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कॉमेडी में आता है मजा

मुंबई। रितेश देशमुख ने चुनी थी परिवार से अलग राह। उनकी मेहनत रंग लाई। आज एक सुलझे हुए अभिनेता के रूप में उनकी पहचान है। कॉमेडी के मामले में भी उनका जवाब नहींहै। अब एक्टिंग के साथ ही वह बतौर निर्माता मराठी फिल्मों की दुनिया में कुछ अलग करने के फिराक में हैं। फिलहाल 'ग्र

By Edited By: Published: Thu, 12 Sep 2013 10:58 AM (IST)Updated: Thu, 12 Sep 2013 11:32 AM (IST)
कॉमेडी में आता है मजा

मुंबई। रितेश देशमुख ने चुनी थी परिवार से अलग राह। उनकी मेहनत रंग लाई। आज एक सुलझे हुए अभिनेता के रूप में उनकी पहचान है। कॉमेडी के मामले में भी उनका जवाब नहींहै। अब एक्टिंग के साथ ही वह बतौर निर्माता मराठी फिल्मों की दुनिया में कुछ अलग करने के फिराक में हैं। फिलहाल 'ग्रैंड मस्ती' और अन्य पहलुओं पर उनसे बातचीत के अंश:

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'गै्रंड मस्ती' में कितनी मस्ती है? पहले से कम या ज्यादा?

पहले से ज्यादा मस्ती अगर नहीं होगी तो लोगाें को मजा नहीं आएगा। शीर्षक से ही स्पष्ट है कि पहले हमने 'मस्ती' की थी और अब 'ग्रैंड मस्ती' कर रहे हैं।

कॉमेडी एंजॉय करने लगे हैं। क्या आपके लिए आसान भी हो गया है?

नहीं आसान नहीं है, लेकिन मैं एंजॉय करता हूं। कॉमेडी में टाइमिंग का महत्व होता है और टाइमिंग अभिनय के मीटर के जरिए आती है। मैं इसी चीज का ध्यान रखता हूं। कॉमेडी में बड़ी जिम्मेदारी लेखकों की भी होती है। अगर लेखक ने मीटर का ध्यान दिए बिना लिख दिया तो अच्छे से अच्छा अभिनेता भी आपको हंसा नहीं सकता।

पढ़ें:जब विवेक-आफताब ने मारा रितेश को थप्पड़क्या टाइमिंग व अभिनय के मीटर के बारे में सीखा नहीं जा सकता?

अभिनय सीखा जा सकता है, लेकिन कमाल का अभिनय नहीं सीखा जा सकता।

'मस्ती', 'धमाल', और 'डबल धमाल' जैसी फिल्में आप इंद्र कुमार के साथ कर चुके हैं और अब 'ग्रैंड मस्ती' कर रहे हैं। एक निर्देशक के तौर पर उन्हें कैसा आंकते हैं?

मैं उन्हें कैसे आंक सकता हूं। मैंने उनके साथ अपने कॅरियर के आरंभिक दौर में काम किया है। उस समय मैं न्यूकमर था, तो मुझे 'मस्ती' मिली थी। फिर मैं उनके साथ एक के बाद एक फिल्में करता गया। दर्शकों ने हमारा काम पसंद किया है। पहले हम सीनियर और जूनियर थे। अब हमउम्र हो गए। अगर मैं अपने निर्देशक के साथ इतना कंफर्टेबल नहीं होता तो कभी इस तरह कॉमेडी और अपने काम को एंजॉय नहीं कर पाता।

मराठी फिल्मों के निर्माण में आप काफी सक्रिय हैं। पिता के बाद किसी तरह की जिम्मेदारी समझी या आपको मराठी फिल्में करने का मन था?

पढ़ें:अभिनय से मुश्किल फिल्म बनाना है-रितेशमराठी फिल्मों का पिता जी से कोई संबंध नहीं था। मराठी फिल्में तो मैं बहुत सालों से कर रहा हूं, लेकिन अब 'बालक-पालक' में मेरा काम नोटिस हुआ है। मराठी फिल्मों में जो काम मैं कर रहा हूं, वह हिंदी जैसा कॉमर्शियल ही है। मैं मराठी सिनेमा में कॉमर्शियल सेट-अप क्रिएट करना चाह रहा हूं। मराठी में अभी तक एक्शन ड्रामा वाली विधा में कुछ काम नहीं हुआ है। इस वजह से मैं अपनी अगली फिल्म जो प्रोड्यूस कर रहा हूं, उसमें अभिनय भी कर रहा हूं। वह एक संपूर्ण एक्शन ड्रामा फिल्म है। इस फिल्म का शीर्षक 'लय भारी' है, जिसका अर्थ है कोई चीज जो बवाल कर दे या फिर कमाल करने वाली कोई चीज। मैं मराठी में हर वो चीज करना चाहता हूं, जो हिंदी में हो रही है। इस क्रम में मैंने विशाल शेखर से अपनी फिल्म में गाने कंपोज करने को कहा है।

..और क्रिकेट टीम बनाने की कोई खास वजह?

आप सीसीएल की बात कर रहे हैं। मैं क्रिकेट का शौकीन हूं। मुंबई से ही टूर्नामेंट प्रारंभ हुआ और उसमें मुंबई की टीम नहीं थी। इसलिए मैंने सोचविचार कर मराठी टीम का गठन किया।

(दुर्गेश सिंह)

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