है या वाकई गंभीर मनोरोग का शिकार है? अंत में जज ऐसा फ़ैसला देते हैं, जिसकी सब तारीफ़ करते हैं। 

नेल पॉलिश की कथा और पटकथा इसके निर्देशक बग्स भार्गव कृष्ण ने ही लिखे हैं। कहानी परतदार है और स्क्रीनप्ले के ज़रिए दर्शक को बांधे रखने में सक्षम है, मगर काफ़ी हद तक प्रेडिक्टेबिल भी है। कहानी का सबसे अहम हिस्सा वीर सिंह के अतीत को लेकर होने वाले खुलासे हैं। आगे के दृश्यों के बारे में अंदाज़ा पहले से हो जाता है, मगर इससे फ़िल्म देखने की उत्सुकता कम नहीं होती, क्योंकि इस मोड़ तक आते-आते नेल पॉलिश का थ्रिल दर्शक को अपनी गिरफ़्त में ले चुका होता है।

स्क्रीनप्ले में कुछ चीज़ों को नज़रअंदाज़ भी किया गया है, जिससे बहुत-सी बातें साफ़ नहीं हो पातीं। राजनीतिक उठा-पटक की साजिशों को बस संवादों और फोन कॉल के ज़रिए दिखाया गया है। अर्जुन रामपाल का किरदार जय सिंह अपने पिता से इतनी नफ़रत करता है कि डार्ट गेम खेलते हुए लक्ष्य के तौर पर उनकी फोटो इस्तेमाल करता है, मगर ऐसा क्यों है? हालांकि, एक-दो संवादों के ज़रिए बताने की कोशिश की गयी है कि वीर सिंह को शायद उनके तौर-तरीके पसंद नहीं आते होंगे। यह ट्रैक उभारा जा सकता था।

फ़िल्म के तीनों मुख्य किरदारों वीर सिंह, जज भूषण और पब्लिक प्रोसिक्यूटर अमित की निजी ज़िंदगी के दृश्य बिल्कुल निष्प्रभावी हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें स्क्रीनप्ले की एकरसता तोड़ने के लिए महज़ औपचारिकता के तौर पर इस्तेमाल किया गया है। ये दृश्य ना भी होते तो नेल पॉलिश की कहानी पर कोई फर्क नहीं पड़ता।

बग्स की नेल पॉलिश के असली हीरो मानव कौल हैं, जिनकी अदाकारी ने रोमांच को एक अलग ही मुकाम दिया। वीर सिंह के किरदार की बेपरवाही से लेकर कश्मीर में तैनात अंडरकवर एजेंट रंजीत और चारू रैना के रूप में ट्रांसफॉर्मेशन को मानव कौल ने बेहतरीन ढंग से अंजाम दिया। इस किरदार की अपनी जटिलताएं और भावनात्मक ग्राफ है, जिसमें मानव पूरी शिद्दत से समा जाते हैं। भाव-भंगिमाएं हों या शारीरिक लचक, चारू का किरदार निभाते हुए मानव एक पल के लिए भी भटकते नहीं।

अर्जुन रामपाल ने डिफेंस लॉयर जय सिंह के किरदार को संजीदगी से निभाया है। कोर्ट में बहस के दृश्यों में अर्जुन प्रभाव छोड़ते हैं और वकील के किरदार में सहज लगते हैं। इसका श्रेय निर्देशक बग्स को भी जाता है, जिन्होंने अपने कलाकारों को बेवजह लाउड नहीं होने दिया है। अदालत के दृश्यों में असर तब ही पैदा होता है, जब पक्ष और विपक्ष के वकील बराबर की टक्कर के हों। इस मामले में आनंद तिवारी ने अर्जुन के साथ बेहतरीन जुगलबंदी की है। हिंदी सिनेमा में जज की भूमिका अमूमन ऑर्डर-ऑर्डर करने तक सीमित कर दी जाती है, मगर नेल पॉलिश में रजित कपूर का किरदार स्टैंड लेने वाला है। वो दृश्यों में इनवॉल्व रहते हैं और अपना प्रभाव भी छोड़ते हैं। 

नेल पॉलिश के सहायक कलाकार इसकी कमज़ोरी हैं। उनके अभिनय में कहीं-कहीं ग़ैरज़रूरी नाटकीयता नज़र आती है। जज की नशे में डूबी रहने वाली पत्नी का किरदार मधु ने निभाया है। हालांकि, यह किरदार बस खानापूर्ति के लिए है। फ़िल्म की प्रोडक्शन क्वालिटी प्रभावशाली नज़र नहीं आती। ख़ासकर, जेल और कोर्ट के सेटों की बनावट और साज-सज्जा में कृत्रिमता झलकती है। हालांकि, नेल पॉलिश के ट्विस्ट और टर्न्स के लिए इन्हें नज़रअंदाज़ किया जा सकता है। थ्रिलर फ़िल्मों के शौकीनों को नेल पॉलिश साल की बेहतरीन शुरुआत है।

कलाकार- अर्जुन रामपाल, मानव कौल, अविनाश तिवारी, रजित कपूर, मधु आदि। 

निर्देशक- बग्स भार्गव कृष्ण

निर्माता- जहांआरा भार्गव, धीरज विनोद आदि।

वर्डिक्ट- ***(तीन स्टार)

अवधि- 2 घंटा 6 मिनट।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.