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फिल्म समीक्षा: प्लास्टिक फिल्मों से दूर एक ईमानदार फिल्म है 'न्यूटन' (चार स्टार)

अगर आप प्लास्टिक फिल्मों से दूर वाकई कुछ देखना चाहते हैं तो 'न्यूटन' आपके लिए एक बेहतरीन ऑप्शन है।

By Rahul soniEdited By: Published: Fri, 22 Sep 2017 02:42 AM (IST)Updated: Sat, 23 Sep 2017 05:11 PM (IST)
फिल्म समीक्षा: प्लास्टिक फिल्मों से दूर एक ईमानदार फिल्म है 'न्यूटन' (चार स्टार)

- पराग छापेकर

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मुख्य कलाकार: राजकुमार राव, पंकज त्रिपाठी, अंजली पाटिल, रघुवीर यादव

निर्देशक: अमित वी मसूरकर

निर्माता: मनीष मुंदड़ा

एक दौर था जब कमर्शियल मसाला फिल्मों के साथ-साथ समानांतर सिनेमा का भी अपना दर्शक वर्ग था। श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी, प्रकाश झा जैसे समर्थ निर्देशकों ने पार भूमिका 'अर्धसत्य' और 'दामुल' जैसे कई क्लासिक दिए हैं। जिसमें एक आम आदमी की कहानी बिना किसी लाग-लपेट के कही गई। मगर उसके बाद के दौर में ऐसा नहीं कि प्रयास नहीं हुए मगर उसमें बाजार की मिलावट साफ नज़र आने लगी। इस हफ्ते रिलीज़ हुई नए निर्देशक अमित मसूरकर जिनकी अभी तक सिर्फ एक ही फिल्म रिलीज़ हुई है और अब उनकी दूसरी फिल्म 'न्यूटन' रिलीज़ हो रही है। यह फिल्म इतनी ईमानदार है कि आपको बरबस ही समानांतर सिनेमा का वह सुनहरा दौर याद आ जाता है जब श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी जैसे निर्देशक बेलाग फिल्में बनाते थे।

न्यूटन कहानी है एक आदर्शवादी लड़के की जिसका नाम तो है नूतन लेकिन, उसने अपना नाम न्यूटन रख लिया है। यह आदर्शवादी लड़का (राजकुमार राव) ज़िंदगी के हर पहलू में ईमानदार रहने की कोशिश करता है। ऐसे में चुनाव के दौरान उसकी ड्यूटी लगती है छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाके में, जहां सिर्फ गिने-चुने वोटर हैं और यह इलाका नक्सलवाद से बुरी तरह से जूझ रहा है। ऐसे में न्यूटन क्या वहां पर निष्पक्ष वोटिंग करा पायेगा? इसी ताने-बाने पर बुनी गई है फिल्म 'न्यूटन'। इस फिल्म के बहाने बुलेट ट्रेन, स्काई वॉक और मॉल आदि से दूर जंगलों में लोकतंत्र के हालात देखकर दिल दहल उठता है। लोकतंत्र के नाम पर आदिवासियों का मज़ाक बनाया जाता है, किस तरह सरकारी तंत्र इस तरह के इलाकों को देखता है, यह बेहद संजीदगी से और ईमानदारी से अमित ने हर फ्रेम में उकेरा है। राजकुमार राव न्यूटन की भूमिका में पूरी तरह से छाए रहे।

यह भी देखें: फिल्म रिव्यू: न्यूटन, हसीना पारकर, भूमि

पर्दे पर आप राजकुमार को नहीं बल्कि न्यूटन को ही देखेंगे। उनका साथ दिया है रघुवीर यादव ने। रघुवीर समर्थ कलाकार है और किरदारों को जीना उन्हें भी आता है। अंजलि पाटिल को अभी उस तरह के मौके नहीं मिले जिससे वह खुद को साबित कर पाए, मगर एक आदिवासी लड़की के तौर पर जो अभिनय उन्होंने किया है वह वाकई तारीफ के काबिल है।  पंकज त्रिपाठी की उपस्थिति फ़िल्म दर फि़ल्म वजनदार होती जा रही है.  कुल मिलाकर 'न्यूटन' एक बेहतरीन और ईमानदार फिल्म है। अगर आप प्लास्टिक फिल्मों से दूर वाकई कुछ देखना चाहते हैं तो 'न्यूटन' आपके लिए एक बेहतरीन ऑप्शन है।

जागरण डॉट कॉम रेटिंग: 5 में से 4 (**** स्टार)

अवधि: 1 घंटे 46 मिनट


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