Move to Jagran APP

Khaali Peeli Review: मनोरंजन के हाईवे पर फुल स्पीड दौड़ती ईशान खट्टर और अनन्या पांडेय की 'खाली-पीली'

Khaali Peeli Review फ़िल्म का ट्रीटमेंट आपको अस्सी के दौर के उस सिनेमा के सफ़र पर ले जाता है। इसका एहसास क्रेडिट रोल्स के दृश्यों से हो जाता है जब एक चेज़ सीक्वेंस में ट्रेन के डब्बों के बीच से भागते-भागते फ़िल्म का हीरो बड़ा हो जाता है।

By Manoj VashisthEdited By: Published: Sat, 03 Oct 2020 11:29 AM (IST)Updated: Sat, 03 Oct 2020 05:43 PM (IST)
Khaali Peeli Review: मनोरंजन के हाईवे पर फुल स्पीड दौड़ती ईशान खट्टर और अनन्या पांडेय की 'खाली-पीली'
खाली-पीली के दृश्य में ईशान और अनन्या। (Photo- Mid-Day)

नई दिल्ली, मनोज वशिष्ठ। कोरोना वायरस लॉकडाउन की वजह से सिनेमाघर बंद होने के कारण कई ऐसी फ़िल्मों को ओटीटी का रुख़ करना पड़ा, जो सिनेमाघरों में रिलीज़ करने के लिए बनायी गयी थीं। इन्हीं में से एक ईशान खट्टर और अनन्या पांडेय की फ़िल्म 'खाली-पीली' है, जो गांधी जयंती के अवसर पर 2 अक्टूबर को ज़ीप्लेक्स पर रिलीज़ हो गयी। 'खाली-पीली' बॉलीवुड स्टाइल की टिपिकल मसाला एंटरटेनर है, जिसमें एक हीरो है, हीरोइन है, विलेन है, थोड़ा नाच-गाना और एक्शन है।

loksabha election banner

फ़िल्म का ट्रीटमेंट आपको अस्सी के दौर के उस सिनेमा के सफ़र पर ले जाता है, जब इन सब तत्वों को बोलबाला हुआ करता था। इसका एहसास क्रेडिट रोल्स के दृश्यों से हो जाता है, जब एक चेज़ सीक्वेंस में ट्रेन के डब्बों के बीच से भागते-भागते फ़िल्म का हीरो अचानक बड़ा हो जाता है। सत्तर और अस्सी के एक्शन ड्रामा में ऐसे सीन ख़ूब देखने को मिलते थे। आपको याद है, आख़िरी बार ऐसा दृश्य किस फ़िल्म में देखा था? मिलेनियल दर्शक को सोचने के लिए शायद थोड़ा वक़्त लगे। 

'खाली-पीली' बचपन के प्रेमियों विजय (ईशान) और पूजा (अनन्या) के मिलने, बिछड़ने और फिर मिलने की कहानी है। विजय बचपन से ही शातिर दिमाग और तेज़-तर्रार है। वो काली-पीली टैक्सी चलाता है। उसके कोई नैतिक मूल्य नहीं हैं। मौक़े पर चौका मारना उसका उसूल है। जैसा कि मुंबइया फ़िल्मों में अक्सर स्ट्रीट स्मार्ट किड्स को दिखाया जाता है, विजय उसी परम्परा को आगे बढ़ाता है। एक घटनाक्रम के दौरान उसे पूजा मिलती है, जो अपनी शादी से भाग रही है। वो विजय की टैक्सी हायर करती है। बदले में विजय मोटी रकम मांगता है, जिसके लिए वो तैयार हो जाती है। विजय उसे लेकर भागता है। पूजा के पीछे यूसुफ़ (जयदीप अहलावत) के गुंडे लग जाते हैं। यूसुफ एक पिंप है, जो जिस्मफरोशी के धंधे में है। एक और घटनाक्रम होता है, जिसके बाद मुंबई क्राइम ब्रांच का अफ़सर तावड़े (ज़ाकिर हुसैन) उनके पछे पड़ जाता है। 

कहानी बहुत साधारण है और देखी-देखी लग सकती है, मगर यश केसरवानी और सीमा अग्रवाल के स्क्रीनप्ले ने सपाट कहानी को रोमांचक बना दिया। पटकथा में फ्लैशबैक का बेहतरीन इस्तेमाल किया गया है, जिसके चलते एंटरटेनमेंट डोज़ कम नहीं हुई। विजय और पूजा के बचपन वाली मासूम लव स्टोरी बीच-बीच में आये फ्लैशबैक के ज़रिए सामने आती है।

पटकथा के ये हिस्से दर्शक का इंटरेस्ट बनाए रखते हैं। बैकस्टोरी के ज़रिए ही पता चलता है कि यूसुफ़ से विजय का पुराना रिश्ता है और उसकी मौजूदा ज़िंदगी में उथल-पुथल के लिए वो ही ज़िम्मेदार है। यूसुफ़, बचपन से ही विजय और पूजा की लव स्टोरी का असली खलनायक भी है। किसी दृश्य के बाद उसे समझाने के लिए बैकस्टोरी दिखाने का प्रयोग सफल रहा है, जो 'खाली-पीली' की एकरूपता को तोड़कर रोमांच बनाये रखता है। 

शाहिद कपूर के हाफ़ ब्रदर ईशान ख़ट्टर की यह तीसरी फ़िल्म है। बतौर लीड एक्टर उन्होंने ईरानी निर्देशक माजिद मजीदी की फ़िल्म 'बियॉन्ड द क्लाउड्स' से अपना फ़िल्मी सफ़र शुरू किया था। इस फ़िल्म से ईशान ने जता दिया था कि अभिनय उनकी रगों में है। दूसरी फ़िल्म 'धड़क' आयी, जो मराठी हिट 'सैराट' का आधिकारिक रीमेक थी। इस फ़िल्म में उन्होंने छोटे शहर के एक मासूम प्रेमी का रोल निभाया था। खाली-पीली, ईशान का परिचय हिंदी सिनेमा के उस हीरो से करवाती है, जिसके लिए बॉलीवुड दुनियाभर में मशहूर है।

ईशान ने विजय के किरदार को कामयाबी के साथ निभाया है। स्ट्रीट स्मार्ट लड़कों के मुंबइया एक्सेंट को उन्होंने काफ़ी क़रीब से पकड़ा है। 'रागरतन' जैसे शब्द गुदगुदाते हैं। दरअसल, फ़िल्म का शीर्षक 'खाली-पीली' भी उसी मुंबइया स्लैंग से ही आया है। 

मुंबई को नज़दीक़ से देखने वाले जानते होंगे कि आम बोलचाल की भाषा में खाली-पीली का अर्थ होता है बेवजह या बिना बात के। निर्देशक मकबूल ख़ान ने मुंबइया भाषा के इसी सिग्नेचर स्टाइल को अपनी फ़िल्म का शीर्षक बनाया। 'खाली-पीली' शीर्षक रखने की एक वजह यह भी है कि यह सुनने में काली-पीली जैसा लगता है, जो समंदर और सितारों की तरह मुंबई की एक पहचान रही है। निजी कम्पनियों की ऐप आधारित टैक्सी सर्विसेज शुरू होने से पहले मुंबई के रास्तों पर इन्हीं काली-पीली टैक्सी का सिक्का चलता था। 'खाली-पीली' में यही काली-पीली रोमांच के रंग भरती है। 

'खाली-पीली' की पूजा अनन्या पांडेय की भी यह तीसरी रिलीज़ है। उन्होंने 'स्टूडेंट्स ऑफ़ द ईयर' से बॉलीवुड में डेब्यू किया था। इस फ़िल्म में पूजा के किरदार में अनन्या अच्छी लगी हैं और ईशान के साथ मिलकर 'खाली-पीली' को मनोरंजन के हाइवे पर भटकने नहीं दिया। स्वानंद किरकिरे फ़िल्म का सरप्राइज़ हैं। स्वानंद ने अधेड़ उम्र के अमीर आदमी का किरदार निभाया है, जो बिज़नेस की आड़ में जिस्मफरोशी का धंधा चलाता है। वो अपने से कई साल छोटी पूजा से शादी करना चाहता है। बेहतरीन गीतकार स्वानंद को इस किरदार में अभिनय करते देखना चौंकाता भी है और इंटरेस्ट भी जगाता है।

जयदीप अहलावत बेहतरीन एक्टर हैं और इस किरदार को निभाना उनके लिए बिल्कुल भी चुनौतीपूर्ण नहीं था। अनूप सोनी को ज़्यादा स्क्रीन टाइम नहीं मिला है, मगर जितनी देर के लिए आते हैं, ठीक लगते हैं। सतीश कौशिक का स्पेशल एपीयरेंस कॉमेडी का छौंक लगाता है। 'खाली-पीली' के दोनों बाल कलाकारों वेदांत देसाई और देशना दुगड़ ने विजय यानि ब्लैकी और पूजा के किरदारों को स्टेब्लिश करने में अहम योगदान दिया है। देशना, आमिर ख़ान की 'ठग्स ऑफ़ हिंदोस्तान' में छोटी ज़ाफिरा ( बाद में फ़ातिमा सना शेख़) का किरदार निभा चुकी हैं। 

'खाली-पीली' में संगीत की सबसे अच्छी बात यह है कि यह कहीं भी स्क्रीनप्ले को बाधा नहीं पहुंचाता। सिर्फ़ तीन गाने हैं, जो सिचुएशनल हैं। बैकग्राउंड में बजने वाला 'तहस-नहस' प्रभावित करता है, जिसे शेखर रवजियानी (विशाल-शेखर) और प्रकृति कक्कड़ ने आवाज़ दी है। विवाद के बाद 'दुनिया शरमा जाएगी' गीत से बियॉन्से शब्द को हटा दिया गया है। संचित बलहारा और अंकित बलहारा का बैकग्राउंड स्कोर 'खाली-पीली' के रोमांचक सफ़र को गति देता है। रामेश्वर भगत की एडिटिंग स्टाइलिश है। ख़ासकर, वो दृश्य, जिसमें विजय, यूसुफ के आदमी से पूजा को सौंपने के बदले में मोल-भाव कर रहा होता है, प्रभावित करता है। इस दृश्य में एक चलती हुई और एक रुकी हुई टैक्सी के दृश्यों को जोड़कर बनाये गये मोंटाज ध्यान आकर्षित करते हैं। 

निर्देशक मक़बूल ख़ान ने फ़िल्म के सभी विभागों का सही इस्तेमाल किया है। कहानी में नयापन ना होने के बावजूद इसे प्रस्तुत करने का अंदाज़ लुभाता है। 'खाली-पीली' अस्सी के दौर की मसाला फ़िल्मों का एहसास देती है, मगर इसके ड्रामे में वो अतिरंजता नहीं आने दी है, जो उस दौर की ख़ासियत होती थी और आज के दर्शक को हास्यास्पद लगती है। 

कलाकार- ईशान खट्टर, अनन्या पांडेय, जयदीप अहलावत, ज़ाकिर हुसैन, अनूप सोनी, सतीश कौशिक आदि।

निर्देशक- मक़बूल ख़ान

निर्माता- अली अब्बास ज़फ़र, हिमांशु किशन मेहरा और ज़ी स्टूडियो।

प्लेटफॉर्म- ज़ीप्लेक्स

वर्डिक्ट- *** (तीन स्टार)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.