फिल्म रिव्यू: सचिन सचिन सचिन: अ बिलियन ड्रीम्स (साढ़े तीन स्टार)
भारत रत्न से सम्मानित कद्दावर व्यक्तित्व के इस खिलाड़ी के प्रति फिल्म न्यात नहीं करती। सचिन के जीवन पर एक बड़ी फिल्म तो बननी ही चाहिए।
-अजय ब्रह्मात्मज
मुख्य किरदार: सचिन तेंदुलकर, अर्जुन तेंदुलकर, अंजली तेंदुलकर, सारा तेंदुलकर, मयुरेश पेम
निर्देशक: James Erskin
निर्माता: रवि भागचंदक,श्रीकांत भासी
स्टार: ***1/2 (साढ़े तीन स्टार)
’सचिन सचिन’ की आवाज और गूंज के साथ यह फिल्म सभी दर्शकों दिल-ओ-दिमाग में प्रतिध्वनित होती है। सचिन भी बताते हैं ये दो शब्द ‘सचिन सचिन’ वे नहीं भूल पाए हैं। इन दो शब्दों में ही प्रशंसकों और देशवासियों का प्रेम समा जाता है। न तो यह फीचर फिल्म है और न डाक्यूमेंट्री। भारतीय क्रिकेट के के श्रेष्ठ खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर के खेल जीवन के प्रसंगों और लाइव फुटेज को जोड़ कर बनायी गयी यह फिल्म एक खिलाड़ी के समर्पण, लगन और जीवन का परिचय देती है। फिल्म में एक जगह आमिर खान बिल्कुल सही कहते हैं कि सचिन हमारे सामूहिक गर्व के प्रतीक हैं। फिल्म में अमिताभ बच्चहन भी बताते हैं कि सचिन के मैदान में मौजूद रहने पर सारी संभावनाएं कायम रहती हैं।
यह फिल्म स्कूलों में अनिवार्य कर देनी चाहिए। बच्चे किसी भी क्षेत्र में अपनी रुचि से बड़ें, लेकिन उनमें लगन और समर्पण तो होना ही चाहिए। खेलप्रेमी खास कर क्रिकेटप्रेमी सचिन के बारे में सब कुछ जानते हैं। यह फिल्म सचिन के मैचों के फुटेज से वैसा ही रोमांच पैदा करती है। फिल्म देखते हुए वे पल याद आ जाते हैं, जब सचिन मैदान में थे और हम-आप स्टेडियम या अपने घर में बैठे मैच का आनंद ले रहे थे। लाइव में तो हार-जीत की अग्रिम जानकारी नहीं रहती। ऐसी फिल्मों में पूर्व जानकारी के बावजूद रोमांच कम नहीं होता। फिर से तालियां बज जाती हैं। सिनेमाघर में हर्ष से चिल्लाने का मन करेगा। इस फिल्म पर थोड़ी और मेहनत की गई होती और सचिन तेंदुलकर के व्यक्त्त्वि को खंगाला गया होता तो यह फिल्म दूरगामी प्रभाव की हो जाती।
यों लगता है कि सचिन की तरफ से निर्माता-निर्देशक को भरपूर सहयोग नहीं मिला। सचिन ने अपना नैरेशन एक ही दिन में पूरा कर दिया है। शिवाजी पार्क, बच्चों के साथ चुहल, अंजलि से मुलाकात और फायनली वर्ल्ड कप की जीत के प्रसंगों में सचिन सहज और सरल हैं। अन्यथा यों लगता है कि मैच समाप्त होने के बाद फौरी इंटरव्यू् दे रहे हों और जल्दी से लौटना चाहते हों। मध्यवर्गीय परिवार के सचिन तेंदुलकर की जीवन शैली समृद्ध हो चुकी है, लेकिन उनके मूल्यि अभी तक मध्यवर्गीय हैं। एक दृश्य में जब वे अपने बेटे को लेकर प्रैक्टिस के लिए उतरते हैं तो वहां अचीवर और प्राउड पापा की फीलिंग देते हैं।
अपने पिता को याद करते समय वे हमेशा भावुक हुए हैं। भाई अजीत और कोच आचरेकर को वे कभी नहीं भूलते। किसी न किसी बहाने उनका जिक्र करते समय अपनी कृतज्ञता जाहिर करते रहते हैं। भारत रत्न से सम्मानित कद्दावर व्यक्तित्व के इस खिलाड़ी के प्रति फिल्म न्यात नहीं करती। सचिन के जीवन पर एक बड़ी फिल्म तो बननी ही चाहिए। यह फिल्म उनकी कामयाबी में परिवार की भूमिका की झलक भर देती है। सचिन बनने की प्रक्रिया पर ज्यादा जोर नहीं है। यह सचिन बन जाने की कहानी है।
अवधि: 138 मिनट