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Ginny Weds Sunny Review: सपाट और प्रेडिक्टेबल है 'गिन्नी वेड्स सनी' की कहानी, रोमांस में नहीं रोमांच

Ginny Weds Sunny Review निर्देशक पुनीत खन्ना ने एक हल्की-फुल्की रोमांटिक-कॉमेडी बनाने की कोशिश की मगर बहुत सारे क्लीशे होने की वजह से दो घंटा पांच मिनट की इस रोमांटिक-कॉमेडी से प्यार होना मुश्किल है। फ़िल्म एक वक़्त के बाद खिंची हुई लगने लगती है।

By Manoj VashisthEdited By: Published: Fri, 09 Oct 2020 08:50 PM (IST)Updated: Sat, 10 Oct 2020 08:51 AM (IST)
Ginny Weds Sunny Review: सपाट और प्रेडिक्टेबल है 'गिन्नी वेड्स सनी' की कहानी, रोमांस में नहीं रोमांच
गिन्नी वेड्स सनी में विक्रांत और यामी। (Photo- Netflix)

नई दिल्ली, मनोज वशिष्ठ। नेटफ्लिक्स पर इस शुक्रवार (9 अक्टूबर) को गिन्नी वेड्स सनी रिलीज़ हुई है। प्यार में कन्फ्यूज़न के विषय पर हिंदी सिनेमा पर अनगिनत फ़िल्में बन चुकी हैं। कभी नायक को कन्फ्यूज़न होता है तो कभी नायिका को। जब किसी प्रचलित थीम पर फ़िल्म बनायी जाती है तो कहानी कहने का ढंग बेहद ज़रूरी हो जाता है। यही एक ऐसा तरीक़ा है, जो फ़िल्म को जीवंत बना सकता है और दर्शक के अंदर कुछ नया देखने का भाव जगाता है। अगर इसमें शिथिलता हुई तो फिर फ़िल्म के ढेर होने में वक़्त नहीं लगता। गिन्नी वेड्स सनी की कहानी, हिंदी सिनेमा के सदियों पुराने इसी फॉर्मूले को दोहराती है। मगर, फ़िल्म कुछ नया नहीं दे पाती।  

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कहानी सतनाम सेठी यानि सनी (विक्रांत मैसी) और गिन्नी (यामी गौतम) की है। दोनों दिल्ली की मिडिल क्लास पंजाबी फैमिली से ताल्लुक रखते हैं। सनी बहुत अच्छा कुक है। वो रेस्टॉरेंट खोलना चाहता है। मगर, उसके पिता (राजीव गु्प्ता)  का मानना है कि पहले वो शादी करे। सनी को कई लड़कियां रिजेक्ट कर चुकी हैं। कोई रास्ता ना देख उसके पिता मैचमेकर शोभा जुनेजा (आएशा रज़ा मिश्रा) की मदद लेते हैं।

शोभा की बेटी गिन्नी है, जो आज़ाद ख्याल और अपनी शर्तों पर ज़िंदगी जीने वाली है। बीमा कंपनी में काम करती है। उसकी एक अमीर लड़के निशांत राठी (सुहैल नय्यर) से दोस्ती है। गिन्नी उससे शादी करना चाहती है, मगर लड़का टाल रहा है। इस बात पर दोनों का ब्रेकअप हो चुका है, मगर फिर भी साथ हैं। गिन्नी उसके साथ घूमती है। कंसर्ट में जाती है। गिन्नी की मां को आइडिया आता है कि क्यों ना सनी की शादी गिन्नी से करवा दें।

सनी भी स्कूल टाइम से गिन्नी को चाहता है, मगर उसे वो अपनी पहुंच से बाहर लगती है। जब शोभा उसे प्रेरित करती है तो वो गिन्नी को इंप्रेस करने के लिए उसके पीछे लग जाता है। आख़िरकार, गिन्नी मान जाती है, मगर जब सनी गिन्नी के लिए अपने प्यार का इज़हार करता है, तभी निशांत उसे प्रपोज़ कर देता है। सनी का दिल टूट जाता है। गिन्नी एक बार फिर कन्फ्यूज़ हो जाती है। टूटा दिल लिये सनी अपने माता-पिता की मर्ज़ी से शादी के लिए तैयार हो जाता है और अपना रेस्टोरेंट खोलने का इरादा छोड़कर पिता की हार्डवेयर शॉप पर हाथ बंटाने लगता है।

गिन्नी की मां एक बार फिर कोशिश करती है और गिन्नी को सनी की शादी में शामिल होने के लिए राज़ी कर लेती है। इस बीच निशांत गिन्नी से मिलकर अपना कन्फ्यूज़न दूर कर लेता है कि वो दोनों दोस्त ही रहेंगे। गिन्नी, सनी की डेस्टिनेशन वेडिंग में जाती है। वहां कुछ ऐसा होता है कि गिन्नी गुस्सा भूलकर सनी के साथ शादी करने के लिए उतावली हो जाती है। बस, थोड़े नाटकीय घटनाक्रम के बाद फ़िल्म की हैप्पी एंडिंग हो जाती है। 

गिन्नी वेड्स सनी की कहानी बहुत ही सपाट और प्रेडिक्टेबल है, जिसकी वजह से फ़िल्म नीरस हो गयी है। हालांकि कुछ दृश्य गुदगुदाते हैं। सनी, जब गिन्नी की मां के निर्देशन में उसे इंप्रेस करने के लिए तरह-तरह के प्रपंच करता है, उन दृश्यों से थोड़ा सुकून मिलता है।

क्लाइमैक्स के दृश्यों में कुछ टेंशन पैदा करने की कोशिश की गयी है, मगर वो दृश्य इतने प्रेडिक्टेबल हैं कि सारा रोमांच ख़त्म हो जाता है। संवादों और उच्चारण के ज़रिए पंजाबी कल्चर और जज़्बे को उभारने की कोशिश की गयी है, मगर नवजोत गुलाटी और सुमित अरोड़ा के लेखन में कहीं-कहीं वो रवानगी मिसिंग लगती है और सब कुछ छोपा हुआ-सा लगने लगता है।

विक्रांत मैसी की यह पहली कमर्शियल रोमांटिक-कॉमेडी फ़िल्म है, जिसमें उन्होंने लीड रोल निभाया है। विक्रांत की अभिनय क्षमता पर शक़ नहीं किया जा सकता। इस फ़िल्म में उन्होंने कुछ नया करने की कोशिश की है। गानों पर लिप सिंक किया है और डांस का हुनर दिखाया है। नेटफ्लिक्स की 'डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे' और 'कार्गो' के बाद विक्रांत बिल्कुल अलग अंदाज़ में यहां दिखे हैं। हालांकि, उन्हें देखकर रोमांटिक हीरो वाला भाव नहीं आता।

यामी गौतम ने गिन्नी के किरदार की बेबाकी और बोल्डनेस को जीने की भरपूर कोशिश की है और काफ़ी हद तक इसमें कामयाब रही हैं। फ़िल्म के सहयोगी किरदारों में शोभा जुनेजा का किरदार उभरकर आया है, जिसे आएशा रज़ा मिश्रा ने निभाया है। वो पूरी फ़िल्म में छायी रही हैं। फ़िल्म में मीका और बादशाह का गाना सावन में लग गयी आग ही याद रहता है। बाक़ी, खानापूर्ति के लिए हैं। सबसे निराशाजनक बात यह है कि कहानी दिल्ली में सेट होने के बावजूद, 'दिल्ली' इस कहानी का हिस्सा नहीं बन पाती। 

निर्देशक पुनीत खन्ना ने एक हल्की-फुल्की रोमांटिक-कॉमेडी बनाने की कोशिश की, मगर बहुत सारे क्लीशे होने की वजह से दो घंटा पांच मिनट की इस रोमांटिक-कॉमेडी से प्यार होना मुश्किल है। फ़िल्म एक वक़्त के बाद खिंची हुई लगने लगती है। उन्होंने जैसे-तैसे गिन्नी और सनी की शादी तो बचा ली, मगर फ़िल्म नहीं बचा सके।

फ़िल्म के निर्माता विनोद बच्चन इससे पहले तनु वेड्स मनु जैसी फ़िल्म बना चुके हैं, जिसे आनंद एल राय ने निर्देशित किया था। शादी और प्यार में कन्फ्यूज़न पर बनी फ़िल्मों की फेहरिस्त में तनु वेड्स मनु का स्थान काफ़ी ऊपर है। इसी थीम को गिन्नी वेड्स सनी में भुनाने की कोशिश की गयी है, मगर इस बार मामला जमा नहीं।

कलाकार- विक्रांत मैसी, यामी गौतम, राजेश गुप्ता, आएशा रज़ा मिश्रा, सुहैल नय्यर आदि।

निर्देशक- पुनीत खन्ना

निर्माता- विनोद बच्चन

वर्डिक्ट- **1/2 (ढाई स्टार)


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