Gadar 2: 'अच्छा रोल ही मेरी खुराक है, लेकिन मैं बहुत स्वार्थी हूं', इंटरव्यू में खुलकर बोले Manish Wadhwa
Gadar 2 बॉक्स ऑफिस पर गदर मचाने वाली इस साल की दो बड़ी फिल्मों पठान और गदर 2 ने अभिनेता मनीष वाधवा को सुर्खियों में ला दिया है। फिल्म में खलनायक बने मनीष धारावाहिक चंद्रगुप्त मौर्य में चाणक्य की भूमिका में सराहना बटोर चुके हैं। इन दो फिल्मों की सफलता के बाद करियर में आए बदलावों और आगे की योजनाओं पर उनसे हुई बातचीत के अंश…
मुंबई, जेएनएन। बॉक्स ऑफिस पर गदर मचाने वाली इस साल की दो बड़ी फिल्मों पठान और गदर 2 ने अभिनेता मनीष वाधवा को सुर्खियों में ला दिया है। जवान की सफलता के बीच गदर 2 अभी भी सिनेमाघरों में चल रही है। 31 दिनों में इस फिल्म ने अब तक घरेलू बॉक्स ऑफिस पर 513.75 करोड़ की कमाई की है। फिल्म में खलनायक बने मनीष धारावाहिक चंद्रगुप्त मौर्य में चाणक्य की भूमिका में सराहना बटोर चुके हैं। इन दो फिल्मों की सफलता के बाद करियर में आए बदलावों और आगे की योजनाओं पर उनसे हुई बातचीत के अंश...
1.आप हमेशा से कितने महत्वाकांक्षी रहे हैं?
मैं बतौर कलाकार बहुत ज्यादा स्वार्थी हूं। मुझे अच्छे से अच्छा रोल चाहिए, मेरी खुराक ही वही है। मुझे अभिनय के अलावा कोई और काम आता ही नहीं है। अगर मैं वही काम नहीं करूं, तो मैं क्या करूंगा। अच्छी बात यह है कि मुझे पसंद का काम करने के लिए पैसे भी दिए जाते हैं।
2. पठान और गदर 2 की सफलता के बाद क्या अब पहले से ज्यादा ऑफर मिल रहे हैं?
हां, जीवन में बड़ा बदलाव आया है। अब जो ऑफर मिल रहे हैं, उसमें बहुत बदलाव आया है। खासकर गदर 2 की रिलीज के बाद से चीजें सौ फीसदी बदली हैं। अब मैं तलवार की धार पर खड़ा हूं। मुझसे अब कोई गलती नहीं होनी चाहिए। स्टारडम मुझे चाणक्य धारावाहिक के दौरान मिल गया था। वह शो टीवी पर आया था, तो फिल्मवालों तक उतना शायद पहुंचा नहीं। हालांकि दर्शकों तक मेरा वह काम पहुंचा था। फिल्में वैश्विक होती हैं, जिसे सभी देखते हैं।
3- तलवार की धार पर खड़े हैं, तो क्या अब मन में कोई डर है?
मैं बस अब आगे कोई गलती नहीं करना चाहता हूं, ताकि कोई यह न कह सके कि अरे यार यह तो एक या दो फिल्मों में ही कर पाया। जिम्मेदारी बढ़ गई है, क्योंकि दर्शकों ने विश्वास जताया है। उस विश्वास को खोने का डर लगता है। दरअसल, मैं करियर के शुरुआती दौर से ही ऐसा रहा हूं। मैं सोचता रहता हूं कि अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए क्या करूं, कैसे करूं। यह सोच भी तभी बनी रहती है, जब मन में एक डर होता है। जिस दिन डर खत्म हो जाएगा, मेरा डाउनफॉल शुरू हो जाएगा।
4- क्या कभी आपका कोई रोल फिल्म से एडिट हुआ है?
नहीं, हालांकि जब पठान और गदर 2 फिल्में एडिट पर थी, तो मन होता था कि पूछ लूं कि कहीं सीन कट तो नहीं गया, लेकिन दोनों ही फिल्मों से एक सिंगल शॉट तक नहीं कटा है। पठान फिल्म में तो उसकी रिलीज से एक-डेढ़ महीना पहले मैंने एक और सीक्वेंस शूट किया था। लोगों का कट जाता है, मेरा तो शामिल किया गया था।
5- जब आप टीवी से फिल्मों में आए, तो क्या आपको भी उसी लेंस से देखा गया था, जिसे लेकर टीवी सितारे शिकायत करते हैं कि उन्हें अलग समझा जाता है?
हां, कुछ हद तक। जब कोई टीवी से सिनेमा में काम करने आता है, तो वो लोग यही सोचते हैं कि बहुत ज्यादा लोगों ने इनको देख लिया है। क्या यह वैरायटी ला पाएंगे? हालांकि हमेशा ऐसा नहीं होता है। अनिल जी (गदर 2 के निर्देशक अनिल शर्मा) ने मुझे मेरी तेलुगु फिल्म श्याम सिंघा रॉय देखकर बुलाया था। मैंने जया बच्चन जी से एक बात सीखी है। 'मां रिटायर होती है' नाटक में मैंने उनके बेटे का रोल किया था।
उन्होंने इस नाटक से रंगमंच में डेब्यू किया था। जब उनसे किसी ने पूछा कि लोग थिएटर से फिल्मों में आते हैं, आप फिल्म से थिएटर में आई हैं। इस पर उन्होंने कमाल का जवाब देते हुए कहा था कि अगर आप अच्छे कलाकार हैं, तो आप नाटक में भी अच्छे हैं।
फिल्मों, धारावाहिक और विज्ञापनों में भी अच्छे ही होंगे, यहां तक की नुक्कड़ नाटक में भी अच्छे से ही परफार्म करेंगे। अगर आप अच्छे नहीं हैं, तो आप कहीं भी अच्छे नहीं होंगे। कलाकार छोटा है या बड़ा यह किसी माध्यम से कैसे तय किया जा सकता है।
6. क्या आप अब निगेटिव रोल से अलग कॉमेडी में भी हाथ आजमाना चाहेंगे?
हां, क्यों नहीं। वैसे मुझे गदर 2 के लिए बड़ी अच्छी प्रतिक्रिया मिली कि वी रियली लव टू हेट यू, (हम वाकई में आपसे नफरत करना चाहेंगे) विलेन का किरदार निभाने वाले के लिए यह बहुत बड़ी सराहना है। अमरीश (पुरी) जी ने मोगैंबो, बमन (ईरानी) साहब ने मुन्नाभाई एमबीबीएस में जैसा रोल किया था, वैसे करने का अवसर मिलेगा, तो निगेटिव के साथ कॉमेडी भी करना चाहूंगा।
7. कई कलाकार हैं, जो ऑनस्क्रीन कई चीजें करना पसंद नहीं करते हैं। आपकी भी क्या कोई सूची है कि कौन सा काम नहीं करनाहै?
नहीं, मैं बिना वजह की सीमाएं अपने आसपास बनाकर नहीं रख सकता हूं। किस सीन में क्या डिमांड हो जाए, यह पहले से सोचकर नहीं रखा जा सकता है। मैं तो निगेटिव रोल करता आया हूं। जब मैंने फिल्म श्याम सिंघा रॉय की थी, तो उसमें भी कुछ दृश्य ऐसे करने थे, जिसके लिए मुझे दस मिनट सोचना पड़ा था। मैंने चंद्रगुप्त मौर्य में चाणक्य की पाजिटिव भूमिका निभाई थी। वह रोल पॉजिटिविटी ही फैलाएगा।
लेकिन निगेटिव पात्र भी पाजिटिव चीजें सीखा सकता है। खलनायक जो कर रहा है और उसका जो अंजाम होता है वह करने के बाद, वह यही सिखाता है कि वैसा नहीं बनना है। अगर उस रोल से भी कुछ सीखने को मिल रहा है, तो पाजिटिविटी हुई ना। यह भी एक कला है कि कला के माध्यम से आप सही बात कहें, फिर चाहे किरदार स्क्रीन पर सही कर रहा हो या गलत। बस, बात ऐसे कहें की वह चुभ जाए।
-प्रियंका सिंह