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फिल्म रिव्‍यू: जिंदगी, जादू और रोमांच का जहान जग्गा जासूस

कहानी का आगाज 1995 के चर्चित पुरूलिया हथियार कांड से होता है।

By Rahul soniEdited By: Published: Fri, 14 Jul 2017 05:53 PM (IST)Updated: Fri, 14 Jul 2017 05:53 PM (IST)
फिल्म रिव्‍यू: जिंदगी, जादू और रोमांच का जहान जग्गा जासूस
फिल्म रिव्‍यू: जिंदगी, जादू और रोमांच का जहान जग्गा जासूस

-अमित कर्ण

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मुख्य कलाकार: रणबीर कपूर, कटरीना कैफ़, शाश्वत चटर्जीसयानी गुप्ता 

निर्देशक: अनुराग बासु 

निर्माता: सिद्धार्थ रॉय कपूर, अनुराग बासु, रणबीर कपूर 

स्टार- 4 स्टार

अनुराग बासु की ‘जग्गा जासूस’ जिंदगी, जादू, रोमांच की रहस्यमयी व पेचीदा कायनात गढ़ने का एक सराहनीय प्रयास है। गुम हो चुके पिता की खोज की खातिर रोमांचक सफर पर निकले युवक के जरिए बड़ी बातें कही गई हैं। उनमें जिंदगी जीने के जज्बे से लेकर उसके परम मकसद का सार है। इसकी किस्सागोई चमत्‍कार व यथार्थ के दो ध्रुवों के बीच कहीं स्थित है। चमत्‍कार इस उम्‍मीद का कि शिद्दत से कुछ चाहो तो वो मिलता ही है। सच, इंसान के उस स्‍याह पहलू का, जो अपने स्‍वार्थ के लिए दुनिया को बारूद के ढेर पर ले जा रहा है।

कहानी बड़ी होशियारी से अपनी अपील को बच्चों के मिजाज से उड़ान भरते हुए युवा व परिपक्‍व सोच-अप्रोच का विस्तार प्रदान करती है। कहानी का आगाज 1995 के चर्चित पुरूलिया हथियार कांड से होता है। पश्चिम बंगाल के उस जिले में पैराशूट से अवैध हथियार गिराए गए थे। कोलकाता का प्रोफेसर बादल बागची उस मामले की तह तक जाने में जुटता है। वह इसलिए अवैध असलहों से लैस पैराशूट सुरक्षा अफसरों के रडार में कैसे नहीं आए। तभी भ्रष्‍ट पुलिस अधिकारी सिन्‍हा को उसका काम तमाम करने के लिए लगा दिया जाता है। बागची भाग निकलता है। ट्रेन से थोड़ी दूर स्थित मोइनागुरी के खेतों में बेहोश पाया जाता है। वहां अनाथ व हकला बाल जग्गा उसे अस्पताल ले आता है। बागची उसे गोद ले लेता है। अपने साथ मणिपुर के उखरूल गांव ले आता है। वहां भी मगर जग्गा की बदकिस्‍मती पीछा नहीं छोड़ती। सिन्‍हा ढूंढते हुए उखरूल आ धमकता है। मजबूर बागची फिर बाल जग्गा को उखरूल के एक स्‍कूल में दाखिला करवा देता है। इस वादे के साथ कि वह छह महीने आठ दिन सात घंटे में वापस आएगा। वैसा नहीं होता। जग्गा बड़ा होता है। फिर ढूंढने के सिलसिले में उखरूल से अफ्रीका के मोंबासा तक पहुंच जाता है।

फिल्म की खूबी कथाभूमि के दिलचस्प प्रयोग हैं। अनुराग बासु मणिपुर के सुदूर इलाकों में जाते हैं। आदिवासियों के भटके हुए युवाओं के विद्रोही गुटों में भर्ती होने की वजह जाहिर करते हैं। फिर जग्गा जब अपने लापता पिता की खोज में मोंबासा पहुंचता है तो वहां की स्‍थानीय आदिवासियों से उसे अहम सुराग मिलते हैं। बात निकल कर आती है कि दुनिया भर के आदिवासी अपनी मान्‍यताओं और सहूलियतों से जीना चाहते हैं। जग्‍गा के इस मिशन में खोजी पत्रकार श्रुति सेनगुप्‍ता साथ देती है। श्रुति को साथ रखने की प्रतीकात्‍मक वजह है। वह यह कि उसकी चंद आदतें उसके पिता बागची से मिलती-जुलती हैं। जग्गा वैसे अपने पिता को ‘टूटी-फूटी’ के नाम से जानता है। उनकी रोमांचक यात्रा में सिन्‍हा जानलेवा खतरे लाता रहता है।

फिल्‍म के सभी किरदारों को कलाकारों की सधी हुई अदायगी का साथ मिलता है। जग्गा में जासूस बनने की पैदाइशी खूबी है। स्‍कूल के दिनों से ही वह आम सी दिखने वाली वारदातों में बड़े खुलासे ढूंढ लेता है। बागची या टूटी-फूटी अपनी जिंदगी को राष्‍ट्र सेवा को अर्पित कर चुका है, जबकि सिन्‍हा उस साजिश का हिस्सा है, जिसके तार पु‍रूलिया से लेकर पेंटागन तक जुड़े हुए हैं। हथियारों की लॉबी कितनी प्रभावी और खतरनाक है, वह भी कहानी में अंतर्निहित है। जग्गा के किरदार को रणबीर कपूर ने बड़ी सहजता से निभाया है। अनाथ होकर भी जिंदगी के प्रति उसमें लेष मात्र भी कड़वाहट नहीं है। हकलाहट को उन्होंने थोपा हुआ नहीं बनाया है। यह दरअसल अनुराग बासु के किरदारों की कॉमन खूबी है। वे सकारात्‍मक रवैया रखने वाले होते हैं।

श्रुति सेनगुप्‍ता की सोच-अप्रोच को कटरीना कैफ ने ठीक तरह से पकड़ा है। बागची बने शाश्‍वत चटर्जी प्रभावी हैं। सुजॉय घोष की ‘कहानी’ में बॉब बिस्‍वॉस के रोल में उन्होंने खासी चर्चा बटोरी थी। सायोनी गुप्‍ता समेत बाकी कलाकारों ने अपने किरदारों को बखूबी निभाया है। नवाजुद्दीन सिद्दीकी का कैमियो फिल्म का सरप्राइज एलिमेंट है। बशीर एलेक्‍जेंडर के रोल से उन्‍होंने फिल्म के अगले किश्‍त की गुंजाइश रखी है। सिन्‍हा के रोल में सौरभ शुक्‍ला ने 'नायक' व 'ये साली जिंदगी ' के बाद खालिस खल चरित्र में हैं। उसके साथ उन्होंने पूरा न्‍याय किया है। एडिटर अजय शर्मा ने लंबी होने के बावजूद फिल्म को ऊबाऊ नहीं होने दिया है। किरदारों की गुत्‍थमगुत्‍थी और उनकी बैक स्टोरी से अनुराग बासु ने आला दर्जे की पटकथा लिखी है। पेचीदगी की खुशबू इसमें महसूस होती है। उन्होंने अमिताभ भट्टाचार्य, सम्राट चकवर्ती व देवात्‍मा मंडल के साथ जग्‍गा के ‘तुकांत संवाद’ भली-भांति रचे हैं। गुजरे जमाने के राजकुमार की ‘हीर रांझा’ के बाद यह संभवत: पहली फिल्‍म होगी, जहां नायक गायकी में संवाद अदायगी करता है। किस्से जमीन और जहान को एस रवि वर्मन ने बड़ी खूबसूरती से कैमरे में कैद किया है। उखरूल, मोंबासा व वहां के अभ्‍यारण्‍य वीएफएक्स की मदद से रंगीन और आंखों को सुकून देने वाले बन पड़े हैं।

एक ‘उत्‍सव फिल्‍म‘ के लिए जरूरी सभी मसालों का मिश्रण यहां है। फिल्‍म में 29 मुखड़े और 6 विशुद्ध गाने हैं। संगीतकार प्रीतम ने गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य के साथ मिलकर एक समर्थ एलबम तैयार किया है। ‘गलती से मिस्‍टेक’ से लेकर ‘झुमरीतलैया’ व ‘मुसाफिर’ कर्णप्रिय गानों के तौर पर उभरे हैं। फिल्म संगीत कहानी की लय में चार चांद लगाता है।

अवधि-161 मिनट 


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