ऐसी बाल फिल्में बनाएं, जो थिएटरों में रिलीज हों - मुकेश खन्ना
14 नवंबर से हैदराबाद में चिल्ड्रेन फिल्म फेस्टिवल का आयोजन किया जाएगा। चिल्ड्रेंस फिल्म सोसायटी के नए चेयरमैन मुकेश खन्ना से बाल फिल्मों की बेहतरी और नई संभावनाओं पर चर्चा की अमित कर्ण ने...
14 नवंबर से हैदराबाद में चिल्ड्रेन फिल्म फेस्टिवल का आयोजन किया जाएगा। चिल्ड्रेंस फिल्म सोसायटी के नए चेयरमैन मुकेश खन्ना से बाल फिल्मों की बेहतरी और नई संभावनाओं पर चर्चा की अमित कर्ण ने...
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बाल फिल्मों के व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए आप क्या कर रहे हैं?
चिल्ड्रेन फिल्म फेस्टिवल का आयोजन हर दो साल में होता है। इस बार भी यह 14 नवंबर से 20 नवंबर तक हैदराबाद में आयोजित होगा। इसमें देश व दुनिया भर से आई बाल फिल्मों की स्क्रीनिंग होती है। विभिन्न देशों के बच्चों के पालन-पोषण व उनकी सोच-अप्रोच के बारे में पता चलता है। मैं फिल्मों में भेदभाव नहीं चाहता कि फलां फिल्में महज फेस्टिवल के लिए हैं और बाकी मेनस्ट्रीम के लिए। साथ ही इस आयोजन में ‘लिटिल डायरेक्टर कॉम्पटीशन’ नामक सेक्शन को मैं नई ऊंचाइयां प्रदान कराना चाहता हूं।
बाल फिल्मों में आपको कितनी संभावनाएं दिखती हैं?
बाल फिल्मों का मतलब सिर्फ प्रवचन देने वाली फिल्में नहीं होती। अब तक वही होता रहा है। जबकि विदेश में लोग हैरी पॉटर, स्पाइडरमैन बनाकर करोड़ों कमा रहे हैं। बस नजरिया बदलने की देर है। फिर बच्चों की दिलचस्पी बाल फिल्मों में भी रहेगी। वे अपने परिजनों के संग फिल्में देखने जरूर आएंगे।
आप से पहले अमोल गुप्ते चेयरमैन थे। उनकी शिकायत थी कि बाल फिल्मों के लिए प्रस्तावित फंड का बड़ा हिस्सा इस्तेमाल तक नहीं हो पाता?
आप जिनका नाम ले रहे हैं, मेरी उनसे ही शिकायत रही है। उनके कार्यकाल में एक भी फिल्म नहीं बनी। मुझे चेयरमैन बने ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, पर मेरे पास दस स्क्रिप्ट बनी पड़ी हैं। वे भी वैसी, जो थिएटर में रिलीज के लायक हों। मैंने मिनिस्ट्री को स्पष्ट कर दिया है कि हम सिर्फ उन्हीं कहानियों पर फिल्में बनाएं, जो थिएटर में रिलीज हो सकें। मैं चिल्ड्रन फिल्म सोसायटी को कमर्शियल फिल्में बनाने वाले प्रोडक्शन हाउस की शक्ल देना चाहता हूं। ऐसी फिल्में चाहता हूं, जो अवॉर्ड से ज्यादा रिवॉर्ड दें।
यानी आप कहानियों के चुनाव व निर्माण प्रक्रिया में आमूल-चूल परिवर्तन कर रहे हैं?
यकीनन। तब्दीलियों के परिणाम दिखने लगे हैं। राजकुमार संतोषी, अनुपम खेर, नीरज पांडे जैसे नामचीन लोग हमारे लिए फिल्में बनाने को राजी हैं। अंजुम रिजवी की कहानी तो पास भी हो गई है। अब तक संघर्षरत फिल्मकार ही खुद की प्रतिभा दिखाने के लिए इस सोसायटी का बतौर प्लेटफॉर्म इस्तेमाल करते रहे हैं। मैं चाहता हूं कि बड़े फिल्मकारों को भी बाल फिल्मों में संभावनाएं दिखें।
जिन बड़े नामों की आपने चर्चा की, वे सिर्फ कहानियां लेकर आएंगे या वे प्रोजेक्ट में अपना पैसा भी लगा सकते हैं?
हमने दोनों विकल्प खुले रखे हैं। अंजुम रिजवी तो सिर्फ कहानी लेकर आए हैं। कुछ फिल्मकार आधा पैसा लगाने को भी तैयार हैं। इससे फिल्मों का बजट बढ़ेगा। नतीजतन हम फिल्म का बड़े स्तर पर प्रमोशन भी करेंगे। परवेज सिप्पी एनिमेशन में हमारे संग संयुक्त उपक्रम खोलना चाहते हैं।