आइटम क्वीन बनने की राह पर समीरा
हिंदी फिल्म जगत की आइटम क्वीन बनने की राह पर अग्रसर हैं समीरा रेड्डी। 'चक्रव्यूह' के आइटम नंबर 'कुंडा खोल..' को लेकर वे एक बार फिर चर्चा में हैं। बातचीत समीरा से.. 'चक्रव्यूह' के गीत 'कुंडा खोल..' में आप क्या नया मानती हैं? मेरे ख्याल से 'इश्क कमीना..' के बाद यह मेरा
हिंदी फिल्म जगत की आइटम क्वीन बनने की राह पर अग्रसर हैं समीरा रेड्डी। 'चक्रव्यूह' के आइटम नंबर 'कुंडा खोल..' को लेकर वे एक बार फिर चर्चा में हैं। बातचीत समीरा से..
'चक्रव्यूह' के गीत 'कुंडा खोल..' में आप क्या नया मानती हैं?
मेरे ख्याल से 'इश्क कमीना..' के बाद यह मेरा सबसे बेहतरीन आइटम नंबर है। कोरियोग्राफर गणेश आचार्य ने मुझे कठिन गाने पर नचवाया है। इसमें देसीपन है। हिंदी फिल्मों में जिस तरह के गाने लोगों को पसंद आते हैं, यह वैसा है। फिल्म के दूसरे हिस्से में यह गाना है, जो फिल्म को प्रासंगिक बनाता है। फिर प्रकाश झा ऐसे फिल्मकार हैं, जो फिल्म में जबरन कोई सीन या गाना नहीं रखते हैं। यह नंबर करके मुझे मजा आया।
आइटम नंबर करने वाली अभिनेत्रियों के नाम फिल्मों में देसी क्यों होते हैं?
यह आज का ट्रेंड है। पुरानी फिल्मों में इनके नाम जूली और मोना होते थे। बदलाव की लहर है, तो उन नामों को शीला, मुन्नी और चमेली ने रिप्लेस किया है।
आइटम नंबर का कोई लॉजिक होता है, आप ऐसा मानती हैं?
नहीं, कोई तर्क नहीं होता, लेकिन इसकी अहमियत को भी नहीं नकारा जा सकता। दुनिया के हर शब्दकोश में हिंदी फिल्म जगत ने आइटम का अर्थ व्यापक किया है। पहले इस पर परफॉर्म करना दोयम दर्जे का काम माना जाता था। अब ऐसा नहीं है। तभी तो कट्रीना से लेकर प्रियंका और करीना से लेकर दीपिका तक इस काम को कर रही हैं। आज कोई फिल्म आती है, तो दर्शक सबसे पहले पूछते हैं कि फिल्म में कोई आइटम नंबर है कि नहीं? है, तो कौन कर रही है? मुझे गर्व की अनुभूति होती है कि मैं बेहतरीन आइटम डांसर कही जाती हूं। फिल्म को ओपनिंग दिलाने में भी आइटम नंबर अहम भूमिका निभाने लगे हैं।
प्रकाश झा जैसे फिल्मकार की फिल्म में सिर्फ आइटम नंबर करके आप संतुष्ट हैं?
कतई नहीं..। मैं उनकी बहुत बड़ी फैन हूं। उन्होंने मुझसे वादा किया है कि आगे कोई प्रोजेक्ट करेगे तो मुझे जरूर बताएंगे। वे कमाल के फिल्मकार हैं।
'चक्रव्यूह' नक्सल समस्या पर आधारित है। आप भी ऐसी जगह से आती हैं, जहां यह समस्या है। सरकार कितनी जिम्मेदार है इसके लिए?
सरकार के साथ-साथ हमारे उद्योगपति भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। यह सबसे अहम बात है। आंध्रप्रदेश के संदर्भ में ज्यादा नहीं बोलना चाहूंगी, क्योंकि यह बेहद टची टॉपिक है। पिछली बार मुंह खोला था, तो बेवजह का बवाल हुआ था। हमारी व्यवस्था में कई खामियां हैं।
इसे दूर करने के लिए आप खुद राजनीति में नहीं आना चाहेंगी?
बिल्कुल नहीं। राजनीति मेरे बस की बात नहीं है। गॉसिप और विवाद के लिहाज से यह बॉलीवुड से भी काफी उलझी हुई है। उसे मैं हैंडल नहीं कर सकती।
इन दिनों बायोपिक फिल्मों का दौर है। किसी राजनीतिज्ञ का रोल करने का ऑफर मिला तो?
वह मैं कर लूंगी। दक्षिण भारतीय नेता का रोल मिला तो जरूर करूंगी। अब आप उनका नाम मत पूछिएगा। कई सारे नाम हैं।
आप हिंदी फिल्में काफी कम कर रही हैं। क्यों?
छह-सात महीने का ब्रेक लिया था, क्योंकि साउथ में काफी बेहतरीन फिल्में करने को मिली थीं। वे भी प्रभुदेवा, माधवन और सुदीप जैसे कलाकारों के साथ। सुदीप कन्नड़ फिल्मों के सुपरस्टार हैं और अभी उनकी फिल्म 'मक्खी' आई है, लेकिन अब 'चक्रव्यूह' के बाद मैं हिंदी फिल्में कर रही हूं।
आपको क्या कहलाना पसंद है। स्टार, कलाकार या आइटम गर्ल?
बेहतर इंसान। आज आप स्टार हो, कल कोई और होगा..। जो लोग यह लेबल देते हैं, वही लोग इसे ले भी लेते हैं। इसलिए इसको लेकर कभी भावनात्मक होने की जरूरत नहीं। सवाल जहां तक आइटम गर्ल का है, तो इसमें मुझे कोई बुराई नजर नहीं आती।
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