Masoom Web Series Review: बाप-बेटी की रस्साकशी के बीच दिल जीत लेती है बमन ईरानी की 'स्याह-सफेद' अदाकारी, पढ़ें पूरा रिव्यू
Masoom Web Series Review रविवार 19 जून को फादर्स डे मनाया जा रहा है। इस मौके पर डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर मासूम रिलीज हुई है जो एक पिता और उसके बेटी के बीच दरकते और संभलते रिश्तों की कहानी है। कैसी है थ्रिल सीरीज जानने के लिए पूरा रिव्यू पढ़ें।
मनोज वशिष्ठ, जेएनएन। फादर्स डे से दो दिन पहले शुक्रवार को डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज हुई 6 एपिसोड्स की वेब सीरीज मासूम एक परिवार में पिता, मां और बच्चों के बीच आपसी रिश्तों के उतार-चढ़ाव की कहानी दिखाती है। यह कहानी एक साइकोलॉजिकल इमोशनल थ्रिलर के रूप में सामने आती है। मासूम मुख्य रूप से एक पिता और उसकी बेटी के बीच रिश्तों के दरकने की कहानी है। यह उस अविश्वास की कहानी भी है, जो एक फैमिली सीक्रेट से पनपता है और धीरे-धीरे यह अविश्वास इतना बढ़ जाता है कि बेटी के जवान होते-होते पिता उसकी नजरों में खलनायक बन चुका होता है।
मासूम का थ्रिल इसी फैमिली सीक्रेट और अविश्वास से उपजा है, जो एपिसोड-दर-एपिसोड बढ़ता जाता है। आयरिश शो ब्लड के इस हिंदी रूपांतरण को मिहिर देसाई ने निर्देशित किया है, जबकि शो रनर गुरमीत सिंह हैं। मिहिर और गुरमीत, मिर्जापुर जैसे शो के लिए जाने जाते हैं।
स्टोरी
मासूम की कथाभूमि पंजाब का फलौली गांव है, जहां डॉ. बलराज कपूर (बमन ईरानी) अपना नर्सिंग होम चलाते हैं। लम्बी बीमारी के बाद एक सुबह डॉक्टर साहब की पत्नी गुणवंत (उपासना सिंह) की बेड से गिरकर मौत हो जाती है। मां की मौत की खबर सुनकर छोटी बेटी सना (समारा तिजोरी) दिल्ली से फलौली आती है। बड़ी बहन (मंजरी फड़नीस) और भाई (वीर ) से घटनाक्रम जानकर उसे शक होता है कि यह हादसा नहीं, बल्कि कत्ल है, क्योंकि जिस कमरे में मां की मौत होती है, वहां की सेफ खुली हुई थी। मौका-ए-वारदात के हालात संदिग्ध होने के बावजूद डॉक्टर साहब ने इसको लेकर पुलिस में कोई शिकायत दर्ज नहीं करवायी थी।
सना और डॉक्टर साहब के बीच रिश्तों की तल्खी का अतीत और उनकी संदिग्ध गतिविधियां उसके शक को मजबूत करती हैं। मासूम की पूरी कहानी सना के नजरिए से दिखायी गयी है। सना अपने पिता पर बिल्कुल भरोसा नहीं करती। बचपन में उसने डॉक्टर बलराज को पड़ोसी सोढी को पीटते देखा था, जिसके बाद सोढी आत्महत्या कर लेता है। डॉक्टर बलराज ने ऐसा क्यों किया, इसका जवाब सना से छिपाया जाता है, जो फैमिली सीक्रेट बन जाता है। इस घटना का सना के बालमन पर गहरा असर पड़ता है और वो पिता से दूर होती चली जाती है।
स्क्रीनप्ले
सीरीज के पांच एपिसोड्स सना और डॉक्टर बलराज के बीच कड़वाहट और इससे पैदा हुए घटनाक्रमों के साथ आगे बढ़ते हैं और हर घटनाक्रम एक थ्रिल लेकर आता है। मसलन, सना को कुछ ऐसे सुराग मिलते हैं, जिससे उसका शक पुख्ता होता जाता है कि मां को डॉक्टर साहब ने मारा है। कुछ और परतें खुलती हैं, जिनसे सीरीज इनवेस्टिगेटिव ड्रामा और थ्रिल का रूप ले लेती है।
यहां दर्शक की दिलचस्पी बनी रहती है। आखिरी एपिसोड में इन सभी घटनाक्रमों के पीछे की कड़ियां जुड़ती हैं, जिन्हें स्क्रीनप्ले में इस तरह दिखाया गया कि रहस्य बना रहता है। जिस फैमिली सीक्रेट से सना और उसके पिता के रिश्ते पटरी से उतरे उसका खुलासा होता है। आखिरी एपिसोड के क्लाइमैक्स अगले सीजन का भी संकेत देता है।
एक्टिंग
मासूम, बमन ईरानी का ओटीटी डेब्यू है और यकीन मानिए इस किरदार में बलराज अपने अभिनय के ऐसे रंग दिखा जाते हैं कि सीरीज सिर्फ उनके लिए देखी जा सकती है। जहन में बस यही आता है कि डॉ. बलराज के स्याह और सफेद रंगों वाले किरदार को निभाने के लिए बमन जैसे ही सक्षम कलाकार की जरूरत थी।
एक सम्मानित डॉक्टर, जो विधायक के चुनाव में खड़ा हो रहा है, पत्नी को बेइंतहा प्यार करता है, मगर उसकी जान भी लेता है, नर्स के साथ अफेयर चल रहा है, बड़ी बेटी शादी के बाद भी पति के साथ नहीं रहती, छोटी बेटी उसके लिए किसी दुश्मन से कम नहीं... कभी मजबूर पिता तो कभी शातिर दिमाग अपराधी... बमन के भाव-प्रदर्शन देखने लायक है। उनकी अदाकारी का कमाल ही है कि दर्शक को भी इस किरदार के सही मिजाज का अंदाजा लगाना मुश्किल होता है, जो इस सीरीज के सस्पेंस और थ्रिल का असली स्रोत है। सीरीज के आखिरी दृश्य तक बलराज को समझना मुश्किल रहता है।
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सना के किरदार में दीपक तिजोरी की बेटी समारा तिजोरी ने बेहतरीन काम किया है। साइकोलॉजिकल ट्रॉमा से जूझ रही ऐसी बेटी जो अपने ही पिता पर भरोसा नहीं कर सकती, इस किरदार को समारा ने अपने अभिनय से जीवंत किया है। समारा ने बॉब बिस्वास के साथ अभिनय की पारी शुरू की थी और वो लगातार निखर रही हैं। भावनात्मक रूप से यह किरदार काफी जटिल है, जिसे निभाने में सना ने निराश नहीं किया है।
यहां उपासना सिंह का जिक्र करना जरूरी है, जिन्हें दर्शक पिछले कुछ सालों में कॉमेडी के मंचों पर देखते रहे हैं। मासूम में उपासना का एक कविता-प्रेमी और भावुक मां के किरदार में देखना सुखद है। उन्हें ऐसे किरदार ज्यादा करने चाहिए। बाकी कलाकारों में मंजरी फड़नीस और वीर राजवंत सिंह, मनु ऋषि चड्ढा ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है। मिहिर देसाई का निर्देशन सधा हुआ है, उन्होंने कलाकारों के अभिनय के परिस्थितियों और दृ्श्यों की जरूरत के हिसाब से दायरे में रखा है। हालांकि, कहानी के फैलाव को थोड़ा और कसा जा सकता था, जिससे सीरीज की रफ्तार तेज हो सकती थी।
डायरेक्शन-म्यूजिक
मासूम की एक और खूबी है, इसका संगीत। बॉलीवुड फिल्मों को इस सीरीज के गीत और संगीत से सबक लेना चाहिए। टाइटल ट्रैक और उपासना सिंह पर फिल्माए गये सूफियाना गीतों से पंजाब की मिट्टी की खुशबू आती है और यह कानों को सुकून देता है। फैमिली ड्रामा के साथ थ्रिलर के शौकीनों को मासूम पसंद आएगी। सीरीज कलाकारों के बेहतरीन अभिनय के लिए देखी जा सकती है।
कलाकार- बमन ईरानी, समारा तिजोरी, मंजरी फड़नीस, वीर राजवंत सिंह, मनु ऋषि चड्ढा आदि।
निर्देशक- मिहिर देसाई
निर्माता- रिलायंस एंटरटेनमेंट
प्लेटफॉर्म- डिज्नी प्लस हॉटस्टार
अवधि- 30 मिनट लगभग प्रति एपिसोड
रेटिंग- *** (तीन स्टार)