36 Farmhouse Review: मसालों की बेतरतीब छौंक ने बिगाड़ा फिल्म का सिनेमाई स्वाद, पढ़ें पूरा रिव्यू
36 Farmhouse Review लॉकडाउन में सेट कहानी के किरदार बिल्कुल भी दयनीय नजर नहीं आते। लॉकडाउन की मार के बेअसर दिखते हैं। लॉकडाउन को सिर्फ एक पृष्ठभूमि की तरह इस्तेमाल किया गया है। बाकी सब कुछ पैनडेमिक के हालात जैसा नहीं है।
मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। ऊंची से ऊंची दुकान का महंगे से महंगा पकवान भी मसालों की अनियंत्रित मात्रा डालने से बेस्वाद हो जाता है और मुंह में कड़वाहट का रस घोल देता है। फिर आप यह सोचकर तो उसे नहीं निगलते कि चलो खा लेते हैं, क्योंकि बहुत पैसा खर्च किया है या इस दुकान का मालिक कोई 'वेटरन खानसामा' है। खाना तभी निगला जा सकता है, जब सभी मसाले संतुलित मात्रा में डाले जाएं।
हिंदी सिनेमा के वेटरन फिल्ममेकर सुभाष घई की पहली ओटीटी रिलीज 36 फार्महाउस बिगड़ी हुई रेसिपी की बेहतरीन मिसाल है। इस फिल्म में मसालों की बेतरतीब छौंक ने सिनेमाई स्वाद इस कदर बिगाड़ा है कि फिल्म देखने के बाद मन विचलित हो जाता है। ऐसा लगता है कि फिल्म निर्देशक के काबू में ही नहीं थी। कोई कुछ भी करता हुआ दिखता है। संजय मिश्रा जैसा बेहतरीन कलाकार अपने आपे में नजर नहीं आता तो विजय राज जैसे उम्दा एक्टर अंतिरंजतना के शिकार लगते हैं।
36 फार्महाउस कहने को तो कॉमेडी-थ्रिलर है, मगर इसे देखते हुए ना हंसी आती है और ना किसी थ्रिल का एहसास होता है। जहन में यह सवाल जरूर आता है, आखिर घई साहब ने किस 'कर्ज' को उतारने के लिए यह फिल्म बनाने की जहमत उठायी! हालांकि, जिस तरह की कहानी और पृष्ठभूमि चुनी गयी है, उसमें दिखाने और करने के लिए बहुत सम्भावनाएं थीं।
कहानी मुख्य रूप से एक अमीर महिला पद्मिनी राज सिंह (माधुरी भाटिया) के बेटों की जायदाद के लिए आपसी रंजिश पर आधारित है। बीमार रहने वाली उम्रदराज पद्मिनी मुंबई के बाहरी इलाके में स्थित 36 फार्महाउस नाम के आलीशान बंगले में अपने सबसे बड़े बेटे रौनक सिंह (विजय राज) के साथ रहती है। इस बंगले के साथ 300 करोड़ का फार्महाउस भी है। पद्मिनी ने अपनी सारी जायदाद सबसे बड़े बेटे रौनक सिंह के नाम कर दी है। रौनक के दो छोटे भाई गजेंद्र (राहुल सिंह) और वीरेंद्र हैं। गजेंद्र थोड़ा बदमाश किस्म का है, वहीं वीरेंद्र सीधा है, मगर उसकी पत्नी मिथिका (फ्लोरा सैनी) चालाक है। ये दोनों जायदाद में अपना हिस्सा चाहते हैं। वहीं एक मर्डर मिस्ट्री भी है।
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36 फार्महाउस की कहानी 2020 के कालखंड में सेट की गयी है, जब कोरोना वायरस पैनडेमिक चरम पर था और लॉकडाउन की वजह से महानगरों में रहने वाले प्रवासी मजदूर और छोटा-मोटा धंधा या नौकरी करने वाले लोग बेरोजगार होने के कारण फाकाकशी से बचने के लिए अपने गृहनगरों और गृह राज्यों की ओर सामूहिक पलायन कर रहे थे। जय प्रकाश (संजय मिश्रा) और हैरी (अमोल पाराशर) ऐसे ही बाप-बेटे हैं, जो लॉकडाउन की वजह से बेरोजगार हो चुके हैं। दोनों अलग-अलग रहते हैं और एक-दूसरे के साथ टॉम एंड जैरी वाली रिलेशनशिप शेयर करते हैं। जय प्रकाश कुक है, जो एक ढाबे पर काम करता था। बंगले की केयरटेकर बेनी (अश्विनी कालसेकर) से एक संयोगवश हुई मुलाकात के बाद जय जय प्रकाश को 36 फार्महाउस में खानसामा की नौकरी मिल जाती है।
पद्मिनी सिंह की नातिन अंतरा (बरखा सिंह) छुट्टियों में फार्महाउस आती है, जिसे रास्ते में हैरी मिल जाता है और वो उसे अपने साथ 36 फार्महाउस लेकर आ जाती है। अंतरा नरम दिल, मासूम, खुशमिजाज और साजिशों से दूर है। वो फैशन डिजाइनर बनना चाहती है। अब बाकी कहानी इन्हीं किरदारों की आपसी तकरार, मजाक-मस्ती और रौनक की उसके भाइयों के साथ खींचतान के साथ आगे बढ़ती है।
36 फार्महाउस सुभाष घई का बतौर निर्माता ओटीटी डेब्यू है। इस फिल्म की कहानी उन्होंने खुद लिखी है और संगीत भी दिया है। घई साहब ने कहानी तो लिख दी, मगर किरदारों के कैरेक्टर ग्राफ को विस्तार देना भूल गये। जय प्रकाश और हैरी के किरदार एकदम सतही लगते हैं। इनमें कोई गहराई नहीं है। हैरी को सेलेब्रिटी डिजाइनर मनीष मल्होत्रा का असिस्टेंट बताया गया है, जो लॉकडाउन में बेरोजगार होने के बाद मुंबई से पैदल बिहार स्थित अपने गांव के लिए निकला है। मगर, हैरी को देखकर दूर-दूर तक नहीं लगता कि यह आदमी लॉकडाउन का मारा है।
यही हाल जय प्रकाश का है। लॉकडाउन में पैदल अपने गांव के लिए निकले जय प्रकाश की दाढ़ी की नीट लाइनिंग देखकर लगता है कि लॉकडाउन में भले ही खाने के लाले हों, पर बंदे ने स्टाइल में कमी नहीं आने दी है। संजय मिश्रा जैसे कलाकार को इस तरह देखना दुख देता है। विजय राज का भी कुछ यह हाल है। उनकी अदाकारी में एक लापरवाही का एहसास होता है। कुछ जगहों पर वो गैरजरूरी तौर पर लाउड नजर आते हैं।
फिल्म का गीत-संगीत आउटडेटेड लगता है। पहले से ही घिसटकर चल रही रफ्तार को गाने और धीमा कर देते हैं। विडम्बना यह है कि सुभाष घई ने समाज में दो वर्गों के बीच जिस आर्थिक खाई का संदेश देने की कोशिश की है, उस मैसेज के लिए भी फिल्म कोई सहानुभूति पैदा नहीं कर पाती। निर्देशक राम रमेश शर्मा को इस बात के लिए जरूर सराहा जाना चाहिए कि उन्होंने पैनडेमिक की बैकग्राउंड के मद्देनजर सभी कैरेक्टर्स को यथासम्भव मास्क पहनाए हैं और यही इस फिल्म का सबसे बड़ा मैसेज भी है।
'खतरा अभी टला नहीं है, मास्क जरूर पहनें।'
कलाकार- संजय मिश्रा, विजय राज, अमोल पाराशर, बरखा सिंह, अश्विनी कालसेकर आदि।
निर्देशक- राम रमेश शर्मा
निर्माता- सुभाष घई
प्लेटफॉर्म- जी5
अवधि- 107 मिनट
रेटिंग- *1/2 (डेढ़ स्टार)