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Rajpal Yadav Interview: मैं फिल्म इंडस्ट्री का सबसे भाग्यशाली एक्टर हूं, निजी जिंदगी पर खुलकर बोले राजपाल यादव

मैंने एक सीन से शुरुआत की उसके बाद मुझे निगेटिव रोल मिला जिसके लिए मुझे अवार्ड मिला। फिर कामेडी रोल मिले। उसके बाद मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं मैं मेरी पत्नी और वो तथा पिछले साल प्रदर्शित फिल्म अर्ध तक करीब एक दर्जन फिल्मों में केंद्रीय भूमिका निभाने का मौका मिला। कुल मिलाकर सिनेमा को जीने का मौका मिला और मिल रहा है वो अच्छी बात है- राजपाल

By Jagran NewsEdited By: Mohammad SameerPublished: Mon, 14 Aug 2023 12:15 AM (IST)Updated: Mon, 14 Aug 2023 12:15 AM (IST)
फिल्म नान स्टाप धमाल में केंद्रीय भूमिका में होंगे राजपाल (file photo)

स्क्रीन पर अपने मजाकिया और अनोखे पात्रों से लोगों के दिलों में जगह बनाने वाले अभिनेता राजपाल यादव ने कई फिल्मों में गंभीर और निगेटिव भूमिकाएं भी निभाई हैं। 18 अगस्त को प्रदर्शित हो रही फिल्म नान स्टाप धमाल में वह केंद्रीय भूमिका में हैं।

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अभिनय और सिनेमा को ही अपने जीवन की प्राथमिकता मानने वाले राजपाल की कुछ योजनाएं भी हैं। पेश है उनसे उनकी योजनाओं और फिल्मी सफर पर बातचीत के अंश 

आगामी सूची में 25 से ज्यादा प्रोजेक्ट हैं, बतौर कलाकार इस आंकड़े का क्या अनुभव होता है?

बड़ा अच्छा लगता है कि साल 2000 में मेरी पहली फिल्म जंगल रिलीज हुई उसके बाद 20 साल से लगातार किसी न किसी फिल्म से इंडस्ट्री का हिस्सा बना रहा। कुछ अच्छी फिल्मों में काम करने का मौका मिला, नब्बे प्रतिशत ए ग्रेड फिल्मों में काम किया।

कोरोना काल के बाद छह-सात मेनस्ट्रीम फिल्में, छह-सात वेब फिल्में, कुछ वेब सीरीज, कुल मिलाकर लगभग दो-ढाई दर्जन प्रोजेक्ट कतार में हैं। उन्हें अगले दो-तीन साल में खत्म करूंगा। कोशिश यही रहेगी गुणवत्ता बनी रहे और चुनिंदा प्रोजेक्ट करूं। भूल भुलैया 2 के बाद मैंने कई प्रोजेक्ट साइन किया। मैं इस दौर का आनंद ले रहा हूं कि मुझे दर्शकों का प्यार मिल रहा है। 

तो चुनाव के पैमाने क्या होंगे?

अगले साल से मेरी प्राथमिकता यही रहेगी कि अब मेरे लिए पैसे ज्यादा महत्व नहीं रखेंगे। रोल मेरे मन का और पैसे फिल्मकारों के मन के। रोल अगर मेरे मन का नहीं है, तो पैसा मुझे प्रभावित नहीं कर सकेगा। एक दिन मैं यूं ही सोच रहा था कि शायद किसी दिन मैं फिल्मकारों से पैसे मांगने ही बंद कर दूं।

जो रोल मुझे पसंद आएगा, उसके लिए प्रोड्यूसर जो चाहे वो पैसे दे सकता है। फिल्मकारों की अक्सर शिकायत रहती है कि एक्टर बहुत फीस मांग रहा है, तो हो सकता है कि आने वाले दिनों में मैं उनकी यह शिकायत ही खत्म कर दूं।

बदलते सिनेमा के दौर में क्या अब ज्यादा हीरो केंद्रित फिल्में करने की कोशिश होगी?

इससे पहले भी बहुत सी फिल्मों में हीरो की भूमिकाएं निभा चुका हूं। मैं इस इंडस्ट्री में स्वयं को सबसे भाग्यशाली एक्टर मानता हूं। मैंने एक सीन से शुरुआत की, उसके बाद मुझे निगेटिव रोल मिला, जिसके लिए मुझे अवार्ड मिला। फिर कामेडी रोल मिले।

उसके बाद मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं, मैं मेरी पत्नी और वो तथा पिछले साल प्रदर्शित फिल्म अर्ध तक करीब एक दर्जन फिल्मों में केंद्रीय भूमिका निभाने का मौका मिला। कुल मिलाकर सिनेमा को जीने का मौका मिला और मिल रहा है, वो अच्छी बात है।

कई बार काम करने के बाद फिल्में रिलीज नहीं हो पाती हैं, बतौर कलाकार यह कितना दुखद होता है?

रिलीज की समस्या तो बहुत सी फिल्मों के साथ होती है। कई बार तो बड़े-बड़े कलाकारों की फिल्में भी बनकर ठंडे बस्ते में चली जाती हैं, रिलीज नहीं हो पाती हैं। ये कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। कई बार टाइमिंग खराब हो जाती है, तो कई बार फिल्म तय समय से शूटिंग नहीं हो पाती है, ऐसे बहुत से कारण होते हैं, जिससे फिल्में रिलीज नहीं हो पाती हैं।

लेकिन ऐसी फिल्मों की संख्या एक-दो प्रतिशत ही होती है। बाकी तो 98 प्रतिशत फिल्में बनती हैं, और रिलीज भी होती हैं। आज का दौर में डिजिटल प्लेटफार्म के तौर पर एक अलग माध्यम भी है, जिससे आप 200 से ज्यादा देशों में एक साथ फिल्म रिलीज कर सकते हैं।

जब एक्टर बनने निकले थे, तब क्या सपने लेकर निकले थे और अब उन सपनों के आधार पर स्वयं को कितना आगे या पीछे पाते हैं?

मैं बस अभिनय.. अभिनय और अभिनय के बारे में सोच कर चला था। किस मंच पर करना है, ये नहीं पता था, लेकिन करना तो अभिनय ही था। आज भी वही प्राथमिकता है और कोशिश करूंगा जब तक शरीर में सांस है, तब तक जिंदगी का 90 प्रतिशत हिस्सा अभिनय को और बाकी 10 प्रतिशत परिवार, देश दुनिया और समाज की सेवा करनी है।

पीलीभीत में फिल्म सिटी बनाने की भी पहल कर रहे हैं

बिल्कुल। फिल्म सिटी सिर्फ एक इंसान से नहीं बनती हैं, मेरा मानना है कि हर प्रदेश में एक सुंदर सी एक फिल्म सिटी होनी चाहिए। इसमें मेरा जो भी योगदान होगा मैं सेवा देने के लिए तैयार हूं। मेरी पहली और आखिरी फिल्म सिटी तो गोरेगांव (मुंबई) की फिल्म सिटी ही है।

इसका कर्ज तो सौ जन्म में भी नहीं उतार सकता हूं। सिनेमा जगत का सदस्य होने के नाते मैं यह अपील करना चाहता हूं कि हर प्रदेश में फिल्म सिटी बने। कला खूब बिखरे और खूब निखरे।

आपकी फिल्मोग्राफी में कमर्शियल मसाला और कलात्मक फिल्मों में एक संतुलन दिखता है, क्या यह कोशिश शुरू से रही है?

यह तो मैं पिछले बीस वर्षों से करता आ रहा हूं। एक तरफ जंगल किया तो दूसरी तरफ प्यार तूने क्या किया, फिर इधर मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं, उधर हंगामा, चुप चुप के। अभी पिछले साल भूल भुलैया 2 रिलीज हुई दूसरी तरफ अर्ध भी रिलीज हुई थी।

इस साल एक तरफ ड्रीम गर्ल 2 और नान स्टाप धमाल जैसी फिल्में हैं, दूसरी तरफ काम चालू है जैसी फिल्म में भी लीड भूमिका देखने को मिलेगी। फिल्मों में क्रिकेट की तरह कभी 50 ओवर का मैच खेलने को मिलता है, तो कभी 20 ओवर का आईपीएल खेलने को मिलता है। उसमें भी अगर कई कलाकार हैं, तो कितना ही ओवर खेलने को मिलेगा, उस स्थिति में कभी मैं आईपीएल के रूप में दर्शकों का मनोरंजन तो कभी टेस्ट मैच के तौर पर लोगों का मनोरंजन करता हूं।


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