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छोटे किरदारों ने दी बड़ी पहचान - स्वरा भास्कर

सूरज बड़जात्या की फिल्म ‘प्रेम रतन धन पायो’ में स्वरा भास्कर बनी हैं सलमान खान की बहन। इन दिनों वे दूरदर्शन के लोकप्रिय कार्यक्रम ‘रंगोली’ की मेजबानी भी कर रही हैं..

By Monika SharmaEdited By: Published: Sun, 01 Nov 2015 11:22 AM (IST)Updated: Sun, 01 Nov 2015 02:08 PM (IST)
छोटे किरदारों ने दी बड़ी पहचान - स्वरा भास्कर

सूरज बड़जात्या की फिल्म ‘प्रेम रतन धन पायो’ में स्वरा भास्कर बनी हैं सलमान खान की बहन। इन दिनों वे दूरदर्शन के लोकप्रिय कार्यक्रम ‘रंगोली’ की मेजबानी भी कर रही हैं...

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‘रंगोली’ से कैसा एसोसिएशन है?
हमारे घर में केबल बहुत बाद में लगा था। बचपन में दूरदर्शन के ‘चित्रहार’, ‘सुपरहिट मुकाबला’ और ‘रंगोली’ ही मेरा हिंदी फिल्मों से कनेक्शन का जरिया थे। फिल्मी गानों का आकर्षण तो रहा ही है। डीडी ने मुझे ‘रंगोली’ की मेजबानी के लिए अप्रोच किया तो बेहद खुशी हुई। वे इसे नए लुक और कनेक्ट के साथ पेश करना चाहते हैं। डीडी का फुटप्रिंट सबसे बड़ा है। खुद के लिए मुझे यह अच्छा प्लेटफॉर्म लगा।

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एक पॉपुलर कार्यक्रम की एंकरिंग का अनुभव कैसा रहा? इसके पहले आपने राज्यसभा के लिए ‘संविधान’ की एंकरिंग की थी?
एंकरिंग देखने में आसान काम लगता है, पर यह काफी मुश्किल है। ‘संविधान’ का मुझे बहुत पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिला था। उससे ही साहस बढ़ा। उसे काफी लोगों ने देखा। खासकर पढ़े-लिखे तबके ने तो देखा ही।

आप सामाजिक मुद्दों पर सोशल मीडिया और इवेंट में काफी सक्रिय दिखती हैं?
मेरे शुभचिंतक मुझे सलाह देते हैं कि मुझे अपना मुंह बंद रखना चाहिए। मुझसे रहा नहीं जाता। अभी समाज में ‘न’, ‘क्यों’ और ‘क्या’ पूछने पर ही कुछ लोग बौखलाने लगते हैं। सामाजिक तौर पर अगर हमें कुछ गलत लगता है तो आवाज उठानी चाहिए। चुप्पी नहीं साधनी चाहिए। ऐसी चुप्पी और स्वीकृति से समाज गलत दिशा में जाता है। बहुत आसान है, कुछ नहीं कहना या न करना। शूट पर जाओ, फिल्में बनाओ और पार्टी करो। यह बहुत ही सरल है, लेकिन खतरनाक भी है। मेरी राजनीतिक समझदारी कहती है कि आर्टिस्ट को समाज से जुड़े रहना चाहिए और उसकी आर्ट का भी समाज से रिश्ता होना चाहिए।

फिल्मों में आने से पहले फिल्म इंडस्ट्री के बारे में आपकी धारणा और बाद के व्यवहार में कोई फर्क आया या सब पहले की तरह है?
फिल्म इंडस्ट्री में आने के बाद पता चला कि जिंदगी और समाज की तरह यह भी बहुआयामी और बहुस्तरीय है। इसे एक नजरिए से नहीं देखा जा सकता। हर तरह की फिल्में बन रही हैं। बिग बजट से लेकर स्मॉल बजट तक। उनमें मैं काम भी कर रही हूं। हर तरह के काम के लिए जगह है। मुझे मजा आ रहा है। इंडस्ट्री से मेरा रिश्ता ‘तुम्हीं से मोहब्बत, तुम्हीं से लड़ाई’ का है। लाख शिकायत करूं लेकिन रहना तो यहीं है। यहीं काम करना है। मैंने संतुलन खोज लिया है। मुंबई शिफ्ट करना सहज नहीं रहा। यहां शुरू में अनेक दिक्कतें हुईं। छह सालों के बाद अब खुद को मैं मुंबईकर कह सकती हूं। अपने जैसी सोच और समझ के लोग मिल ही जाते हैं। यह मेरी कर्मभूमि है।

फिल्म इंडस्ट्री में किसी भी बाहरी कलाकार को पहचान और नाम बनाने में सालों लग जाते हैं। क्या आपने वह मुकाम हासिल कर लिया है?
ओह, मैं तो समझती थी कि आउटसाइडर होने की वजह से मेरे साथ ही ऐसा हो रहा है। मुझे ही इतना वक्त लग रहा है। पर सच में, मैंने यह नहीं देखा कि कितना वक्त बीता और मैंने क्या पाया। मेरी कुछ फिल्में दर्शकों को पसंद आईं और कुछ रिजेक्ट हो गईं। पर, सभी फिल्मों ने मुझे तजुर्बा दिया।

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ऐसा कैसे हुआ कि आपके ज्यादातर कदम सही पड़े? राह बनती गई और आप यहां तक पहुंच सकीं?
मुंबई आने के बाद मुझे ऐसा लगने लगा है कि कुछ ऐसा होता है, जो हमारे चाहे-अनचाहे होता है। मुझे जो फिल्में नहीं करनी चाहिए थीं, वे हां करने के बाद भी नहीं हुईं। दो बार फिल्में बंद हो गईं। एक बार मुझे निकाल दिया गया। कुछ फिल्मों में मैं शूट के दो दिनों पहले आई। ‘तनु वेड्स मनु’ और ‘रांझणा’ के साथ यही हुआ। कुछ लोगों ने मुझे खोजा और आठ-दस महीनों के बाद फिल्म शुरू की। ‘नील बटे सन्नाटा’ भी मेरे पास आ गई और नहीं बनते-बनते बन गई। यहां तक पहुंचने में दूसरों के फैसले भी काम आए हैं। कुल मिलाकर अच्छे लोगों के साथ काम किया। काम के दम पर ही आगे बढ़ पाई। ऐसा कोई रिश्ता नहीं था, जो मेरे काम आया हो। फिल्म इंडस्ट्री में हताशा इतनी है कि किस्मत पर भरोसा होने लगता है। न मानूं तो भी मैं फिलॉसफिकल तो हो ही गई हूं।

पहली फिल्म कौन सी थी?
पहली फिल्म ‘नियति’ थी। उसके निर्देशक प्रवेश भारद्वाज थे। प्रवेश मुझे मुंबई आने के महीने भर के अंदर मिल गए थे। मैंने तीसरे महीने में शूटिंग आरंभ कर दी थी। पर वह फिल्म अभी तक रिलीज नहीं हो सकी है।
आपको परिचित चेहरा बनाने में आनंद राय की भूमिका मानी जा सकती है क्या?
बिल्कुल है। आनंद राय और हिमांशु शर्मा को मैं सारा श्रेय दूंगी। मुझे उनकी फिल्मों में उम्मीद से ज्यादा मिला है। कहां सोचा था कि इन फिल्मों में मेरे छोटे किरदार को भी सराहा जाएगा। वह यादगार हो जाएगा। उन छोटे किरदारों ने ही मुझे बड़ी पहचान दी। उन्होंने इस मंशा से मुझे फिल्में नहीं दीं कि ‘आओ स्वरा का भला कर दें।’ आनंद सर तो परिवार की तरह हो गए हैं। उन्हें मैं कभी भी फोन कर सकती हूं। वे मेरे संशय दूर करते हैं और सही सलाह देते हैं। उन्होंने ही सलाह दी थी कि ‘प्रेम रतन धन पायो’ कर लो।

‘प्रेम रतन धन पायो’ के अनुभव कैसे रहे। इसको अपने कॅरियर में कितना महत्वपूर्ण मानती हैं?
बहुत अच्छे अनुभव रहे। सूरज जी सीधे, ईमानदार और सरल हैं। उन्होंने मुझे निखार दिया। उनसे बहुत कुछ सीखा। सलमान खान के बारे में इतना कुछ सुन रखा था। एक डर था लेकिन वे अच्छी तरह पेश आए। उन्होंंने कुछ सलाहें भी दीं। सोनम मेरी अच्छी दोस्त है। इस फिल्म के बाद हमारी बॉन्डिंग और मजबूत हो गई है। दीपक पुराने दोस्त हैं। अनुपम खेर के साथ मजेदार वक्त बीता।

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