कैंटीन का आनंद है थिएटर - भरत दाभोलकर
थिएटर पर्सनैलिटी भरत दाभोलकर के लिए पहला प्यार विज्ञापनों की दुनिया है। उन्होंने अमूल बटर को भारतीय सामाजिक परिदृश्य में ऑडियंस के सामने पेश किया। सामाजिक व्यवस्थाओं पर चोट करने वाले नाटकों के साथ ही वे साल में एक सिनेमा पर भी काम करते हैं। इन दिनों वे ‘ब्लेम इट
थिएटर पर्सनैलिटी भरत दाभोलकर के लिए पहला प्यार विज्ञापनों की दुनिया है। उन्होंने अमूल बटर को भारतीय सामाजिक परिदृश्य में ऑडियंस के सामने पेश किया। सामाजिक व्यवस्थाओं पर चोट करने वाले नाटकों के साथ ही वे साल में एक सिनेमा पर भी काम करते हैं। इन दिनों वे ‘ब्लेम इट ऑन यशराज’ नाटक के शो के साथ पूरे भारत में भ्रमण कर रहे हैं...
विविध क्षेत्रों के लिए काम करने का समय आप किस तरह निकालते हैं?
अगर आप काम के प्रति केंद्रित रहेंगे, तो आपके पास रुचि का काम करने के लिए समय बचेगा। मैं यहां और तंजानिया में विज्ञापन बनाता हूं। लिखने के साथ-साथ, डायरेक्शन और एक्टिंग भी करता हूं। लोग एक ही काम पर अत्यधिक समय देते हैं। मैं दूसरे माध्यमों के लिए भी समय निकालकर काम करता हूं।
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अब तक आपकी यात्रा कैसी रही है?
सुखद रही है। मैंने लॉ की पढ़ाई की है। टाटा कंपनी में मैनेजमेंट ट्रेनी के रूप में काम कर चुका हूं। लॉ, बिजनेस, एजुकेशन, थिएटर, फिल्म्स और एडवरटाइजिंग, सब मैं एक साथ करता हूं। अन्य लोगों की अपेक्षा मैं एक दिन में ज्यादा काम करता हूं। जब लोग रविवार को आराम करना पसंद करते हैं, मैं फिल्म के लिए शूट करता हूं। जब लोग क्लबों में मस्ती करते रहते हैं, मैं रिहर्सल करता रहता हूं। एडवरटाइजिंग की जज कमेटी में पिछले 18 सालों से हूं। केबीसी में जो प्रतियोगी आते हैं उन्हें मैं पहले प्रीस्कैन करता हूं। मुझे अपनी क्षमताओं पर पूरा भरोसा है।
अमूल बटर का कॉन्सेप्ट आपके दिमाग में किस तरह आया?
अमूल बटर का कॉन्सेप्ट मेरा नहीं था। एडवरटाइजिंग कंपनी एएसपी के मैनेजिंग डायरेक्टर सिलवेस्टर डा कुन्हा का इसके पीछे हाथ था। मेरे जॉइन करने से पहले ये तैयार हो चुका था। मैंने होर्डिंग्स का भारतीयकरण जरूर किया। हिंगलिश, मराठी, दुर्गा पूजा के लिए बंगाली के प्रयोग ने इसे आम लोगों के और ज्यादा करीब ला दिया।
क्या एड एजेंसी में मन नहीं रमने के कारण थिएटर की ओर मुड़ गए?
मैं कभी थिएटर में काम करने के लिए उत्सुक नहीं था। मैं थिएटर और स्टेजक्राफ्ट आज भी नहीं समझ पाता हूं। मैं विज्ञापन को सबसे अधिक चैलेंजिंग मानता हूं और इससे मैं प्यार करता हूं। मैंने फर्स्ट ईयर से ही थिएटर के लिए एडवरटाइजिंग करना शुरू कर दिया था। मेरे लिए थिएटर कॉलेज कैंटीन के ही विस्तार के समान है, जहां अपने दोस्तों के साथ हमें हंसी-मजाक का अवसर मिलता रहता था। कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद मैं कैंटीन का लुत्फ नहीं उठा सकता था। थिएटर के सहारे मैं फिर से कैंटीन का मजा लेने लगा। थिएटर में मेरी रुचि नहीं हैं, पर मुझे रिहर्सल अधिक पसंद है।
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हिंगलिश शब्दों के प्रयोग को बढ़ावा देने का आइडिया कहां से आया?
स्कूल की पढ़ाई मैंने मराठी भाषा में की है, इसलिए अंग्रेजी बोल नहीं पाता था। इसलिए बोलचाल की भाषा में हिंदी, मराठी और गुजराती शब्दों को जोड़ दिया करता था। इस तरह भाषा का हिंगलिशकरण होता गया और मेरी डिक्शनरी बड़ी होती गई। अब भी अंग्रेजी के साथ मैं कई क्षेत्रीय भाषाओं को जोड़ता रहता हूं।
‘ब्लेम इट ऑन यशराज’ हल्का-फुल्का नाटक है या समाज के किसी खास स्वरूप पर व्यंग्य है?
मैंने कभी भी नाटकों के जरिए उपदेश देने की कोशिश नहीं की है। मैंने एक आर्टिकल में पढ़ा था कि लोग बॉलीवुड फिल्मों में भव्य शादियां देखना चाहते हैं। यशराज बैनर ने अपनी फिल्मों में शादियां दिखाईं और फिल्मों को लार्जर देन लाइफ बनाया। राजश्री के सूरज बड़जात्या ने भी ऐसा किया। यशजी हमारे नाटक की ओपनिंग सेरेमनी में आने वाले थे, लेकिन यह दुखद है कि इससे पहले ही उनकी मृत्यु हो गई।
सुनने में आया है कि आप रोज अपने सिर को शेव करते हैं?
(हंसते हुए कहते हैं) मुंबई में मैं शायद पहला आदमी हूं, जो इस तरह का काम किया करता था। मैं मैगजीन के कवर पर भी दिखता था, क्योंकि ये उन दिनों प्रचलन में नहीं था। मैं प्रतिदिन सिर को शेव करता हूं। इसमें सिर्फ 30 सेकेंड्स ही लगते हैं।
क्या आप फिटनेस फ्रीक हैं?
मुझे फिटनेस फ्रीक तो नहीं कहा जा सकता है, लेकिन मैं कॉलेज में बॉक्सिंग टीम को रिप्रजेंट करता था। मैं घर के जिम में 1 घंटे समय देता हूं। एक्सरसाइज करता हूं और फिटनेस के प्रति जागरूक हूं।
थिएटर, सिनेमा, टेलीविजन में अधिक चैलेंजिंग कौन है?
मैं एडवरटाइजिंग को अधिक चैलेंजिंग मानता हूं। छोटी सी समयावधि में आपको एक प्रोडक्ट को बेचना पड़ता है। 20 सेकेंड्स में आपको उनका मनोरंजन करना पड़ता है और उन्हें सामान खरीदने के लिए राजी भी करना पड़ता है। इसके बाद स्थान आता है थिएटर का, जिसमें हरेक शो में लाइव ऑडिएंस बदलते रहते हैं। इनके मुकाबले टीवी और फिल्म आसान हैं।
स्मिता