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अब बदलनी है अपनी इमेज - गुलशन देवैय्या

पहली ही फिल्म से ग्रे कैरेक्टर करने वाले गुलशन की इस साल रिलीज हुई ‘हंटर’ ने अपनी कॉमेडी से दर्शकों को गुदगुदाया भी। ये फिल्म छठे जागरण फिल्म फेस्टिवल के तहत 15 शहरों में दिखाई गई। गुलशन फिल्म इंडस्ट्री में कलाकारों के टाइपकास्ट कर दिए जाने से बड़े आहत हैं।

By Monika SharmaEdited By: Published: Sun, 22 Nov 2015 11:42 AM (IST)Updated: Sun, 22 Nov 2015 12:40 PM (IST)
अब बदलनी है अपनी इमेज - गुलशन देवैय्या

‘शैतान’, ‘हेट स्टोरी’ और ‘गोलियों की रासलीला-रामलीला’ में ग्रे और नेगेटिव किरदार निभा चुके अभिनेता गुलशन देवैय्या अब बदलना चाहते हैं अपनी इमेज...

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पहली ही फिल्म से ग्रे कैरेक्टर करने वाले गुलशन की इस साल रिलीज हुई ‘हंटर’ ने अपनी कॉमेडी से दर्शकों को गुदगुदाया भी। ये फिल्म छठे जागरण फिल्म फेस्टिवल के तहत 15 शहरों में दिखाई गई। गुलशन फिल्म इंडस्ट्री में कलाकारों के टाइपकास्ट कर दिए जाने से बड़े आहत हैं। इसके चलते उन्होंने ‘कैलेंडर गर्ल्स’, ‘वेलकम बैक’ समेत कई अन्य फिल्मों को न कहा।

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थोड़ा चूजी भी हूं
गुलशन बताते हैं, ‘मैं किसी भी प्रोजेक्ट को दो तरीके से देखता हूं। एक कलाकार के तौर पर और दूसरा बिजनेस के नजरिए से। कॅरियर को बिजनेस प्वॉइंट से सोचना पड़ता है। यह जरूरी भी है। वैसे ही चयन करता हूं। हां, मैैं थोड़ा चूजी भी हूं। दरअसल, मैं जिस तरह का रोल चाहता हूं वह मिल नहीं रहा। बार-बार एक ही तरह के नेगेटिव रोल मिलते हैं। यह सही है कि फिल्म इंडस्ट्री में शुरुआत ‘शैतान’ से हुई। ‘हेट स्टोरी’ और ‘गोलियों की रासलीला-रामलीला’ जैसी फिल्मों में मैं विलेन था, मगर मैं हर तरह की फिल्में करना चाहता हूं। उम्मीद है कि ‘हंटर’ के बाद आगामी फिल्म ‘कैबरे’ इस भ्रम को खत्म करेगी।’

एक व्यवस्था है शादी
गुलशन प्यार व शादी के रिश्ते को बेहद अलग तरह से देखते हैं। वे कहते हैं, ‘रिश्ते जटिल हो गए हैं। ‘हंटर’ में बड़े साफ शब्दों में कहा गया था कि सिर्फ प्यार से शादी नहीं चलती है। प्यार रहना चाहिए, मगर सिर्फ प्यार शादी बनाए रखने के लिए ऊर्जा नहीं है। एक बैलेंस ढूंढना पडे़गा। समझौते करने पड़ेंगे। आर्थिक हालात ठीक नहीं हैं तो रिश्तों में दरारें आ जाती है। इस तरह फिल्म के व्यावहारिक नजरिए से मैं काफी इत्तेफाक रखता हूं।’

बदलाव की कोशिश
गुलशन फिल्मों में कुछ नया करना चाहते हैं। वे कहते हैं, ‘आगे मैं चाहता हूं कि लोग मुझे कुछ नया करते हुए देखें। सभी प्रतिभाशाली एक्टर शुरुआत में एक ही तरह के किरदार निभाते थे। स्टार भी ऐसी स्थिति का सामना कर आगे बढ़ते हैं। पर मैं पुराने विलेन की तरह अपनी इमेज नहीं बनाना चाहता। पांच साल की उम्र से थिएटर करता आ रहा हूं। हर किस्म के नाटक किए है। अंग्रेजी थिएटर ग्रुप से जुड़ गया था। मैैंने वहां रोमांटिक, कॉमेडी समेत हर तरह के किरदार निभाए थे। मैं फिल्मों के साथ ठीक वैसा ही करना चाहता हूं।’

कब तक दिखूं एक जैसा
गुलशन कई बड़े बजट की फिल्में छोड़ चुके हैं। इसके लिए उन्हें कोई पछतावा भी नहीं है। वे बताते हैं, ‘मधुर भंडारकर से मैं ‘कैलेंडर गल्र्स’ के लिए मिला था। उसमें एक नेगेटिव किरदार ऑफर किया गया था। मैैंने मना कर दिया। ‘वेलकम बैक’ में भी नेगेटिव रोल का ऑफर मिला था। वह भी छोड़ दिया था। आप ऐसी कितनी फिल्में कर सकते हैं। कुछ साल पहले ‘तेजाब-2’ बनाने की कोशिश की गई थी। उसमें भी विलेन का ही किरदार मिला था। आने वाले समय में ‘अजहर’ फिल्म करूंगा। एक ही तरह का किरदार पैर में बंधन की तरह होता है। शुरू में तो मजा आता है, मगर उसके बाद वह घुटन लगने लगता है। मेरे निगेटिव अवतार की सराहना की जाती है, पर वह आगे चलकर बोरिंग हो जाएगा। दर्शकों से पहले मैं ही बोर हो जाऊंगा। मैं अलग तरह के किरदार निभा सकता हूं। मैैं उस काबिल हूं। ‘हंटर’ के निर्देशक को ऐसा लगा। तभी उन्होंने मुझे ‘हंटर’ ऑफर की। वहां मैंने जमकर कॉमेडी की।’

बुराई सबको पसंद है
अपनी अगली फिल्म के बारे में गुलशन बताते हैं, ‘फिल्म ‘कैबरे’ मेरे लिए कठिन है। मेरे अपोजिट रिचा चड्ढा हैं। हम दोनों के लिए यह चुनौतीपूर्ण फिल्म है। रिचा इसमें बेहद खूबसूरत व ग्लैमरस अवतार में हैं। उन्होंने अमेरिका में बाकायदा कैबरे डांस सीखा भी है। फिल्म में मैं सनकी किस्म के क्राइम जर्नलिस्ट की भूमिका निभा रहा हूं। उसे अपने हिसाब से काम करना है। वह अकेला रहता है, लोगों को पसंद भी नहीं करता है। वैसे किरदार असल जिंदगी में लोगों को पसंद नहीं आते लेकिन परफारमेंस के लिहाज से वैसे रोल हर कोई करना चाहता है। बुरे गैंगस्टर टाइप के लड़के फिल्मों में बड़े पसंद किए जाते हैं। रियल लाइफ में हम किसी को एक सीमा तक ही जान-समझ सकते हैं। इंसान को हालात के हिसाब से जज किया जाता है। मैं किरदार को भी वैसे ही देखता हूं। हर कोई बुरा नहीं होता। कहानी के हिसाब से उसे देखना पड़ता है। इसका मतलब यह नहीं है कि वह निजी तौर पर बुरा है। हम असल जिंदगी में जजमेंट पास कर देते हैं, बिना कुछ सोचे-समझे। फिल्मों में आदमी के बुरा बनने की वजह बताई जाती है। शायद इसलिए दर्शक उस किरदार को समझ पाते हैैं। कोई भी किरदार निभाना आसान नहीं होता। बड़ी मेहनत करनी पड़ती है। हर किसी का अपना तरीका होता है।’
अमित कर्ण

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